सोमवार, 8 दिसंबर 2014

अभिवंचित...


अभिवंचित...

कुछ उनके दिल की सुनें
कुछ उनके मन को गुनें
त्रुटिपूर्ण तन मन से हम
चलकर कोई ख्वाब चुनें|

बन्द हैं दृगों के द्वार
स्याह है जिनका संसार
उनके अंतस-ज्योति में
संग चलें पग दो चार|

ब्रम्हा ने जिह्वा दी नहीं
दे देते पर नजर अपार
अभिव्यक्ति की अकुलाहट में
भर दें हम तो शब्द हजार|

भूलवश जो बधिर बने
देखें बोलें पर ना सुनें
इशारों ही इशारों में हम
अधरों पर हँसी भर दें|

किन्नर भी माँ की संतान
फिर क्यूँ ले आते मुस्कान
बोझिल मन को लें हम तोल
उनसे मीठे बोलें बोल|

बौनापन जो झेल रहे
उपहासों में खेल रहे
तन लघु मन के निर्मल
कभी उनसे न करना छल|

काया की अपूर्णता को
कभी समझना  अभिशाप
वामन अवतार ले विष्णु ने
गर्वित बलि को दिया संताप|

पीछे जो लौटे भूचक्र
वहाँ दिखेंगे अष्टावक्र
चारो वेदों के ज्ञाता रचते
गीता का अध्यात्म चक्र|

ईश्वर ने भरी जिनमे पूर्णता
क्यों भर जाती उनमे हीनता
नैन कद कंठ चक्षु के स्वामी
भाव भरे हैं मतलबी बेमानी

लम्बी काया सोच में बौने
नजर वाले करते औने पौने
पाई जिह्वा मीठा न बोलें
सुनने वाले मुँह न खोलें

ईश्वर जिनमें देते कमियाँ
भरते आत्मबल की कलियाँ
कभी देखकर मुँह न मोड़ो
दे कर प्रेम आशिष को जोड़ो
.........ऋता शेखर 'मधु'

3 टिप्‍पणियां:

  1. काया की अपूर्णता को
    कभी समझना न अभिशाप
    वामन अवतार ले विष्णु ने
    गर्वित बलि को दिया संताप|
    ....बहुत सही बात है कि किसी की अपुर्णता पर कभी हसना नही चाहिये बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए.....

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...

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