गुरुवार, 8 मार्च 2012

तेरे नयन हैं गीले क्यों!-महिला दिवस पर




नारी,
तू अति सुन्दर है;
अति कोमल है;
सृष्टि की जननी है तू|
उम्र के हर पड़ाव पर किन्तु
तेरे नयन हैं गीले क्यों?

ओ गर्भस्थ शिशु बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘माता दिखाना ना चाहे दुनिया
दोष यह है, में हूँ एक कन्या ’’

ओ नवजात कन्या बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘पा सकी न स्नेह आलिंगन
समझते हैं सब मुझको बंधन’’

ओ नन्ही सी गुड़िया बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘भइया खाता है दूध और मेवा
मैं खाती हूँ सूखा कलेवा’’

ओ छोटी सी बालिका बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘पढ़ना चाहती हूँ पुस्तक मोटी
सेंकवाते हैं सब मुझसे रोटी’’

ओ चंचल किशोरी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मन है छोटा सा छोटी सी आशा
अनुशासन से होती है निराशा’’

ओ कमनीय तरुणी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘ख्वाबों की दुनिया रंग रंगीली
कहते हैं सब मुझको हठीली’’

ओ प्यारी सी पुत्री बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मैं भी तो हूँ उनकी जाई
फिर क्यूँ वो समझें मुझे पराई’’

ओ सजीली बन्नो बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘लागे है प्यारा मेरा साजन
पर छूटेगा घर और आँगन’’

ओ जीवन की संगिनी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘मैं चाहूँ सबको खुश रखना
कोई मुझको समझ पाए ना’’

ओ घर की बहुरानी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘दिन भर करती मैं सारे काम
ताने सुन सुन जीना है हराम’’

ओ आज्ञाकारिणी पत्नी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘सुख दुख को लेती मैं बाँट
फिर भी सुननी पड़ती है डाँट’’

ओ ममतामयी जननी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘सारे दर्द तो मैंने सहे
नाम पिता का ही क्यों चले’’

ओ बच्चौं की अम्मा बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘उनके लिए मैं सोचूँ दिन रात
मन की करें चलाते अपनी बात’’

ओ रोबीली सासू बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘बड़े प्यार से परपुत्री अपनाई
करती है सारे जहाँ में बुराई’’

ओ अशक्त वृद्धा बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मेरी बोली मन को न भाए
सबका निरादर सहा नहीं जाए’’

इससे आगे की बातें अगले पोस्ट में...
ऋता शेखर मधु

17 टिप्‍पणियां:

  1. नारी सृष्टि का आधार है, फिर भी हर पड़ाव पर नयन गीले!!
    ...मार्मिक पंक्तियाँ

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  2. सटीक ...स्पष्ट भाव.... पर दुखद कि नयन गीले क्यों...?

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  3. ओ चंचल किशोरी बोलतेरे नयन हैं गीले क्यों! ‘‘मन है छोटा सा छोटी सी आशाअनुशासन से होती है निराशा’’
    बहुत सुंदर प्रस्तुति,अच्छी अभिव्यक्ति....
    ऋता जी,.. सपरिवार होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि
    ...रंग रंगीली होली आई,

    जवाब देंहटाएं
  4. ओ चंचल किशोरी बोलतेरे नयन हैं गीले क्यों! ‘‘मन है छोटा सा छोटी सी आशा अनुशासन से होती है निराशा’’
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,अच्छी अभिव्यक्ति....
    होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि
    ...रंग रंगीली होली आई,

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया अभिव्यक्ति ....
    रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें !

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  6. नारी के नयनों की भाषा समझले ऐसी सुन्दर पोस्ट है आपकी .दिल के बेहद नजदीक है ये पंक्तिया ।

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  7. बहुत ही बढ़िया
    आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  8. आपकी हृदयस्पर्शी और मार्मिक प्रस्तुति से
    मन भावुक हो गया है.

    'सत्-चित-आनन्द'स्वरुप आत्मा जब शरीर ग्रहण करती है तो लिंगभेद होता है.
    अन्यायपूर्ण भेद से क्षोभ
    और दुःख उत्पन्न होता है.
    वर्ना नारी जननी स्वरूपा,प्रेमस्वरूपा ,स्नेह्स्वरूपा,
    भाव और भक्ति स्वरूपा,शक्ति स्वरूपा
    सदा सदा ही वन्दनीय है.

    जैसे जैसे अज्ञान के अँधेरे से आत्म ज्ञान का प्रकाश
    होता है नारी के वन्दनीय स्वरुप का अहसास होता है.

    काश! अँधेरा छंटे,नारी के गीले नयन का मर्म और चीत्कार समझ आये,सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश होवे.

    आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार.

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  9. सुन्दर सुरुचिपूर्ण, सृजन ,अभिव्यक्ति को स्वर प्रदान करता प्रभावशाली है ..... बधाईयाँ जी /

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  10. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  11. सार्थक सशक्त प्रस्तुति... प्रभावी रचना..
    सादर.

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  12. आपने हमारे नैन भी भिगो दिये....
    सुन्दर रचना ...

    और बातों के इन्तेज़ार में...

    सस्नेह.

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  13. नारी मन जहां कोमल भावनाएं लिए होता है वहीं कठोर धरातल को आसानी से सहज कर लेता है ... पर फिर भी नयन गीले क्यों होते हैं ये सदियों से पूछे जाना वाला प्रश्न है ...

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