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शनिवार, 14 नवंबर 2015

सच्ची भक्ति-लघुकथा

''आंटी, आप मंदिर जा रही हैं|" नेहा के हाथों में पूजा की थाल देखकर रहमान ने पूछा|
वह अभी अभी उसके बेटे प्रबोध के साथ आया था|
''हाँ बेटे, पूजा करके आती हूँ|"
जब वह मंदिर से लौटी तो उसने देखा कि रहमान अपने बैग के पास बैठा था और बैग के खुले मुँह से पिस्तौल झाँक रही थी| एकबारगी सिहर गई नेहा| बेटे का मित्र था इसलिए कुछ कह नहीं सकती थी|
दूसरे दिन पास के ही मस्जिद के पास नमाज के लिए रहमान तैयार होने लगा तो नेहा के पास आया| प्रबोध भी उसी वक्त आया और मंदिर जाने की इच्छा व्यक्त करने लगा|
नेहा बोली, तुम दोनो आपने भगवान या खुदा के पास दर्शन के लिए जाओ| पर यह हमेशा याद रखना कि उससे मन की बातें छुपती नहीं| ईश्वर उनकी ही सुनते हैं जो सच्चे दिल से उनकी आराधना करता है| ऐसे में सिर्फ दिखावा के लिए पूजा करना या नमाज के लिए जाना उनकी तौहीन है|
जाने से पहले रहमान ने अपना बैग नेहा को दे दिया और सच्ची भक्ति के लिए चला गया|
नेहा टुकुर टुकुर देख रही थी, वह वाकई निश्छल था या उसकी बातों का असर था|
*ऋता शेखर 'मधु'*

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

बात बन गई -लघुकथा

बात बन गई 
जब भी ग्यारहवीं कक्षा का प्रथम दिन रहता, नेहा महापात्र के लिए बहुत जिज्ञासा का दिन रहता| दसवीं के बाद बहुत तरह के संस्कार और माहौल से बच्चे आते जिन्हें समझने में थोड़ा वक्त लग जाता| कुछ शरारती बच्चों से भी पाला पड़ जाता कभी कभी|
रजिस्टर लेकर नेहा ने क्लासरूम में प्रवेश किया| वह सर झुकाकर हाजिरी लेने लगी तभी सीटी की आवाज आई| नेहा ने सिर उपर उठाया किन्तु सभी भोले बनकर बैठे थे| जाहिर सी बात थी कि कुछ पूछना बेकार था| नेहा ने हाजिरी लिया| बॅाटनी का प्रथम चैप्टर पढाया और चली गई|
दूसरे दिन भी वही सीटी की आवाज और बच्चों के चेहरों पर दबी सी हँसी थी|
आज नेहा कुछ सोच कर आई थी|
उसने कहा,''बच्चों , अगले महीने स्कूल का वार्षिक महोत्सव है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं| इसमें हम अच्छी उत्कृष्ट कला को बढ़ावा देते हैं| मैं अभी आपलोगों को अच्छी तरह से नहीं जानती पर दो दिनों में यह जान गई हूँ कि आपके बीच कोई है जो सीटियों के माध्यम से अच्छी धुन निकाल सकता है| मैं उस बच्चे का नाम सांस्कृतिक उत्सव के लिए देना चाहती हूँ|''
कुछ देर की शाति के बाद एक छात्र खड़ा हुअा|
नेहा की मुस्कान बता रही थी कि बात बन गई थी|
*ऋता शेखर मधु*