गुरुवार, 21 जून 2012

चाँद कलश




चाँद कलश
संजो के रखता
ढेर सारे सिक्के
रुपहले
चाँदी के सिक्के
छोटे सिक्के 
बड़े सिक्के
सूरज के भय से
दिन में
नहीं दिखाता
किसी को भी
वे सिक्के !
ज्यूँ रात होती
उलट देता है
अपना रुपहला कलश
बिखर जाते हैं
सारे ही सिक्के
आसमाँ के फ़र्श पर
अगणित
चमचम करते
सारे सिक्के
सबको लुभाते !
गिनते हुए
कभी कोई सिक्का
छिटक जाता
गिरने लगता
जमीं पर
हम यहाँ भी
बाज नहीं आते
झट उस सिक्के को
टूटा सितारा कह
एक विश खरीद लेते|

ऋता शेखर मधु

22 टिप्‍पणियां:

  1. चांद तारों से सजे ...सुंदर भाव ...

    शुभकामनायें.

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  2. क्या बात है ऋता जी.
    आसमान में भी सिक्के ही सिक्के
    चमकते हुए,लुभाते हुए

    काश! कोई भी इन सिक्कों को अपनी
    मुठ्ठी में भर पाता,या चादर फैला कर
    इकठ्ठा कर पाता.

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  3. सोचती हूँ कुछ इस तरह .... चाँद सूरज की अनुपस्थिति में अपनी चाँदनी के नग जड़े गहने निकाल लाता है .... सौभाग्यशालिनी के टूटे नग इच्छाओं को पूर्ण करते हैं

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    1. अरे वाह दी...आप की कल्पना तो बेजोड़ है, चाँदनी के गहनेः)))

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  4. बहुत प्यारी सी रचना है ऋता जी...
    काश एक सिक्का मेरी गुल्लक में भी होता.....
    :-)

    सस्नेह.

    अरे हाँ! आज वटवृक्ष में आपका लिखा एक खूबसूरत छंद पढ आई हूँ......
    बधाई.

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    उत्तर
    1. स्वीट अनु...खोजिए गुल्लक में...जरूर मिल जाएँगेः)))

      छंद पसन्द करने के लिए शुक्रिया !!

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  5. ये रुपहले चमकते सिक्के रात्रि के अँधेरे में हमारा मार्ग दर्शन करते है....अनुपम प्रस्तुति...... बधाई ऋता !

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  6. वाह ... अनुपम भाव संयोजित कर दिये चाँद कलश से आपने ... बहुत खूब।

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  7. अंजु जी,
    आपका स्वागत है...आभार !!

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  8. मन भा गयी.. सुन्दर.. :)

    सादर

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  9. डॉ संध्या तिवारी जी,
    आपका स्वागत है| रचना पसंद करने के लिए आभार !!

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  10. बहुत सुन्दर मन भाती रचना...
    सुन्दर
    :-)

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