शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

व्हाट्स-एप ग्रुप-लघुकथा

व्हाट्स-एप ग्रुप
व्हाट्स एप पर एक नया ग्रुप अवतरित हुआ-''हम साथ साथ हैं''
परिवार के सभी सदस्यों ने ग्रुप इंफो में जाकर देखा तो उसमें एक परिवार पूरी तरह से नदारद था| घर के सबसे समझदार और न्यायपूर्ण तरीके से सोचने वाले परिवार के बड़े दामाद आनंदी बाबू मुस्कुरा उठे|
उधर आनंदी बाबू की पत्नी लाली ने भी ग्रुप को देखा और पति के पास आकर बोली,''देखा न आपने,रोमा भाभी ने नया ग्रुप बनाया और उसमें मयंक को और उसके परिवार को शामिल नहीं किया''
''ठीक ही है न, कल मयंक ने भी तो एक समूह बनाया था-हमारा परिवार| उसमें उसने बड़े भइया,रोमा भाभी एव उनके बच्चों को नहीं रखा| तब तो तुमने कुछ नहीं कहा लाली|''आनंदी बाबू ने सहज तरीके से कहा|
''मयंक छोटा है, उसकी बातों का क्या लेना'' लाली ने भाई का पक्ष लेते हुए कहा|
'' तुम्हारे छह भाई- बहनों के भरे पूरे परिवार को भाभी ने बहुत समेट कर रखा और तुम सबकी ज्यादतियाँ और नादानियाँ बरदाश्त करती रहीं| मयंक की पत्नी ने आते ही परिवार में राजनीति का खेल शुरु कर दिया| बड़ी भाभी की लोकप्रियता से उसे इर्ष्या होने लगी थी| सबसे बुरी बात यह रही कि तुम सबने उसका साथ दिया| बड़े भइया और मयंक, दोनो तुम्हारे भाई हैं लाली| परिवार में एकता बनी रहे इसकी जिम्मेदारी सबकी होती है|''
''किन्तु भाभी ऐसा कैसे कर सकती हैं|''अभी भी लाली को विश्वास नहीं हो रहा था|
'' तुम्हारी भोली-भाली भाभी ने अब जाकर दुनियादारी सीखी है|''अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए आनंदी बाबू बोले और लाली कुछ न बोल सकी|
--ऋता शेखर 'मधु'

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