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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षाबंधन - शुभकामनाओं सहित...



आस का पंछी
बहनें होती हैं चंचल चिड़िया
फुदक फुदक कलरव करतीं
फिर घर आँगन सूना करके
कहीं और चहकने उड़ जातीं
राखी के दिन यह चिड़िया
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बन जाता है आस का पंछी
सुबह सवेरे भइया के मुँडेरे
मीठे तान का सुर सजाता
पंछी के सुमधुर गुंजन को
सिर्फ़ भइया ही सुन पाता
नैनों में स्नेह भरे
संवेदन से वह भर जाता
समेट भइया की संवेदना
आस का पंछी लौट आता
नयन भले ही उदास लगें
हृदय खुशी से फूला न समाता|

वह घर होता नीरस-नीरस
जहाँ  बहनें  नहीं  होतीं
शान्त स्तब्ध बोझिल सा
हवाएँ  होतीं  स्पंदनहीन
न झगड़े न मान मनौवल
न स्नेह भरी गुप-चुप बातें
बिन बेटी घर होता जैसे
बिन  घंटी  का  मंदिर|

ऋता शेखर 'मधु'



1 टिप्पणी:

  1. बेहद मार्मिक , दिल को छूने वाली कविता । आपको हम दोनोंकी ओर से बधाई बहन ! सस्नेह रामेश्वर काम्बोज और वीरबाला काम्बोज

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