ईश्वर के वरदान से मिले मनुज का रूप
बल विवेक अरु बुद्धि से सहते छाया- धूप
उर जब निश्छल हो सदा प्रभु आते हैं पास
कुछ तो इस संसार में कर जाएँ हम खास
हर मौन सिर्फ़ मौन नहीं होता
तूफ़ान के पहले की शांति तो नहीं
चीत्कार भरा हो अंतर्मन में जब
खामोशियों की यह भ्रांति तो नहीं.
दिखता जब नूर वह चेहरे का पानी है
झुकती हुई पलकों में लाज का पानी है
तीन चौथाइ धरा पर पानी का है राज
शुद्धता मिले नहीं वह आज का पानी है
जो बीत गई वो बात गई
क्या सच में ऐसा होता है
गुजरे लम्हों की चादर पर
इतिहास पसरकर सोता है|
विगत की भूलों से सीखकर
जो स्वप्न के मोती बोता है
वह इंसां अपने जीवन में
खुद पर ही कभी न रोता है|
छमछम नाच रही हैं बूँदें
पावस छेड़े मधुर तराना
मिलन-विरह की यही कहानी
लगे सुहाना या वीराना |
..........ऋता