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मंगलवार, 11 जून 2013

कोमल हाथ चुभ गए थे काँच


ताँका........विश्व बाल श्रम दिवस पर-१२ जून

बालक रोया
बस्ता चाहिए उसे
है मजबूर
दिल किया पत्थर
बनाया मजदूर|१|

कोमल हाथ
चुभ गए थे काँच
बहना रोई
भइया आँसू पोंछे
दोनो कचरे बिनें|२|

दिल के धनी
राजा औ' रंक बच्चे
देख लो फ़र्क
एक खरीदे जूता
पोलिश करे दूजा|३|

गार्गी की बार्बी
कमली ललचाई
माँ ने पुकारा
बिटिया, इधर आ
बर्तन मांज जरा|४|

कठोर दिल
कैसी माता है वह
काम की भूखी
बेटी को देती मैगी
कम्मो को रोटी सूखी|५|

........ऋता शेखर 'मधु'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया ऋता दी.....
    बेहद सार्थक और सशक्त रचना...

    सस्नेह
    अनु

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  2. आपकी यह पोस्ट आज के (१२ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - शहीद रेक्स पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  3. अक्षरश: सार्थक है यह रचना ...

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  4. अच्छी रचना, समाज को झकझोरने वाली
    बहुत सुंदर


    मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
    हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html

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  5. गार्गी की बार्बी
    कमली ललचाई
    माँ ने पुकारा
    बिटिया, इधर आ
    बर्तन मांज जरा ..

    कितने बचपन ऐसे ही वीरान हैं आज ... आज के दिन के लिए लिखे सार्थक तांका ...

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  6. कडवे सच को कहते तांका ॥ मार्मिक प्रस्तुति

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  7. बहुत बढ़िया रचना !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  8. कोमल हाथ
    चुभ गए थे काँच
    बहना रोई
    भइया आँसू पोंछे
    दोनो कचरे बिनें..

    आभार एक अच्छे भाव सम्प्रेषण के लिए !!

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  9. आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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