मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

साँझ ढले बिटिया पढ़ती है--छंद


मापनीयुक्त मात्रिक छंद -
1.
हरिगीतिका- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा

सूरज उगा ज्यों ही गगन में, कालिमा घटने लगी|
मन व्योम के विस्तृत पटल पर, लालिमा बढ़ने लगी||
कलकल सरित अपनी लहर में, गीतिका कहती रही|
पाषाण वाली राह पर भी, प्रेम से बहती रही|
-ऋता शेखर 'मधु'
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मापनीयुक्त वर्णिक छंद -
2.
तिलका- ललगा ललगा

यह दीप कहे
तम दूर रहे
हिय प्यार खिले
शुभ लाभ मिले
-ऋता शेखर 'मधु'
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3.
तोटक- ललगा ललगा ललगा ललगा

जब भोर हुई निखरी कलियाँ|
घट हाथ लिए जुटती सखियाँ||
बृजभान लली घर से निकली|
चुपके यमुना तट को तक ली||
-ऋता शेखर 'मधु'
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4.
दोधक- गालल गालल गालल गागा
साँझ ढले बिटिया पढ़ती है|
दीप तले सपने गढ़ती है||
मैं घर की अब शान बनूँगी
जीवन का इतिहास रचूँगी||
-ऋता शेखर 'मधु'
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5.
विद्याधारी- गागागा गागागा, गागागा गागागा

जो जागा सो पाया, जो सोया सो खोया|
जो बोया सो खाया, जो बैठा सो रोया||
आने वाला आता, जाने वाला जाता|
दीदी खेले खोखो, भाई सोलो गाता||
-ऋता शेखर मधु
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6.
चंचला- गाल X 4, गाल X 4
.आन, ज्ञान, मान संग, बेटियाँ बनीं महान|
राग, रंग, आसमान, वे बढ़ा रहीं वितान||
सैन्य के समूह बीच, ले उड़ीं बड़े विमान|
देख कोख शानदार, है निहाल खानदान||
-ऋता शेखर 'मधु'

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