पृष्ठ

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

नव कोंपल से सजता, लगता तरु का हर डाल मनोहर है



मेरे तीन दुर्मिल सवैया छंद...
१.
अनुशासित प्रांत महान बने, यह बात सदा सच ही रहती
सदभाव बसे जिस देश सदा, दुनिया बस भारत ही कहती
जँह प्रीत नदी बन के बहती अरु वेद ऋचा नभ में उड़ती
वह पावन भूमि तपोवन सी, दिल से दिल की कड़ियाँ जुड़ती
२.
नव कोंपल से सजता, लगता तरु का हर डाल मनोहर है
खग-गान हवा तब गूँज उठे, लगता यह गायन सोहर है
जब धान पके, हर खेत सजे, चमकी सरसों पुखराज बनी
परिधान धरा कुछ यूँ पहनी, सुषमा उसकी अधिराज बनी
३.
फगुनाहट में ऋतुराज चले, धरती कुसुमी बन डोल रही
कलियाँ खिलतीं, तितली उड़ती, अलिगूँज सखी-मन खोल रही
हर बौर सजी अमिया महकी, बगिया कुहु कोयल बोल रही
मनभावन मौसम, मंद हवा, कचनार कली रस घोल रही

---ऋता शेखर मधु

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ऋता दी....
    कितना प्यारा ,लुभावना चित्रण है वसंत का....

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. मनभावन सुंदर छंद के लिए आपको हार्दिक बधाई!और शुभकामनाए!

    Recent Post: कुछ तरस खाइये

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आदरेया ||

    जवाब देंहटाएं
  4. सुव्यवस्थित सार्थक रचनाएँ होती हैं - विधा जो भी हो,बांधता है

    जवाब देंहटाएं
  5. @
    जँह प्रीत नदी बन के बहती अरु वेद ऋचा नभ में उड़ती
    वह पावन भूमि तपोवन सी, दिल से दिल की कड़ियाँ जुड़ती

    आनद आ गया ..
    कई बार पढ़ी यह मधुर रचना ! शायद आपकी जितनी रचनाये मैं पढ़ चुका हूँ उनमें यह सबसे अच्छी है !
    बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  6. फगुनाहट में ऋतुराज चले, धरती कुसुमी बन डोल रही
    कलियाँ खिलतीं, तितली उड़ती, अलि–गूँज सखी-मन खोल रही ..

    वाह इतना मधुर छंद ... फाग की खुशबू जेहन में उतरने लगी इन शब्दों के द्वारा ... शायद सफल रचना इसी को कहते हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  7. हर बौर सजी अमिया महकी, बगिया कुहु कोयल बोल रही
    मनभावन मौसम, मंद हवा, कचनार कली रस घोल रही

    फगुनाहट का सुंदर चित्रण. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ऋता जी.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!