रविवार, 6 जनवरी 2013

सरवाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट



सरवाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट

एक बार कालदेव यमराज जी महाराज अपने असिस्टेंट चित्रगुप्त जी महाराज के साथ पृथ्वी भ्रमण को आए| सबसे पहले तो वह यहाँ की भीड़भाड़ देखकर घबड़ा गए| उन्होंने सोचा कि यहाँ इतनी भीड़ है तो सबकुछ कैसे मैनेज होता होगा| यही बात उन्होंने चित्रगुप्त जी से पूछा| चित्रगुप्त जी ने कहा कि दो-चार स्थानों पर जाकर देखते हैं कि सब कुछ किस सिस्टम से चलता है| सुबह का समय था तो सोचे कि पहले मंदिर जाकर भगवान के दर्शन कर लूँ| दर्शन करने के लिए लड्डु लेने थे| देखा कि बहुत सारे लोग प्रसाद खरीदने ले लिए लाइन में लगे थे| यमराज जी तो यह सिस्टम जानते नहीं थे तो लाइन में सबसे आगे आकर लड्डु लेना चाह रहे थे तभी आवाज आई क्यू में रहिए |  बेचारे सकपका गए| उन्होंने चित्रगुप्त जी की ओर देखा| चित्रगुप्त जी ने बताया कि वे लाइन में आगे नहीं आ सकते| करीब पन्द्रह-बीस मिनट बाद वे प्रसाद खरीद पाए| प्रसाद लेकर मंदिर की ओर बढ़े| वहाँ लम्बी लाइन लगी थी| एक बार डाँट सुन चुके थे सो चुपचाप लाइन में लग गए| आधे घंटे बाद भगवान के निकट पहुँच पाए| वहाँ से निकले तो सोचे जलपान कर लूँ| किसी जाने माने होटल में पहुँचे| उस वक्त सभी मेजें भरी थी सो उन्हें क्यू में खड़ा कर दिया गया| कुछ जबरदस्त लोग क्यू में आगे आने की चेष्टा कर रहे थे| अपनी बारी आने पर ही भोजन नसीब हुआ| कुछ देर वहाँ घूमने के बाद दूसरे शहर जाने की इच्छा हुई| ट्रेन से जाना था तो टिकट कटवाने के लिए वहाँ भी क्यू में लग गए| यहाँ भी जबरदस्त लोग आगे आना चाह रहे थे| किसी तरह टिकट मिली| लोकल ट्रेन थी तो धक्कामुक्की कर के ट्रेन में घुसे| अन्दर बैठने की भी जगह नहीं थी, बेचारे खड़े खड़े ही सफर तय किए| इस तरह घूमते घूमते शाम हो गई| बहुत थकने के बाद अचानक यमराज जी की तबियत खराब हो गई| चित्रगुप्त जी घबड़ा गए| वहाँ आसपास खड़े लोगों से मिन्नतें की कि वे उन्हें हॉस्पीटल तक जाने में मदद करें पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया| बेचारे किसी तरह हॉस्पीटल पहुँचे| यहाँ भी लाइन...यमराज जी की तबियत बहुत खराब थी फिर भी क्यू के अनुसार ही चलना था| मन मारकर चित्रगुप्त जी क्यू में खड़े हो गए| तबियत सँभली तो वापस अपने लोक लौट गए|
यहाँ आकर दोनों ने विचार किया कि हमें भी क्यू सिस्टम लागू करना चाहिए| चित्रगुप्त जी महाराज ने लम्बी सी लिस्ट बनाई और सबको क्यू में लगा दिया| पर यह क्या...तत्क्षण ही काउंटर खाली हो गया| जो जबरदस्त लोग पृथ्वी पर आगे आने की चेष्टा करते थे वे यहाँ क्यू में पीछे चले जा रहे थे| बेचारे सिद्धान्तवादी लोग लाइन में लगे थे|
एक दिन चित्रगुप्त जी ने ऑफिस खोला तो एक करीब तेइस साल की लड़की सबसे आगे खड़ी थी| चित्रगुप्त जी ने कहा- बेटी, अभी तुम्हें इस लोक में आने का समय नहीं हुआ है|
लड़की ने हाथ जोड़कर कहा- महाराज, पृथ्वी पर सरवाइवल ऑफ द फ़िटेस्ट का सिद्धान्त चलता है...और मैं वहाँ रहने के लिए फिट नहीं हूँ सो आप मुझे यहाँ बुला लो...सभी लड़कियों को बुला लो|
अरे, ऐसे कैसे...इस तरह तो सृष्टि ही थम जाएगी| दुर्गा जैसी नारी बनो|
किन्तु दुर्गा भी तो साधारण स्त्री ही थीं, शक्ति तो उन्हें भगवान शिव से मिली थी तभी वे आततायियों का विनाश कर पाईं| पृथ्वी पर हमें शक्ति देने वाला कोई नहीं है|
बताओ, तुम्हें किससे शक्ति चाहिए|
न्याय व्यवस्था से, समय पर न्याय न मिल पाने से स्त्रियाँ कमजोर पड़ जाती हैं, ...इसलिए मुझे यहाँ बुला लो|
चित्रगुप्त भगवान सोच में लीन हो गए...लड़की की बातों में दम था, किन्तु वे इस समस्या को सुलझाने में लाचार थे|

ऋता शेखर मधु

10 टिप्‍पणियां:

  1. सख्त क़ानून त्वरित न्याय ही इसका निवारण है,,,

    recent post: वह सुनयना थी,सख्त

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  2. बहुत कुछ कहती है ये कहानी ...
    सोचने को विवश करती ...

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  3. यहाँ भी लाचारी.. सोचने को विवश करती सुन्दर कहानी .. ऋता.शुभकामनाएं

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  4. न्याय व्यवस्था स्त्रिओं के प्रति अत्याचारों के लिये न्याय करने में असमर्थ है. सुंदर कथा के माध्यम से कहानी यही दर्शाती. है.

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  5. चित्रगुप्त भगवान् को मान लेना चाहिए .... यही न्याय होगा

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  6. जब न्याय नहीं मिलता,न्याय को पाने के लिए इतनी उठा -पटक करनी पड़ती है तभी तो स्त्रिया आवाज उठने से सकपकातीं है...
    अति उत्तम ...

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  7. काश की ऐसा हो पाए ...... अब तो न्याय की आशा ही नहीं ....

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  8. काश की ऐसा हो पाए ...... अब तो न्याय की आशा ही नहीं ....

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  9. न्याय व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य रूपी कथा

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