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बुधवार, 10 जुलाई 2013

कुछ चतुष्पदी रचनाएँ...

ईश्वर के वरदान से मिले मनुज का रूप
बल विवेक अरु बुद्धि से सहते छाया- धूप
उर जब निश्छल हो सदा प्रभु आते हैं पास
कुछ तो इस संसार में कर जाएँ हम खा

हर मौन सिर्फ़ मौन नहीं होता
तूफ़ान के पहले की शांति तो नहीं
चीत्कार भरा हो अंतर्मन में जब
खामोशियों की यह भ्रांति तो नहीं.

दिखता जब नूर वह चेहरे का पानी है
झुकती हुई पलकों में लाज का पानी है
तीन चौथाइ धरा पर पानी का है राज
शुद्धता मिले नहीं वह आज का पानी है

जो बीत गई वो बात गई
क्या सच में ऐसा  होता है
गुजरे लम्हों की चादर पर
इतिहास पसरकर सोता है|

विगत की भूलों से सीखकर
जो स्वप्न के मोती बोता है
वह इंसां अपने जीवन में
खुद पर ही कभी न रोता है|

छमछम नाच रही हैं बूँदें
पावस छेड़े मधुर तराना
मिलन-विरह की यही कहानी
लगे सुहाना या वीराना |

..........ऋता

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

मेरी माँ....



मेरी माँ...

अभी तो उसके ही तन का हिस्सा हूँ मैं
ख्वाबों में मुझसे मिल रही है मेरी माँ
पा न जाऊँ कहीं अमावस का अंधकार
जतन से रुपहली चादर सिल रही है मेरी माँ
जहाँ भी लूँ श्वास, सुवास ही मिले सदा
पिटारे में गुलाबौं को गिन रही है मेरी माँ
शीतल समीर संग हिंडोले पर झुला सके
मधुर सरस लोरियाँ गुन रही है मेरी माँ
पाँव तले रहे हरदम मखमली गलीचा
नर्म दूब पर शबनम चुन रही है मेरी माँ
फैली रहे उजास सूरज की हमारे पास
उषा के लाल धागे बुन रही है मेरी माँ
मन मंदिर में पावनता बनी रहे सदा
कपोतो से शांति मंत्र सुन रही है मेरी माँ
न मैंने कुछ कहा, न उसने कुछ कहा
बस हमारी धड़कनें सुन रही है मेरी माँ
मेरे आने की घड़ियाँ गिन रही है मेरी माँ!!!!
..................ऋता शेखर 'मधु'