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बुधवार, 18 सितंबर 2019

मेरा हिन्दुस्तान, जग में बहुत महान है - सोरठे


सोरठे - हिन्दी पखवारा विशेष छंद

मेरा हिन्दुस्तान, जग में बहुत महान है।
हिन्दी इसकी जान, मिठास ही पहचान है।।

व्यक्त हुए हैं भाव, देवनागरी में मधुर।
होता खास जुड़ाव, कविता जब सज कर मिली।।

कोमलता से पूर्ण, अपनी हिन्दी है भली।
छोटे बड़े अपूर्ण, ऐसे तो न भेद करे।।

होता है व्यायाम, मूर्धा तालू कण्ठ का।
लेती क्ष त्र ज्ञ से काम, द्वि एकल जब साथ हुए।।

जब भी लगे हलन्त, व्यंजन स्वर से हो अलग।
जुटकर वर्णों के अंत, नवल वर्ण की नींव रखे।।

अपनी भाषा छोड़, क्यों इत उत दोलन करे।
जनमानस को जोड़, सद्भावों के पथ रचो।।

आत्मसात हो नित्य, वर्तनी शुद्धता से बढ़े।
हिन्दी का साहित्य, नित नए सोपान गढ़े।।

-- ऋता शेखर 'मधु'

सोमवार, 9 सितंबर 2019

लगता नया नया हर पल है

गीत
जाना जीवन पथ पर चलकर
लगता नया नया हर पल है

धरती पर आँखें जब खोलीं
नया लगा माँ का आलिंगन
नयी हवा में नयी धूप में
नये नये रिश्तों का बंधन

शुभ्र गगन में श्वेत चन्द्रमा
लगता बालक सा निश्छल है

नया लगा फूलों का खिलना
लगा नया उनका झर जाना
मौसम की आवाजाही में
फिर से बगिया का भर जाना

आम्रकुंज की खुशबू पाकर
बढ़ती कोयल में हलचल है
लगा नया लहरों का आना
आकर फिर से वापस जाना

नए नए सीपों को चुनकर
गहराई की थाह लगाना
करे नहीं परवाह पंक की
खिलता नया नया शतदल है

है नवीन लेखन की बातें
नया सफर नयी मुलाकातें
हर दिन का सूरज नया नया
नया स्वप्न ले आतीं रातें

नए इरादे नयी समस्या
नया ढूँढता कोई हल है

ऋता शेखर म
धु

रविवार, 1 सितंबर 2019

तुझको नमन

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सबको राह दिखाने वाले
हे सूर्य! तुझको नमन

नित्य भोर नारंगी धार
आसमान पर छा जाते
खग मृग दृग को सोहे
ऐसा रूप दिखा जाते
आरती मन्त्र ध्वनि गूँजे
तम का हो जाता शमन

हर मौसम की बात अलग
शरद शीतल और जेठ प्रचंड
भिन्न भिन्न हैं ताप तुम्हारे
पर सृष्टि में रहे अखंड
उज्ज्वलता के घेरे में
निराशा का होता दमन

जितना वेग तपन का धरते
उतना ही नीरद भर देते
बूँदों में वापस आकर के
तन मन की ऊष्मा हर लेते
साँझ ढले पर्वत के पीछे
शनै शनै करते गमन
हे सूर्य! तुझको नमन !

ऋता शेखर 'मधु'