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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

माँ दुर्गा के शतनाम

हर वर्ष की तरह खुशियाँ ले के आया है पर्व नवरात्रि|
आशीष अपना देने आईं ममतामयी भगवती जगद्धात्री||
आर्त अर्थार्थी जिज्ञासु भक्तों के दिल में है उनका धाम|
सौ-सौ नाम उनका जपने से बन जाते हैं बिगड़े काम||








माँ दुर्गा 
१०८नामों की सूचि
ऊँ
१.सती ( पतिव्रता )
२.साध्वी ( शुद्ध चरित्र वाली )
३.भवप्रीता ( भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली )
४.भवानी ( शिवपत्नी )
५.भवमोचनी ( संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
६.आर्या
७.दुर्गा ( दुर्ग नामक राक्षस को मारने वाली )
८.जया ( जय देने वाली )
९.आद्या (तन्त्रोक्त देवी दुर्गा )
१०.त्रिनेत्रा ( तीन आँखों वाली )
११.शूलधारिणी ( भाला धारण करने वाली )
१२.पिनाकधारिणी ( त्रिशूल धारण करने वाली )
१३.चित्रा
१४.चण्डघण्टा ( प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली )
१५.महातपाः ( भारी तपस्या करने वाली )
१६.मनः ( मनन शक्ति )
१७.बुद्धिः ( बोधशक्ति )
१८.अहंकारा ( अहंता का आश्रय )
१९. चित्तरूपा
२०.चिता
२१.चितिः ( चेतना )
२२.सर्वमन्त्रमयी
२३.सत्ता ( सत्य का स्वरूप )
२४.सत्यानन्दस्वरूपिणी
२५.अनन्ता ( जिसके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं )
२६.भाविनी ( सबको उत्पन्न करने वाली )
२७.भाव्या ( ध्यान करने योग्य )
२८.भव्या ( कल्याण करने वाली )
२९.अभव्या ( जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं )
३०.सदागतिः
३१.शाम्भवी ( शिवप्रिया )
३२.देवमाता
३३.चिन्ता
३४.रत्नप्रिया
३५.सर्वविद्या
३६.दक्षकन्या ( राजा दक्ष की पुत्री )
३७.दक्षयज्ञविनाशिनी(अपने पति शिव के अपमान होने पर पिता दक्ष के यज्ञ में आत्म आहुति देने वाली)
३८.अपर्णा ( तपस्या के समय पत्ते भी न खाने वाली )
३९.अनेकवर्णा ( अनेक रंगों वाली )
४०.पाटला ( लाल रंग वाली )
४१.पाटलावती ( लाल फूल धारण करने वाली )
४२.पट्टाम्बरपरिधाना (रेशमी वस्र पहनने वाली )
४३.कलमञ्जीररञ्जिनी(मधुर ध्वनि करनेवाले मञ्जीर को धारण करके प्रसन्न रहनेवाली )
४४.अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रम वाली )
४५.क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
४६.सुन्दरी
४७.सुरसुन्दरी
४८.वनदुर्गा
४९.मातंङ्गी
५०.मतङ्गमुनिपूजिता
५१.ब्राह्मी
५२.माहेश्वरी
५३.ऐन्द्री
५४.कौमारी
५५.वैष्णवी
५६.चामुण्डा
५७.वाराही
५८.लक्ष्मीः
५९.पुरुषाकृतिः
६०.विमला
६१.उत्कर्षिणी
६२.ज्ञाना
६३.क्रिया
६४.नित्या
६५.बुद्धिदा
६६.बहुला
६७.बहुलप्रेमा
६८.सर्ववाहनवाहना
६९.निशुम्भशुम्भहननी(निशुम्भ और शुम्भ नामक राक्षसों का वध करने वाली)
७०.महिषासुरमर्दिनी(महिषासुर नामक राक्षस का वध करने वाली)
७१.मधुकैटभहन्त्री(मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध करने वाली)
७२.चण्डमुण्डविनाशिनी(चण्ड और मुण्ड नामक राक्षसों का वध करने वाली)
७३.सर्वासुरविनाशा(सभी असुरों का वध करने वाली)
७४.सर्वदानवघातिनी(सभी दानवों का वध करने वाली)
७५.सर्वशास्त्रमयी(सभी प्रकार के शस्त्र धारण करने वाली)
७६.सत्या
७७.सर्वास्त्रधारिणि(सभी प्रकार के अस्त्र धारण करने वाली)
७८.अनेकशस्त्रहस्ता(अनेक प्रकार के शस्त्र धारण करने वाली)
७९.अनेकास्त्रधारिणी(अनेक प्रकार के अस्त्र धारण करने वाली)
८०.कुमारी
८१.एककन्या
८२.कैशोरी
८३.युवती
८४.यतिः
८५.अप्रौढ़ा
८६.प्रौढ़ा
८७.वृद्धमाता
८८.बलप्रदा
८९.महोदरी
९०.मुक्तकेशी
९१.घोररूपा
९२.महाबला
९३.अग्निज्वाला
९४.रौद्रमुखी
९५.कालरात्रि
९६.तपस्विनी
९७.नारायणी
९८.भद्रकाली
९९.विष्णुमाया
१००.जलोदरी
१०१.शिवदूती
१०२.कराली
१०३.अनन्ता ( विनाश रहिता )
१०४.परमेश्वरी
१०५.कात्यायनी
१०६.सावित्री
१०७.प्रत्यक्षा
१०८.ब्रह्मवादिनी

