शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

रे मन, बरस जा...




ओ धरती
तुम बरसी
वह तपिश थी ग्रीष्म की
जिसे तुम सहती रही
सूरज दहका
दहकी तुम
नदी ताल पोखर सागर
सब साक्षी थे
कि तुम तपती रही
भाप बन उड़ती रही
अम्बर तेरा मन
विकलता की बूँद-बूँद
जाकर वहाँ थमती रही
उमड़- घुमड़
मचलती रही
बूँद थे अनगिन
भार असह्य होना ही था
आखिर तुम
बरस ही पड़ी
मन आकाश में बदरा
कब तलक टिक पाते
कभी फुहार
कभी मुसलाधार
सबने कहा
यह है
सावन-भादो की झड़ी

रे मन
उमड़ घुमड़ कर
कुछ न पाएगा
बरस जाने दे
नयनों के रास्ते
सावन...भादो
फिर जो ठंढक मिलेगी
उस राहत
उस सुकून का
कहना ही क्या...!!!

ऋता शेखर मधु

30 टिप्‍पणियां:

  1. मन जो बरस जाएगा नैनों के रास्ते तो...मन आँगन में फूल खिलेंगे ही...

    बहुत सुन्दर ऋता जी...
    सस्नेह
    अनु

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    1. उन फूलों की खुश्बू ...वाह...नया आनंद देगीः)
      सस्नेह !!

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  2. रे मन
    उमड़ घुमड़ कर
    कुछ न पाएगा
    बरस जाने दे...सच अब तो बरस ही जाए..बहुत सुन्दर प्रस्तुति .ऋता शुभकामनायं

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  3. आया सावन लग गई झड़ी
    थोड़ी - थोड़ी सी ठंडक बढ़ी
    मूसलाधार कही बौछारे पड़ी
    मौसम है, भीगने की घड़ी,,,,,,,

    बहुत सार्थक प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  4. मन भी ऐसे ही बरस पड़ता है और तपिश ठंडी हो जाती है ... सुंदर रचना

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  5. तरह तरह की बरसात , कहीं सुखद कहीं दुखद !
    यही तो जीवन है !

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  6. बरसकर कुछ तो सोंधे ख्याल मिलेंगे मन ... शायद कोई इन्द्रधनुष अपना हो जाए

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    उत्तर
    1. हाँ दी, मन हल्का होगा तभी इन्द्रधनुष दिखेंगे !!

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  7. रे मनउमड़ घुमड़ करकुछ न पाएगाबरस जाने देनयनों के रास्तेसावन...भादोफिर जो ठंढक मिलेगीउस राहतउस सुकून काकहना ही क्या...!!!
    खुबसूरत रचना ...

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  8. वाह ... भावमय शब्‍द संयो‍जन ...आभार

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  9. बहुत सुन्दर भावभीनी रचना...
    सुन्दर... :-)

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  10. दिल को छूती खूबसूरत प्रस्तुति मन हल्का करने को काफी है.

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  11. रे मन
    उमड़ घुमड़ कर
    कुछ न पाएगा
    बरस जाने दे
    नयनों के रास्ते
    सावन...भादो
    फिर जो ठंढक मिलेगी
    उस राहत
    उस सुकून का
    कहना ही क्या...!!!

    आपकी सुन्दर प्रस्तुति दिल को छूती है.

    आभार.

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