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शनिवार, 25 मई 2013

लाल फूल सर्पीली पत्ती -गुलमोहर

स्वर्ग अप्सरा
गुलमोहर चुन्नी
ओढ़ के आई|१|

लाल सितारे
हरी चुनरी पर
लगते प्यारे|२|

धरा की गोद
करते अठखेली
स्वर्ग के फूल|३|

तपी धरती
लाल अँगार बना
गुलमोहर|४|

लावण्य भरा
अँखियों का सुकून
गुलमोहर|५|

सर्पीली पत्ती
नरम मुलायम
अदा दिखाए|६|

 तपिश भूला
ताज़गी से झूमता
देता संदेश|७|

रब ने भेजा
स्वर्ग से गुलदस्ता
भेंटस्वरूप|८|

गुलमोहर
सजा देता नैनों में
ख्वाब रंगीन|९|

...ऋता शेखर मधु..

इन हाइकुओं को हाइगा के रूप में यहाँ पर देखें...
http://hindihaiga.blogspot.in/2013/05/blog-post_25.html

सोमवार, 20 मई 2013

निमिया के छाँव तले...



चैत के महीने में नीम की पत्तियाँ, फूल, फल, छाल आदि का प्रयोग खाने या लगाने के लिए किया जाता है|
इससे काफी रोग दूर भाग जाते हैं| यह सबसे अधिक आक्सीजन देने वाला भी पेड़ है अतः इसके नीचे समय बिताने से शरीर में स्फूर्ति बढ़ती है| इसी आधार पर प्रस्तुत है एक गीत...

निमिया के छाँव तले...

चल री सखी
हम डालें झूले
निमिया के छाँव तले

ए री सखी
हम काहे डालें झूले?
निमिया के छाँव तले

सुन री सखी
चैत में झूमें
नरम कोमल कोंपल
फाहे सा एहसास मिले
शुद्ध हवा साँस मिले
खा लो जो कोंपले
खून भी साफ मिले
निमिया के छाँव तले|१|

चल री सखी
हम चुन लें फुलवा
निमिया के छाँव तले

ए री सखी
हम काहे चुन लें फुलवा?
निमिया के छाँव तले

सुन री सखी
अंजुरी भर चुन लो
भीनी दुधिया फुलवा
पीसो और लगाओ सखी
सूरत निखरती चले
निमिया के छाँव तले|२|

चल री सखी
हम खाएँ निम्बोरी
निमिया के छाँव तले

ए री सखी
हम काहे खाएँ निम्बोरी?
निमिया के छाँव तले

सुन री सखी
थोड़ी सी मीठी
थोड़ी थोड़ी कड़वी
जाए जो तन में
रोग भागे क्षण में
काया निरोगी बने
निमिया के छाँव तले|३

चलो री सखियो
चलो सहेलियों
हम डालें झूले
फुलवा को चुन लें
निम्बोरी भी गुन लें
निमिया के छाँव तले
गाँव सा प्यार पले
निमिया के छाँव तले|४
...........ऋता शेखर ‘मधु’

मंगलवार, 14 मई 2013

शिव विवाह



शिव विवाह

विवाह की रस्म
बदन पर भस्म
सिर पर जटा
अलबेली छटा
दहकते भाल
कमर में छाल
सर्प का हार
बैल पर सवार

ऐसो सिंगार कियो शिव ने
परछावन को आह्लादित माता
जहरीली फुफकार पर
विस्फरित नयनों से
मूर्छित हुई जाती है|

बराती बन चले
भूत-बिच्छु-प्रेत
करें गज़ब का शोर
अज़ब बोल समेत
खड़काते करताल
डराते काल कपाल

विधि ने रच दियो विधान
देख सजावट ऐसो अनोखी
सोलह श्रृंगारित पार्वती
मुग्ध नयनों से निहार
सम्मोहित हुई जाती है|

..............ऋता शेखर मधु

शनिवार, 11 मई 2013

माँ मुझे अपने आँचल में छुपा ले...




माँ, मैं तेरी बगिया की
कोमल सी इक फूलकली थी
मुझको सहलाती
मुझको दुलराती
अपने अँगना को तू महकाती
मेरी एक हंसी पर तू
क्षण क्षण न्योछावर हो जाती
मुझको अपने गले लगाकर
बिन कहे सब कुछ कह जाती
बहुत अकल तब नहीं थी मुझको
पर तेरा अनकहा विस्मित कर जाता
पकड़ के तेरी ऊँगली
डग डग भरती मैं शान से चलती
जब जब रिजल्ट आता था मेरा
सौ सौ बलाएँ तू लेती थी
मुझे बनाया दुल्हन जब
काला ढिठौना जड़ दी थी तू|

माँ, आज तू बिल्कुल बूढ़ी है
पर मुझको बच्ची सी लगती है
कुछ बातों पर रूठती
कुछ पर खिलखिल हंसती है
तुझको सहलाती
तुझको दुलराती
तेरी सेवा करती हुई
मैं तेरी माँ बन जाती हूँ|
जब भी तू जो खाना चाहे
उसे पकाती उसे खिलाती
मैं तेरी माँ बन जाती हूँ|
कभी अनजानी किसी भूलपर
तू रूठ के आँसू भर लेती है
तुझे मनाने को तत्पर
मैं तेरी माँ बन जाती हूँ|
अपनी ख्वाहिश तू कहती है
जब भी जाऊँ इस जग से
मुझको खूब सजाना तू
अब माँ तू बतला दे मुझको
तेरी माँ बनकर क्या मैं
काला ढिठौना लगा पाऊँगी?