       ऋता शेखर 'मधु'

कुछ नामों के अर्थ नहीं दे पाई हूँ| यदि आपको पता हो तो कृपया टिप्पणी के माध्यम से अवगत कराने की कृपा करें|

शनिवार, 24 सितंबर 2011

''डॉटर्स डे'' विशेष कविता



बिटिया मेरी
ओ लाडली बिटिया मेरी
तुम हो, मेरे जीवन की खुशी
बड़ी प्यारी लगती है
तुम्हारी भोली निश्छल हँसी
ईश्वर ने वरदान दिया
तुम आई दुनिया में मेरी
जी चाहता है दुनिया में तेरी
खुशियाँ ही खुशियाँ मैं भर दूँ
तमन्नाएँ पूरी कर होठों पर तेरे
मुस्कान ही मुस्कान मैं मढ़ दूँ
सारे दुख हर, झोली में तेरी
कलियाँ ही कलियाँ मैं धर दूँ
तेरे भविष्य की चादर में
सितारे ही सितारे मैं जड़ दूँ
हजारों दीप रौशन कर, राह तेरा
उजालों से मैं जगमग कर दूँ
तेरे मीठे मीठे सपनों में
परियाँ ही परियाँ मैं बुला दूँ
तेरे पथ के सारे काँटे चुन
फूल ही फूल मैं बिछा दूँ
कुकू की मीठी मधुर गुंजन
श्रुति बना हवा में मैं भर दूँ
तुम्हारी खुशी सब चाहें
श्रे‌य इसका मैं सब को दूँ
अमित स्नेह-आशीष का हाथ
सर पर तुम्हारे मैं धर दूँ|

है ईश्वर से दुआ ये मेरी
पूरी हों तुम्हारी आकांक्षाएँ
दुख-निराशा की परछाई भी
कभी तुम्हारे न पास आए
मधु सी मिठास इस कदर भरे
कड़वाहट जगह ही न बना पाए
मैं ईश्वर नहीं चमत्कारी भी नहीं
फिर भी जी चाहे, भाग्य तुम्हारा
सुनहरे कलम से मैं लिख दूँ|

