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सोमवार, 16 अप्रैल 2012

शिशु बेचारा



मैं बेचारा बेबस शिशु
सबके हाथों की कठपुतली
मैं वह करुं जो सब चाहें
कोई न समझे मैं क्या चाहूँ।

दादू का मै प्यारा पोता
समझते हैं वह मुझको तोता
दादा बोलो दादी बोलो
खुद तोता बन रट लगाते
मैं ना बोलूँ तो सर खुजाते।

सुबह सवेरे दादी आती
ना चाहूँ तो भी उठाती
घंटों बैठी मालिश करती
शरीर मोड़ व्यायाम कराती
यह बात मुझे जरा नहीं भाती।

ममा उठते ही दूध बनाती
खाओ पिओ का राग सुनाती
पेट है मेरा छोटा सा
उसको वह नाद समझती
मैं ना खाऊँ रुआँसी हो जाती
सुबक सुबक सबको बतलाती।

पापा मुझको विद्वान समझते
न्यूटन आर्किमिडिज बताते
चेकोस्लाविया मुझको बुलवाते
मैं नासमझ आँखें झपकाता
अपनी नासमझी पर वह खिसियाते।

चाचा मुझको गेंद समझते
झट से ऊपर उछला देते
मेरा दिल धक्-धक् हो जाता
उनका दिल गद्-गद् हो जाता।

भइया मेरा बड़ा ही नटखट
खिलौने लेकर भागता सरपट
देख ममा को छुप जाता झटपट
मेरी उससे रहती है खटपट।

सबसे प्यारी मेरी बहना
बैठ बगल में मुझे निहारती
कोमल हाथों से मुझे सहलाती
मेरी किलकारी पर खूब मुसकाती
मेरी मूक भाषा समझती
अपनी मरज़ी नहीं है थोपती।

दीदी को देख मेरा दिल गाता
“ फूलों का तारों का
सबका कहना है
एक हजा़रों में
मेरी बहना है।”

--
ऋता शेखर मधु

 रचनाकार: ऋता शेखर ‘मधु’ की बाल कविता - शिशु बेचारा http://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_8693.html#ixzz1s0YHyqYl

18 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चे के मन की भावना को बखूबी लिखा है ... बहुत सुंदर

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  2. पापा मुझको विद्वान समझते
    न्यूटन आर्किमिडिज बताते
    चेकोस्लाविया मुझको बुलवाते
    मैं नासमझ आँखें झपकाता
    अपनी नासमझी पर वह खिसियाते।

    :) :) :)

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर गीत.................

    बधाई ऋता जी.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर रचना ... बेचारा देखता है सब कुछ बोल नहीं पाता ...

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  5. पापा मुझको विद्वान समझते
    न्यूटन आर्किमिडिज बताते
    चेकोस्लाविया मुझको बुलवाते
    मैं नासमझ आँखें झपकाता
    अपनी नासमझी पर वह खिसियाते।... क्या करोगे बेटा , पापा बनकर तुम भी ऐसे ही होगे

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  6. मधुर मधुर मधुर गुंजन.
    शिशु बेचारा क्या जाने,यह तो वह ही जाने,
    पर आपने बहुत कुछ जनवा दिया है,ऋता जी.
    मधुर गुंजन हो रहा है मन में.
    आभार.

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  7. मैं बेचारा बेबस शिशु
    सबके हाथों की कठपुतली
    मैं वह करुं जो सब चाहें
    कोई न समझे मैं क्या चाहूँ।

    यह बात भी ठीक ही है....

    सुंदर गीत.

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  8. पापा मुझको विद्वान समझते
    न्यूटन आर्किमिडिज बताते
    सुन्दर रचना

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  9. बच्चे के मन की भावना पर बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    हार्दिक शुभकामनायें...

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  10. कविता तो बहुत ही अच्छी है.....आज जरा मन खिन्न सा था....बच्चे की जगह अगर बच्ची होती है तो संसार कितना निर्मम हो जाता है उसके लिए। एक अबोध बालक या बालिका का क्या दोष होता है जो उसे कूड़ेदान में लोग फेंक देते हैं।

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  11. बाल मन की भावना पर बहुत सुन्दर रचना, शुभकामनायें

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  12. समझते हैं वह मुझको तोता...

    तोता तो यह है ...सबसे प्यारा !

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  13. बच्चे मन के सच्चे.....बहुत ही सुन्दर....

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  14. मनोहारी ..बिलकुल बच्चे की तरह ...

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