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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

मेरा सहयात्री - ऋता



मेरा सहयात्री
करता है
बहुत प्यार मुझसे
मुँह अन्धेरे ही
भेजता संदेसा
खुद के आने का
आते ही उसके
गूँज उठती है
खगों की चहचह
सुरभित होते
पुष्पों की महमह
पाते ही संदेश
नींद उड़ जाती मेरी
चल पड़ती मैं
उसके पीछे-पीछे
वह लगा रहता
हर सेकेंड हर मिनट
हर घंटे हर कदम
मेरे पास- पास
साथ उसके चलने से
बनी रहती है ऊर्जा मेरी
कभी-कभी
होती है कोफ़्त
क्यूँ करता है वह
हर वक्त मेरा पीछा
कभी देखती उसे मैं
हँसकर और कभी
आँखें तरेर कर
उसे फ़र्क नहीं पड़ता
वह मुझे घूरता ही रहता
मैं भी कभी देखती
कभी अनदेखी करती
मेरे पीछे
कभी छोटी परछाई
कभी लम्बी परछाई बना
आगे- पीछे डोलता
धीरे-धीरे
वह थकने लगता
मैं भी थक जाती
आता जब विदाई का वक्त
पसर जाता
एक मौन सन्नाटा
पंछी नीड़ में दुबकते
फूल भी
पँखुड़ियाँ लेते हैं समेट
बुझा-बुझा सा वह
बुझी-बुझी सी मैं
मौन नजरों से
ले लेते हैं विदाई
विलीन हो जाता वह
अस्ताचल में, करके वादा
कल फिर आएगा
अरुणाचल से|

इस जुदाई से
मन ही मन मैं
खूब खुश होती
अब वह
नजर नहीं आएगा
उसकी पहरेदारी से दूर
चाँद-तारों से बातें करती
सिमट जाऊँगी मैं
नींद की आगोश में|

ऋता शेखर मधु

9 टिप्‍पणियां:

  1. सिमट जाऊँगी मैं
    नांद की आगोश में|

    अंतिम पंक्ति एक बार देखें ...

    सूर्य सहयात्री बना हमेशा ऊर्जा देता रहता है ... सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. शुक्रिया संगीता दी...ठीक कर दिया है|

    जवाब देंहटाएं
  3. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. कितना प्यारा दोस्त है न वो....
    मुस्कुराता...उजला उजला...

    :-)

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. नजर नहीं आएगा
    उसकी पहरेदारी से दूर
    चाँद-तारों से बातें करती
    सिमट जाऊँगी मैं
    नींद की आगोश में|

    बहुत बढिया सृजन,,,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  6. ऋता ! बहुत खुबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  7. अब क्या कहूं ? ना तो मेरे पास इतने रचनामयी शब्द हैं जो मै आपकी लेखनी की तारीफ भी कुछ ऐसे ढंग से कर सकूं । पर आपकी रचनाओ को हम कुछ ऐसे पढते हैं जैसे शायरी को समझ तो लेते हैं पर शायरी कर नही सकते । बस ऐसे ही कभी कभी तो कोफत होती है कि आपकी इन भावनाओ को जो कि आप शब्दो में उकेरती हैं हम भी अपनी लेख्ननी से शामिल हो पाते पर सीधे शब्दो में ही सही मेरी बधाई स्वीकार करें इस रचना के लिये

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  8. सिमट जाऊँगी मैं
    नींद की आगोश में|

    अनुपम भाव संयोजित किये आपने इस अभिव्‍यक्ति में

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