ऋता शेखर मधु


शनिवार, 17 सितंबर 2011

नम्बर का चक्कर


नम्बर का चक्कर

 जन्म  तो  ले  लिया, पहचान मिली नम्बर से
नाम अभी मिला नहीं, जाने गए शिशु-नम्बर से|
यदि प्रथम सन्तान है तो कहे गए पहली
फिर  दूसरी,  तीसरी, चौथी  या  पाँचवीं|

हम  नाम  नहीं, एक नम्बर हैं
स्कूल  में  रौल नम्बर हैं
बोर्ड  में  रजिस्ट्रेशन नम्बर  हैं
डाक्टर के पेशेंट नम्बर हैं
हास्पीटल  में  बेड का नम्बर हैं
दूर में  मोबाइल नम्बर हैं
आफिस  में  एम्पलाई नम्बर हैं
गैरेज में  गाड़ी नम्बर हैं
पोस्टआफिस में मकान नम्बर हैं
बैंक में पासबुक नम्बर हैं
गैस-कनेक्शन में ग्राहक नम्बर हैं
रसोई में राशनकार्ड नम्बर हैं
खरीदारी में क्रेडिट कार्ड नम्बर हैं
बिज़नेस में पैन नम्बर हैं
देश  में  वोटर  नम्बर हैं;
विदेश  में  पासपोर्ट  नम्बर  हैं|

नम्बरों  की  भीड़  में  घिरा  है आदमी|
खो गया नम्बर अगर,तो खोया है आदमी||
                ऋता शेखर मधु


