रविवार, 28 दिसंबर 2014

कुछ फेसबुकिया पोस्ट



21 hrs · Edited · 
माँ...
बदल दिये मैंने घर के पुराने फर्नीचर
सिर्फ रख लिया है वह ड्रेसिंग टेबल
जहाँ तुम अपनी बिंदियाँ चिपका दिया करती थी
ऋता*

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हमेशा अनुमान लगाते रहना...झूठ बोलने से भी ज्यादा खतरनाक बीमारी है|
इस तरह के लोग हमेशा अपने अनुमान को शत प्रतिशत सही मानकर दूसरों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर देते हैं|
अनुमान तो अनुमान है... वह गलत भी हो सकता है|
जैसे गणित में ''मान लिया'' से लेकर ''सिद्ध हुआ" तक की प्रक्रिया में step wise हम सही equation के साथ बढ़ते जाते हैं
वैसा
जिन्दगी के अनुमान में नहीं होता, सिद्ध होने तक वह बीच में ही दम तोड़ देता है.........
.......साथ ही दम तोड़ देती है सामने वाले की सच्चाई !!
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जख़्मों पर नमक छिड़कने वालो
अपने ज़ख्म बचाकर रखना.................
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नमक खरीदते हुए मन में आया विचार 


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हाइगा...
एक प्रसिद्ध कवि की कविता पढ़ी थी इस भाव पर...नाम याद नहीं...
आज यह चित्र दिख गया तो याद आ गई वह कविता 

चाँद का कुरता 
हठ कर बैठा चाँद एक दिन,माता से यह बोला,
"सिलवा दो माँ,मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला.
सन-सन चलती हवा रात भर ,जाड़े में मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ.
आसमान की सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो,कुरता ही कोई भाड़े का"
बच्चे की सुन यह बात कहा माता ने,"अरे सलोने!
कुशल करें भगवान,लगें मत तुझको जादू टोने.
जाड़े की तो बात ठीक है,पर मै तो डरती हूँ.
एक नाप में कभी नही तुझको देखा देखा करती हूँ.
कभी एक अंगुल भर चौड़ा ,कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा.
घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,
नही किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है.
अब तू ही तो बता,नाप तेरी किस रोज लिवायें,
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आयें?"

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मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ
जभी उसको मैं सर चढ़ाऊँ
आतंकित किया पूरी दुनिया को
कहती अब मैं तुमको खाऊँ
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भस्मासुर को वरदान देना शिव को ही महँगा पड़ गया था ।

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