पृष्ठ

सोमवार, 1 अगस्त 2011

बारिश की प्रथम बूँद


बारिश की प्रथम बूँद
Rain Graphics and Scraps
                                  फोटो-Friends18.com से साभार

घटा छाई घनघोर सखी री
नाचे मन का मोर
बूँद-बूँद बरसा नीर सखी री
तन मन हुआ विभोर
सोंधी खुशबू उड़ी सखी री
मन में उठा हिलोर
भीग  गई  चूनर सखी री
गीली हुई साड़ी की कोर
पौधे झूमें लहराएँ सखी री
हुआ भँवरों का शोर
खिले सुमन सुंदर सखी री
जी चाहे लूँ बटोर
चाँदनी शीतल हुई सखी री
टक टक तके चकोर
आए किसी की याद सखी री
क्या संध्या क्या भोर
मन हुलसा तन हुलसा सखी री
चले न कोई जोर
बूँद बन गई धारा सखी री
बहे किसी भी ओर
चल बारिश में चल सखी री
भूलें ओर और डोर
आ  झूला  झूलें  सखी री
छू लें गगन का छोर|

             ऋता शेखर मधु

---------------------------

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! चित्र भी बहुत सुन्दर लगा!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. मौसम के अनुकूल मधुर गीत । बहुत सुन्दर !मधुर भाषा ! फोटो लाजवाब !!

    जवाब देंहटाएं
  3. नए ब्लॉग आपको बहुत बहुत मुबारक !
    जितना सुन्दर आपका ब्लॉग है .....उतना ही सुन्दर नाम ......मधुर गुंजन
    मानो कानों में रस घोल रहा है !
    यह कविता पढ़कर मन भीगता ही चला गया ...इन शब्द बूँदों में !!
    बधाई स्वीकार करें !
    हरदीप

    जवाब देंहटाएं
  4. भावों से भरी एक मोहक रचना...सावन के अनुकूल...मेरी बधाई...।
    प्रियंका

    जवाब देंहटाएं
  5. कविता पढ़ते-पढ़ते मैं तो भींग ही गया|
    कविता और फोटो एक दूसरे को सजीवता
    प्रदान कर रहे हैं|

    जवाब देंहटाएं
  6. बूँद बन गई धारा सखी री
    बहे किसी भी ओर
    चल बारिश में चल सखी री
    भूलें ओर और डोर
    आ झूला झूलें सखी री
    छू लें गगन का छोर|
    bhigi bhigi si kavita
    yahan bahut garmi hai aapne itna sunder chitr lagaya hai man horaha tha ki bhig jaun is barish me
    bahut sunder
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  7. जितना अच्छा चित्र,
    उतनी अच्छी कविता -
    इन भिगी पंक्तियों के लिए,
    शुक्रिया आपको ऋता !

    यह कविता और चित्र एक दूसरे की सार्थकता इतनी सिद्ध करते हैं कि मन स्वयं ही गुनगुनाने लगता है |

    जवाब देंहटाएं
  8. बारिश पर एक सुन्दर गीत लिखा है सखी रे ... ब्लॉग में आने पर आपको ब्लॉग सखी मान लिया ..आप इसी तरह से सुन्दर सुन्दर कविताओं से हमारे मन को भिगोती रहें ..सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. shabd shabd to bhig
    hi raha hai is
    barish main lekin
    man bhi bhi gaya
    bahut hi accha likhte hain aap
    chulain gagan ka chor waah....

    जवाब देंहटाएं
  10. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर कविता , वर्षा ऋतू को आपने बहुत अच्छे शब्दों में अलंकृत किया है ..

    बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    जवाब देंहटाएं
  12. कोमल भावो से सजी सुन्दर गीत...बधाई ऋता..

    जवाब देंहटाएं
  13. मन झूम उठा ......वाह बहुत उम्दा

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!