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शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

पंचदिवसीय त्योहार-दीपावली


वर्षा ऋतु से उत्पन्न हुई  सीलन और गन्दगी को दूर कर अब हम सब तैयार हैं पाँच दिनों का त्योहार मनाने के लिए|
धनतेरस, दीपावली, चित्रगुप्त पूजा एवं भाईदूज की हार्दिक शुभकामनाएँ|
१) धन त्रयोदशी- २४.१०.२०११
इसे आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि की याद में मनाया जाता है|समुद्र मंथन में धन्वन्तरि महाराज अमृत कलश लेकर समुद्र से निकले थे
और देवताओं को अमृत पिलाकर उन्हें आयु और आरोग्य प्रदान किया था| इसे धनतेरस भी कहते हैं| ऐसा विश्वास है कि इस दिन सोना, चाँदी या बरतन खरीदने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं| अपनी अपनी हैसियत के अनुसार सभी कुछ न कुछ खरीदते हैं|
आज के दिन यम का दीप निकाला जाता है|देर रात जब घर के बच्चे सो जाते हैं तो घर के अन्दर से ही दीया जला कर बाहर ले जाते हैं और उसे मसूर दाल की ढेरी पर रखा जाता है| यम को यह दीप दान करने से पति और पुत्र की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है|
२) नरक चतुर्दशी- २५.१०.२०११
आज के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था|
आज के दिन को बजरंगबली हनुमान की जन्मतिथि के रूप में भी मनाया जाता है|
आज के दिन एक खास स्नान का बहुत महत्व है| कहते हैं कि इस स्नान से रूप निखर जाता है| चंदन, कपूर, मंजिष्ठा, गुलाब, नारंगी का छिलका और हल्दी को मिलाकर खास उबटन तैयार किया जाता है| सूर्योदय से पहले इस उबटन को लगाकर स्नान करने से रूप में चार चाँद लग जाते हैं| इसे रूप चौदस भी कहते हैं| इसे छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है| 
३) दीपावली- २६.१०.२०११
पाँच दिनों के त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन दिवाली का है|
आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी के दिन मर्यादापुरुषोत्तम राम ने लंका में लंकापति रावण को युद्ध में पराजित करने के बाद सीता को वापस पाया था| विजयादशमी के बीस दिनों के बाद पुष्पक विमान से राम जी, सीता जी एवं लक्ष्मण जी तथा अन्य अयोध्या वापस लौटने लगे| धरती पर घुप्प अंधकार छाया था क्योंकि उस दिन कार्तिक अमावस्या की रात थी| राम जी को उतरने का सही स्थान पता चले इसके लिए अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को ढेर सारे घी के दीपक जलाकर रौशन कर दिया था| इस तरह से उन्होंने वापस लौटने की खुशी भी जाहिर की थी| तभी से ही इस दिन को दीपों की पंक्ति से सजाने की परंपरा शुरू हो गई|
दीपावली के दिन गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा का भी विधान है| गणेश जी को लड्डू चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है| घरों में घरौंदा बनाने का भी रिवाज़ है| कुलिया में लावा, फ़रही और पचंजा(पाँच तरह के अनाज) डालकर बहनें अपने भाइयों को देती हैं| अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है।
 ४) गोवर्धन पूजा- २७.१०.२०११

