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मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

फिल्म पर दोहे












लाइट ऐक्शन कैमरा, तीन शब्द है फ़िल्म।

संप्रेषण संवाद का, बहुत बड़ा है इल्म।।1


सुन्दर सज्जा नृत्य की, आकर्षक तस्वीर|

देशभक्ति या प्रेम की, सुन्दर सी तहरीर||2


तेरह सन उन्नीस में,प्रथम फिल्म थी मूक|

मिली साल इकतीस में, मौन रील को कूक||3


राजा हरिश्चंद्र रहा, मूक फ़िल्म के पास|

आलम आरा स्वर सहित, रचे फ़िल्म इतिहास||4


सोलह नौवें माह का, फ़िल्म दिवस श्रीमान|

सस्ती मिलती है टिकट, यही मान पहचान||5


फ़िल्म जगत के नाम कुछ, भारत में हैं ज्ञात।

टॉलीवुड तेलुगु-तमिल,बॉलीवुड विख्यात।।6


मिले सिनेमा में हमें, चलते फिरते दृश्य।

कुछ हैं बालक के लिए,रहते कुछ अस्पृश्य।।7


फाल्के जी के नाम पर, बने हैं पुरस्कार।

अभिनय निर्देशन बने, उत्कृष्ट फिल्मकार।।8


पार्श्व गायकी के लिए, लता रहीं उत्कृष्ट।

पुरुष वर्ग में थे रफी, रहे जो अति विशिष्ट।।9


शोमैन जो कहे गए, वह थे राज कपूर।

सुन्दर मधुबाला हुईं, दुनिया में मशहूर।।10


कवि प्रदीप ने रच दिया, देशभक्ति का सार।

मन वीणा के तार पर, मधुरिम है झंकार।।11


फिल्में मन पर डालती, अपना बहुत प्रभाव।

उनमें कुछ सन्देश हों, संग रहे कुछ चाव।।12

रविवार, 25 दिसंबर 2022

यात्रा

यात्रा-

यात्रा के हैं अनगिन रूप
कभी छाँव मिले कभी धूप
प्रथम यात्रा परलोक से
इहलोक की
नौ महीने की विकट यात्रा
बन्द कूप में सिमटी हुई यात्रा
जग से जुड़ता जब नाता
भोर से सायं तक
पृथ्वी की यात्रा
गंगोत्री से खाड़ी तक
गंगा की यात्रा
बचपन से बुढ़ापा तक
देह की यात्रा
कभी पैदल यात्रा
कभी पटरी पर चलती
रेल की यात्रा
नभ में बादलों के बीच
यान की यात्रा
सागर में
डूबती उतराती यात्रा
कभी दैनिक यात्रा
या फिर साप्ताहिक
मासिक या वार्षिक
समय की पाबंदी पर
बस यात्रा ही यात्रा
क्योंकि करनी है
मुख से पेट तक
भोजन को यात्रा
हर यात्रा में करनी होती तैयारी
बस चूक हो जाती है
अंतिम यात्रा की तैयारी में
जाने कितना कुछ
छोड़ जाते हैं ऐसा
जिसे स्वयं ठिकाने लगाना था
पर अपनी देह को ठिकाने
कोई न लगा सकता
हर आत्मनिर्भर होकर भी
बेबस है
परावलम्बन होना ही है
फिर घमंड किस बात का
इस यात्रा का टिकट तो है
बस तिथि का नहीं पता।
कैसे किस विधि जाना है
रीति का पता नहीं
– ऋता शेखर मधु