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शनिवार, 15 अगस्त 2015

बूँदें...

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सावन का बूँदों से अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है| प्रस्तुत है .......

बूँदें...
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आसमान की नई कहानी
धरती पर ले आतीं बूँदें
तपी ग्रीष्म में भाप बनीं वो
फिर बादल बन जाती बूँदें
श्वेत श्याम भूरे लहंगे
इधर उधर इतराती बूँदें
सखी सहेली बनकर रहतीं
आपस में बतियाती बूँदें
नई नई टोली जब जुटती
अपना बोझ बढाती बूँदें
थक जातीं जब बोझिल होकर
नभ में टिक ना पातीं बूँदें
ताल तलैया पोखर भरतीं
कागज़ नाव तिराती बूँदें
रिमझिम रिमझिम बारिश करके
बच्चों संग नहाती बूँदें
सुन मल्हार राग आ जातीं
कजरी गीत सुनाती बूँदें
झूले पेंगें हरियाली में
गोरी के मन भाती बूँदें
तृषित धरा की सोंधी खुशबू
गिरकर खूब उड़ाती बूँदें
विकल व्यथित वीरान हृदय में
आँसू बन बस जाती बूँदें
गंगा की पावन लहरों में
गोद भराई पाती बूँदें
लहरों पर इठलाती गातीं
सागर में मिल जाती बूँदें
ऊपर उठतीं नीचे गिरतीं
सिंधु में जा समाती बूँदेंं
स्वाति को सीप का साथ मिले
मोती बन रम जाती बूँदें
आती बूँदें जाती बूँदें
जीवन को कह जाती बूँदें
या तो लहरों में खो जाती
या मोती बन जाती बूँदे
*ऋता शेखर 'मधु'*

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

ग़ज़ल

एक ग़ज़ल...
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मुकाबिल आंधियों के दीप जलना भी जरूरी था
मुसीबत लाख आये ख्वाब पलना भी जरूरी था

अदब के साथ राहों पर चले थे हम सदा साथी
वही देने लगे बाधा बदलना भी जरूरी था
लगी ठोकर जमाने से कदम भी लड़खड़ाए थे
हँसी में हौसलों को तब मचलना भी जरूरी था
समंदर में लहर उठना रवानी का तकाज़ा है
गुहर लेकर बिना डूबे निकलना भी जरूरी था
सुगंधों से भरी देखो गुलाबों की कली न्यारी
बिखरने को हवाओं में टहलना भी जरूरी था
...ऋता