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का होता है।

गांव और शहरों में पारंपरिक रूप से गाय और उसके गोबर से बने पर्वत की पूजा होती है। भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग लगता है।
भगवान कृष्ण ने ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत की थी, जो उस वक्त से आज तक चली आ रही है। इंद्र को इस बात का अहंकार हो गया था कि वो बारिश कराते हैं, तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र को यह एहसास दिलाया कि वो पानी बरसा कर धरती पर कोई कृपा नहीं करते, बल्कि यह तो उनका कर्तव्य है, जो विधाता ने उन्हें सौंपा है।
भगवान कृष्ण ने इसके जरिए ये संदेश दिया था कि अपना कर्तव्य करना चाहिए बिना फल की चिंता किए। इसलिए उन्होंने बारिश के देवता इंद्र को भी ये समझाया।
कृष्ण ने इंद्र को समझाया था कि बारिश समय पर करना तुम्हारा कर्तव्य है, इसके लिए तुम्हें कोई पारिश्रमिक नहीं मिले तो तुम्हें नाराज होने क कोई अधिकार नहीं है। तुम केवल इसलिए पूजे जाने योग्य नहीं हो कि तुम समय पर बारिश करवाते हो, ब्रह्मा ने तुम्हें यह काम सौंपा है और तुम्हें इसे हर हाल में करना है। इंद्र ने अपनी गलती मानी। तभी से गोवर्धन पूजा का प्रचलन चल पड़ा।
गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
५) यम द्वितीया- २८.१०.२०११
आज के दिन दो प्रकार की पूजा होती है|
चित्रगुप्त पूजा और भाईदूज
चित्रगुप्त पूजा-
भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं।
सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है।
भाई दूज( गोधन)-
यह एक सामूहिक पूजा है|गाय के गोबर से एक चतुर्भुज बनाया जाता है|इसकी चारो भुजाओं को बीच से खोल दिया जाता है,यह यमपूरी का प्रतीक है| बीच में गोबर से ही यम की आकृति बनाई जाती है| उसके
उपर एक नया ईट रख दिया जाता है|यम की विधिवत पूजा की जाती है|इस पूजा के लिए मुरली की माला, रेंगनी का काँटा, बजरी(कुशी केराव), नारियल,कच्चा रूई एवं मिठाई आवश्यक वस्तुएँ हैं|पूजा के क्रम में बहनें भाई को भला-बुरा कहती हैं, और फिर अपनी जीभ पर रेंगनी का काँटा गड़ाकर प्राशयश्चित करती हैं|कच्चे रूई से माला बनाकर भाई की आयु जोड़ती हैं और यम से भाई की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं|फिर समाठ(धान कूटने के लिए प्रयोग किया जाने वाला काठ का बना मूसल) से ईंट पर इतने प्रहार किए जाते हैं कि ईंट और यम चकनाचूर हो जाते हैं| भाईदूज  में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है। भाईदूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि यम देवता ने अपनी बहन यमी  को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इसी कारण इस दिन  नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं।
ऋता शेखर 'मधु'

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सारी बातों से अवगत कराने के लिए धन्यवाद|
    सारे त्योहार एवं चित्रगुप्त पूजा के लिए आपको भी शुभकामनाएं|

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  2. सुन्दर प्रस्तुति
    परिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं

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  3. बहुत बढिया जानकारी उपलब्ध करवाई…………आभार्……………दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं ।

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  4. पाँच दिन के इस त्यौहार की बहुत अच्छी जानकारी दी है ...

    दीपावली की शुभकामनायें

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  5. बहुत सुंदर !
    दीपावली पर आपको और परिवार को हार्दिक मंगल कामनाएं !

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  6. पाँच दिन के इस त्यौहार की बहुत अच्छी जानकारी दी है .

    दीपावली की शुभकामनायें

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  7. आप सभी को सभी त्योहारों के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ!
    आपके उत्साहवर्धक शब्द नई उर्जा प्रदान करते हैं|
    हार्दिक आभार एवं धन्यवाद|

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  8. बहुत बढिया जानकारी
    दीपावली की शुभकामनायें....

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  9. दीपावली के महत्वपूर्ण त्यौहार की पांचों दिनों की जानकारी देने के लिए बहत बहुत शुक्रिया ...
    आपको दीपावली की मंगल कामनाएं ...

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  10. पंचदिवसीय त्योहारों की ब्रिस्तति जानकारी दने के लिए आभार...सुंदर प्रस्तुती......

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  11. सुन्दर विस्तृत विवरण :

    दिवाली की शुभकामनाये.

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  12. उत्तम प्रस्तुति! ज्ञानवर्द्धक!!

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  13. itni saari jaankari mili aapke lekh se iske liye dil se badhai swikaar kare..
    kavi vakt ki janjeero se aazadi mile to mere blog
    http//www.mknilu.blogspot.com pe v padhare..
    ...abhar.
    sadasya ban raha hu..

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