मंगलवार, 13 मार्च 2012

कभी सोचा है...




कभी सोचा है...
न चाँद होता
न होते तारे
फिर हम क्या करते
चंदा को मामा बना
बच्चों को कैसे फुसलाते
कभी तन्हा रातों में
चाँद को साथी कैसे बनाते
नींद न आती
टकटकी लगा
तारों को कैसे गिनते
होते न तारे
न ही वे टूटते
फिर अपनी विश किसे बताते
चाँदनी रात न होती
मधुर सी कोई बात न होती
पूनम का चाँद न होता
पथ हमारे अँधियारे रह जाते
अपने प्रिय
दूर देस जब जाते
बताओ,तारों में उनको
कैसे ढूँढ पाते
काले बादल कोई क्यूँ देखे
चाँद की छुपा छुपी
कैसे हमें लुभाते
टिमटिम करते तारे न होते
ट्विंकल ट्विंकलकिसे सुनाते
चाँद न होता
चाँद-सी महबूबा न होती
कभी सोचा है...
काली स्याह भयानक रातें
कितना हमें डरातीं!!!

ऋता शेखर मधु

12 टिप्‍पणियां:

  1. पहले तो नहीं सोचा था...
    अब सोचा तो बड़ा रीता-रीता सा लगा...
    आकाश भी....मन भी.....
    :-(

    सस्नेह.

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  2. सही खा है आपने की चाँद के बिना रात की कल्पना ही नहीं की जा सकती.सार्थक पोस्ट बधाई.

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  3. सुनाते चाँद न होता चाँद-सी महबूबा न होतीकभी सोचा है...स्सर्थ्क पोस्ट,...
    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  4. सजी मँच पे चरफरी, चटक स्वाद की चाट |
    चटकारे ले लो तनिक, रविकर जोहे बाट ||

    बुधवारीय चर्चा-मँच
    charchamanch.blogspot.com

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  5. आपने तो सचमुच में डरा दी !
    सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

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  6. सोचकर ही दिल घबराता है ... जो दिया है दाता ने , उसके बगैर हम कैसे रहते !

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  7. पहले तो सोचा नही था,लेकिन अब तो सोचना ही पड़ेगा..विचारणीय सुन्दर अभिव्यक्ति!...

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  8. सामान्य परिस्थितियों में,हममें से शायद ही किसी को चांद और तारों का ध्यान आता हो रात में। कविताओं-कहानियों के उल्लेख भी थोथे हैं। चांद और तारे यदि हमारे जीवन में होते,तो इतना अंधेरा न होता भीतर।

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  9. आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  10. मगर फिर भी चाहने वाले यह कहते ही रहेंगे-
    न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे
    मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे.

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