एक तरफ बिटिया है मेरी
एक तरफ तू खड़ी है माँ
दोनो की ही माँ बनकर
क्या दोनों के होठों पर
मुस्कान के मोती जड़ पाऊँगी
माँ एक बात बतला दे मुझको
यह वक्त क्यूँ बदल जाता है माँ?

................ऋता शेखर मधु

बुधवार, 1 मई 2013

मई दिवस

श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी करता मई दिवस


मई माह के पहले दिन अर्थात 1 मई को विश्व के लगभग सभी देशों में मई दिवस या श्रमिक दिवस मनाया जाता है. श्रमिकों के काम के घंटों को कम करने और उन्हें अधिकार दिलाने के लिए अमेरिका में एक मुहिम की शुरूआत हुई. धीरे-धीरे यह मुहिम एक आंदोलन में परिवर्तित हो गई और भारत पहुंच गई. अमरीका में तो श्रमिक दिवस मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन भारत में इसे पहली बार 15 जून, 1923 को मनाया गया. इसके अलावा कई राष्ट्रों और संस्कृतियों में यह दिवस पारंपरिक बसंत महोत्सव के तौर पर भी मनाया जाता है और इस दिन सार्वजनिक अवकाश रखने का भी प्रावधान है.

मई दिवस का इतिहास
अमरीका में शुरू हुआ मजदूर आंदोलन, वहां उमड़े औद्योगिक सैलाब का ही एक हिस्सा था. इसका सीधा संबंध अमरीका की आजादी के लिए चल रही लड़ाई तथा 1860 में हुआ गृहयुद्ध भी था. 19वीं शताब्दी तक पहुंचते-पहुंचते मजदूर संगठन एवं मजदूर यूनियन बेहद मजबूत और अपने अधिकारों के लिए जागरुक भी हो गए थे.
सबसे पहले मजदूरों के जो भी संगठन बने उनमें बुनकर, दर्जी, जूते बनाने वाले लोग, फैक्ट्री आदि में काम करने वाले पुरुष तथा महिला मजदूर प्रमुख थे. अपने अधिकारों की मांग करते हुए मजदूरों ने राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने की भी कोशिश की और वर्ष 1834 में नेशनल ट्रेड यूनियन का निर्माण किया गया.

संगठन से जुड़े मजदूरों ने सबसे पहले अपने काम के घंटे कम करने के लिए संघर्ष किया, जिसमें सबसे ज्यादा योगदान अमरीकी मजदूर ‘तहरीक’ का था. नेशनल ट्रेड यूनियन और अन्य मजदूर संगठनों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि 1 मई, 1886 को श्रमिक दिवस मनाया जाएगा. कुछ राज्यों में बहुत पहले से ही मजदूरों के लिए आठ घंटे काम करने का चलन था परंतु इसे कानूनी मान्यता नहीं दी गई थी. इस चलन को पूरी तरक वैधानिक बनाने के लिए पूरे अमेरिका में 1 मई, 1886 को हड़ताल हुई. जिसके बाद पहले जहां मजदूरों को 10 घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता था वहीं अब उनके लिए 8 घंटे निश्चित कर दिए गए.

may day 2भारत में मई दिवस
भारत में मई दिवस पहली बार वर्ष 1923 में मनाया गया जिसका सुझाव सिंगारवेलु चेट्टियार  नाम के एक प्रभावी कम्यूनिस्ट नेता ने दिया. उनका कहना था कि दुनियां भर के मजदूर इस दिन को मनाते हैं तो भारत में भी इसकी शुरूआत की जानी चाहिए. मद्रास में मई दिवस मनाने की अपील की गई. इस अवसर पर वहां कई जनसभाएं और जुलूस आयोजित कर मजदूरों के हितों के प्रति सभी का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया.



आज भी विश्व के सभी बड़े देशों में श्रमिक दिवस या मई दिवस मनाया जाता है. भले ही अलग-अलग राष्ट्रों में इस दिन को मनाने का तरीका भिन्न है लेकिन इसका एकमात्र उद्देश्य मजदूरों को मुख्य धारा में बनाए रखना और उनके अधिकारों के प्रति समाज को और स्वयं उन्हें जागरुक करना है.
जागरण जंक्शन से साभार....