मंगलवार, 13 सितंबर 2011

माँ सी ही सरल- हमारी मातृभाषा


हिन्दी दिवस पर विशेष
 

हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और मातृभाषा है|
इसे भारतीय संविधान में १४ सितंबर १९४९ को शामिल किया गया था|
भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में यह वर्णित है|
इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है|
हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है|
भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है| दिल की बात दिल में ही दबी रहे यदि भाषा न हो| इस धरती पर जितने भी जीव-जन्तु पौधे है,सभी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं| सभी जानवरों की अपनी बोलियाँ होती हैं, और जिस ढंग से वे बोलते हैं वो उनकी वेदना और खुशी को वर्णित कर जाते हैं| किन्तु उनके पास भाषा नहीं होती|
पेड़-पौधे भी वातावरण की अनुकूलता या प्रतिकूलता को चुपचाप दर्शाते हैं| धूप में मुरझा जाते हैं और पानी मिलने पर खिल जाते हैं| किन्तु उनके पास भाषा नहीं होती|
इस धरती पर एकमात्र प्राणि मनुष्य ही है जिसे ईश्वर ने भाषा का वरदान दिया है|
वे अपनी हर खुशी, वेदना, आक्रोश या विद्रोह को बोलकर, भाषा के जरिए व्यक्त करते हैं|धरती पर अगणित भाषाएँ बोली जाती हैं| हर भाषा की अपनी गरिमा होती है| हमारे हिन्दुस्तान की भाषा हिन्दी है किन्तु हम अपनी हिन्दी भाषा बोलते हुए सहज क्यों नहीं रह पाते| हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमारे राष्ट्र की भाषा है, फिर भी किसी बाहरी व्यक्ति से मिलते समय हम क्यों अंग्रेजी बोलकर उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं| यह अलग बात है कि आठ-दस पंक्तियाँ अंग्रेजी की बोलने के बाद बातचीत का सिलसिला हिन्दी में ही जमता है| इस सन्दर्भ में मुझे एक कहानी याद आती है जो मैंने बचपन में बाल-पत्रिका नंदन में पढ़ी थी|
अंतरमन में बसी मातृभाषा
अकबर के दरबार में बीरबल सबसे चतुर दरबारी माने जाते थे| एक बार एक विद्वान पंडित अकबर के दरबार में आए| वे बहुत सारी भाषाओ के ज्ञाता थे| उन्होंने चुनौती दी कि उनकी मातृभाषा कोइ नहीं ज्ञात कर सकता है क्योंकि वे सभी भाषाएँ धाराप्रवाह बोल सकते थे| सबने उनसे भिन्न-भिन्न भाषाओं में बहुत सारे सवाल किए जिसका उत्तर वे आसानी से देते चले गए| कोई उनकी मातृभाषा नहीं जान पाया| अब पंडितजी ने कहा कि यदि कल तक कोई दरबारी उनकी मातृभाषा नहीं बता पाया तो वे मान लेंगे कि वही सर्वोत्तम हैं|
अब अकबर ने बीरबल को पंडितजी की मातृभाषा पता लगाने का काम सौंप दिया| बीरबल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कल तक इस पहेली को सुलझा लेने का वादा किया| उसी दिन आधी रात को बीरबल पंडितजी के कक्ष में पहुँचे जहाँवे गहरी निद्रा में सो रहे थे| बीरबल एक तिनका लेकर आए थे जिसे उन्होंने पंडितजी के कान में घुसाकर गुदगुदी लगाई| पंडितजी थोड़ा कुनमुनाए और फिर करवट बदलकर सो गए| अब बीरबल ने तिनका दूसरे कान में डाला| पंडितजी उठकर बैठ गए और जोर से बोले, येवुरुरा अदि अर्थात् कौन है?| बीरबल तबतक पलंग के नीचे छुप चुके थे| किसी को न पाकर पंडितजी फिर से सो गए| बीरबल वहाँ से चुपचाप निकल गए|
दूसरे दिन जब दरबार लगा तो बीरबल ने बताया कि पंडितजी की मातृभाषा तेलुगू है| सही उत्तर सुनकर पंडितजी आश्चर्यचकित हो गए| सबने यह जानना चाहा कि बीरबल मातृभाषा कैसे जान पाए| बीरबल ने कहा कि जब व्यक्ति नींद में होता है और उसे अपनी भावना व्यक्त करना होता है तो उसके मुँह से मातृभाषा ही निकलती है| फिर उन्होंने रात वाली घटना बताई| सारी बातें सुनकर सब हँस पड़े| पंडितजी ने बीरबल की चतुराई का लोहा मान लिया|
यहाँ पर मेरा यह कहना है कि दिल की गहराई से निकली अभिव्यक्ति सदा अपनी मातृभाषा में ही होती है, फिर हम इसे सहज रूप में क्यों नहीं अपनाना चाहते|
-०-
इसी सन्दर्भ में एक दूसरी घटना का जिक्र करना चाहती हूँ|
अप्रैल और मई प्रतियोगिता परीक्षाओं का महीना होता है| उस समय दूसरे प्रांतों से आए प्रतियोगी विद्यार्थियों से बंगलोर भर जाता है| मेरे घर भी कुछ परिचित आकर रूकते हैं और अपने बच्चों को परीक्षाएँ दिलवाते हैं| एक परिचित  की पुत्री अच्छे रैंक लाकर इंजिनीयरिंग की प्रतियोगिता परीक्षा में सफल हुई| जब काउँसलिंग का समय आया तो मेरे परिचित की इच्छा हुई कि मैं भी उनके साथ केन्द्र पर चलूँ| उनकी बात मानते हुए मैं भी केन्द्र पर गई| वहाँ पर विद्यार्थियों और अभिभावकों की भीड़ लगी हुई थी| माइक पर काउँसलिंग से सम्बन्धित सूचना दी जा रही थी| जिन बच्चों को मनपसंद कॉलेज मिल रहे थे, वे खुशी-खुशी बाहर आ रहे थे|
अब बारी थी हॉस्टल के तलाश की| कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी| लोग एक दूसरे से इस बारे में पूछना चाह रहे थे किन्तु संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे| यह संकोच भाषा को लेकर था| सब लोग यह सोच रहे थे कि या तो दक्षिण भारतीय भाषा जैसे कन्नड़, मलयालम वगैरह चलेगा या अंग्रेजी में बोलना होगा| अंग्रेजी में लोग बातें कर रहे थे किन्तु खुलकर बातें नहीं हो पा रही थीं| सब की नजरों में एक जिज्ञासा थी| बच्चे आपस में ज्यादा सहज थे| जो थोड़ी बहुत बातें हो रही थीं उससे पता चला कि सामने वाले अभिभावक भी उत्तर भारत से ही थे| मैंने देखा कि यह जानते ही दोनों अभिभावकों के चेहरे खिल उठे| दोनों ने एक ही तरह के उद्‌गार व्यक्त किए कि अंग्रेजी बोलते-बोलते वे परेशान हो गए थे, अब खुलकर बातें होंगी| मैं उनकी बातें सुनकर यही सोच रही थी कि आखिर हम हिन्दी बोलने में इतना क्यों सकुचाते हैं| हमारी मातृभाषा जो कि राष्ट्रभाषा भी है, कितनी सरल और कर्णप्रिय है और यह हमारी भारत माता की भाषा है| माता और संतान की भाषा एक ही होगी, तभी तो भावपूर्ण रिश्ते बनेंगे| गर्व से हिन्दी में बातें करें|
                      ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

