रविवार, 18 मार्च 2012

कुछ ताँका कविताएँ




१.
कोयल काली
तुम कितनी प्यारी
रूप से नहीं
गुण से जग जीता
स्वर दे मनोहारी|
२.
ओस की बूँद
सिमटी है पँखुड़ी
ज्यूँ मीठा स्वर
बस जाता बाँसुरी
सीपी में मंजरी|
३.
शरद ऋतु
रोम-रोम सिहरा
जिस धूप को
ग्रीष्म में बिसराया
अभी गले लगाया|
४.
लाल गुलाब
कहे काँटों के साथ
जीवन कथा
चुभन को झेल लो
खिलना तो न छोड़ो|
 ५.
झूमती कली
हँसी, कहने लगी
मैं तो खिली
भँवरों का गुँजन
सुन भई बावली|
६.
काला बादल
ढँके सूर्य किरण
छुप न पाती
ढकेल आवरण
वो चमक ही जाती|
७.
बरखा लाए
रिमझिम फुहार
सुर सजाए
तेज धार बौछार
गाए राग मल्हार|
८.
पावस ऋतु
हौले-हौले हवाएँ
सजे राग हैं
विरहा औ कजरा
भीगे कानन फूल|
९.
ग्रीष्म तपती
नभ में उड़ जाती
बन बदरा
झूमती फुहराती
ठंढक पहुँचाती|
 १०.
मेघ का थाल
बूँद-बूँद नीर के
ग्रीष्म सजाती
टकटक चातक
गिरा, प्यास बुझाती|

ऋता शेखर 'मधु'
यह कविता की जापानी विधा है|
इसमें वर्णों का क्रम 5+7+5+7+7=31 है|

14 टिप्‍पणियां:

  1. लाल गुलाब
    कहे काँटों के साथ
    जीवन कथा
    चुभन को झेल लो
    खिलना तो न छोड़ो|

    ...बहुत गहन अभिव्यक्ति...सभी तांका बहुत सुंदर...

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  2. .बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
    मेघ का थालबूँद-बूँद नीर केग्रीष्म सजातीटकटक चातक गिरा, प्यास बुझाती|

    MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....

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  3. लाल गुलाब
    कहे काँटों के साथ
    जीवन कथा
    चुभन को झेल लो
    खिलना तो न छोड़ो।

    कितनी अच्छी बात कही है आपने।
    बेहतरीन कविताएं।

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  4. बहुत खूब ...
    मनभावन
    शुभकामनायें आपको !

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  5. बहुत बढ़िया...
    नियमों का बंधन आपकी अभिव्यक्ति को बाँध नहीं पाता...

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  6. बहुत खूब...........
    लाल गुलाब
    कहे काँटों के साथ
    जीवन कथा
    चुभन को झेल लो
    खिलना तो न छोड़ो|........इसका तो कहना ही क्या

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  7. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    अप्रतिम क्षणिकाएं ....बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  8. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति । सभी तांका बहुत सुंदर...

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