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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

किशोरों के लिए

मेरी आज की कविता बारहवीं क्लास में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए है जिनके सामने साल बदलते ही परीक्षा ओर प्रतियोगिता-परीक्षाओं की लम्बी कतार लगने वाली है|
निराशा की घटा हटा के रखो
धैर्य का दामन पकड़  के  रखो,
सब्र की मुट्ठी जकड़  के  रखो,
उम्मीदों के चिराग जला के रखो,
खुशियों के  दीप जगमग करेंगे|

निराशा की घटा हटा के  रखो,
प्यार की ज्योत जला के  रखो,
इच्छा की रंगोली सजा के रखो,
आनंद के सागर छलक  उठेंगे|

क्रोध की अग्नि बुझा के रखो,
वैर  के  बीज  सुखा के रखो,
बातों के तीर  छुपा  के रखो,
हर्ष  के  पौधे  लहक  उठेंगे|

प्रेम की धारा  बहा  के  रखो,
विश्वास की नींव जमा के रखो,
आशा की किरण जगा के रखो,
जीत  के  झंडे  लहर  उठेंगे|

श्रम के मोती चमका के रखो,
लगन की लौ बचा  के  रखो,
प्रयास की सीढ़ी लगा के रखो,
शौर्य  के सूरज  दमक उठेंगे||

       ऋता शेखर मधु

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्रोध की अग्नि बुझा के रखो,
    वैर के बीज सुखा के रखो,
    बातों के तीर छुपा के रखो,
    हर्ष के पौधे लहक उठेंगे|
    अनुभवी परामर्श

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  2. बेहतरीन प्रेरणादायक लयबद्ध रचना ...!
    आभार !

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  3. जब मैं दसवीं क्लास में था तब से ही फ़ालतू टाईप्स कुछ लिखते चला आ रहा हूँ..
    वैसे आपकी ये कविता पढ़ के जो सबसे पहला ख्याल आया की हम लोग जब बारहवीं में थे तब हमारे लिए तो किसी ने कविता नहीं लिखा :P

    इतना इन्सपिरेश्नल कविता हमें पढ़ने को मिलती तो बात कुछ और होती :P

    बाई द वे...बड़े जबरदस्त थे वे दिन!!

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  4. अच्छी रचना |बधाई |
    नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
    आशा

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  5. निराशा की घटा हटा के रखो,
    प्यार की ज्योत जला के रखो,
    इच्छा की रंगोली सजा के रखो,
    आनंद के सागर छलक उठेंगे|

    bahut hi sundar prastuti ....abhar ke sath hi badhai.

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