रविवार, 7 फ़रवरी 2016

आया बसंत



मनहरण घनाक्षरी में बसंत का स्वागत...
पीत पुष्प-हार में नख शिख श्रृंगार में, शीतल बयार में बासंती उल्लास है
कली-दल खुल रहे भँवरे मचल रहे, डाल डाल पात पात प्रेम का प्रभास है
खिल रहे पलाश से गगन लालिमा बढ़ी, अमराई की गंध में बौर का विन्यास है
दर्पण इतरा रहे सजनी के रूप पर, सखियों संग झूले में प्रीत गीत रास है
*ऋता*

मुक्तक

पीत सुमन-हार में नख शिख श्रृंगार में कचनारी बयार में बासंती उल्लास है
कली-दल खुल रहे भँवरे मचल रहे, कण कण पराग में प्रेम का प्रभास है
पलाश लालिमा गढ़े हरसिंगार वेणियाँ, कँगना पाजेब बने गेंदा गुलदावदी
दर्पण इतरा रहे सजनी के रूप पर, सखियों संग झूले में प्रीत गीत रास है
*ऋता शेखर 'मधु'*

2 टिप्‍पणियां:

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