चटपटी

चाट चटपटी



दो  चीजें  सबको  हैं  भाती
चटपटी बात और चटपटी चाट
बात चटपटी अच्छी है लगती
पर वार वो तीखा भी  करती
चाट चटपटी जिह्वा को जँचती
तीखी होती  आँखों से बहती|

गोल-गोल  काबुली के दाने
आलू-टिक्की पर सज जाते
उसपर खट्टी-मीठी  इमली
फ़ैल-फै़ल  सबको  ललचाते
दही भी उसपर बहता रहता
चाट मसाला आने को कहता
लाल मिर्च की  बुकनी छींट
हरी मिर्च  भी  गाती  गीत
हल्दीराम के सेव  छिड़क दो
कटे केले की  परत जमा दो
पात धनिया उसपर सजा दो|

इस  चाट  की  कोई  सानी नहीं
खाकर जानो, बात ये बेमानी नहीं|

कई घंटे मुँह में बसी रहती
तीखी चटपटी बातें अक्सर
दिल  में  ज्यों फ़ँसी रहती
एक तीखी लगती जिह्वा को
एक तीखी लगती हृदय को
फिर भी  मन  क्यों भागता
इन चटपटों के ही पीछे-पीछे|

              ऋता शेखर मधु

रविवार, 4 सितंबर 2011

शिक्षक दिवस


शिक्षक दिवस के अवसर पर आदर्श शिक्षक एवं राष्ट्रपति
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को शत-शत नमन करती हूँ|
 विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक के शिक्षकों
का हार्दिक नमन करती हूँ|





आदर्श शिक्षक
आदर्श शिक्षक ही बनते राष्ट्र का आधार
राष्ट्र के लिए वे बनाते भावी कर्णधार||

सच्चे गुरू की सोच कभी नहीं होती संकीर्ण
सदा करते रहते वे ज्ञान प्रकाश विकीर्ण||

प्यार से जीता जाता जहाँ शिष्य का मन
वहाँ बहार छा जाता विद्यालय बनता चमन||

आदर्श अध्यापक होते विद्याव्यसनी निरहंकार
राजा भी नतमस्तक होते त्याग कर अहंकार||

झेल जाते महान शिक्षक प्रतिकूलता के चक्रवात
बुझने नहीं देते निष्ठा-दीप हो भयंकर झंझावात||

अच्छे शिक्षक की दृष्टि सदा होती समभाव
मेधावी-मंद में वे कभी नहीं करते भेदभाव||

आदर्श शिक्षक और राष्ट्रपति थे डॉ राधाकृष्णन
सम्मान हेतु ही जन्म दिवस बना शिक्षक दिवस||
                         ऋता शेखर मधु