शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

माँ बागेश्वरी


माँ बागेश्वरी को समर्पित गीत...

कुसुमाकर आकर मुस्काये
वीणावादिनी आईं

नवल राग की मधुर रागिनी
झंकृत करते मन के तार
नम्र बनाएँ मधुर भाषिणी
विद्या से भर दें संसार

नई स्लेट पर "ॐ" की भाषा
पुस्तकधारिणी लाईं

श्वेत हंस की पावनता है
पीत पुष्प की माला
सरल  हास्य  मुखमंडल सोहे
कर में साज निराला

एक सूत्र में हमें पिरोने
शुभ वरदायिनी गाईं

मेरे भारत को तुम देवी
निर्मलता सिखलाना
रहें सभी बन भाई भाई
ऐसी राह दिखाना

वेदों को फिर से समझाने
विद्यादायिनी आईं
*ऋता शेखर मधु*

बुधवार, 21 जनवरी 2015

बसंत को नेवता

सूरज ने भेजा
बसंत को नेवता

मीठी बयार में
आम्रतरु झूलते
कोयलिया गा रही
बौर भी फूलते

भीनी सुगंध को
कुँज भी सेवता

झूलों में पेंग है
गेंदें खिल रहे
मक्को और बेर संग
ज्ञान गान गूँज रहे

मीठी बयार में
स्वप्न नाव खेवता

आँगन की चिड़िया
भोर में कूदती
नीम की टहनियाँ
मुनिया को चूमती

पीले परिधान में 
जाग रहे देवता
*ऋता शेखर मधु*

सोमवार, 19 जनवरी 2015

पल का पंछी


पल का पंछी
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याद रखना नौनिहालों
बीता समय आता नहीं

पल का पंछी
भाग रहा है
सजग हमेशा
जाग रहा है

बिना परिश्रम कोई भी
सेव मीठे खाता नहीं

घडी के काँटे
डोल रहे हैं
कर लो उपयोग
बोल रहे हैं

धरा को तप्त हुए बिना
मेघ नभ में छाता नहीं

तन में ऊर्जा
भरी पड़ी है
विजयमाल ले
राह खड़ी है

ढीले तारों से कभी भी
संतूर राग गाता नहीं

याद रखना नौनिहालों
बीता समय आता नहीं
*ऋता शेखर मधु*

बुधवार, 14 जनवरी 2015

गुलमोहर की ओट

१८
धरती रानी सोहती, पहन हरित परिधान,
क्यारी क्यारी सज गए, सकल सलोने धान|
सकल सलोने धान, देख कृषक जिया हर्षा,
जुटा रही आहार, मस्त मतवाली वर्षा|
सावन की सौगात, सुता की गोदी भरती,
पहन हरित परिधान, सुहानी लगती धरती|
१७
आमंत्रण हर बूँद में, भेज रहा है मेह,
सावन में आओ बहन, भर धागे में नेह|
भर धागे में नेह, तिलक की रोली लाना,
देकर आशिष आज, धन्य हमको कर जाना|
नम हैं मधु के नैन, बाँचती नेह निमंत्रण,
लख भावज का प्रेम, मान लेती आमंत्रण|

१६
तुम ही मेरे राम हो, तुम ही हो घनश्याम
ओ मेरे अंतःकरण, तुम ही तीरथ धाम
तुम ही तीरथ धाम, भक्ति की राह दिखाते
बुझे अगर मन-ज्योत, हृदय में दीप जलाते
थक जाते जब पाँव, समीर बहाते हो तुम
पथ जाऊँ गर भूल, राह दिखलाते हो तुम

१५
गुलमोहर की ओट में, वह था खड़ा उदास,
तपता सूरज जेठ का, छीन रहा था आस|
छीन रहा था आस, सहेगा वह दुख कैसे,
हँसकर बोला फूल, सहो, सहता मैं जैसे|
निखरे मनु का रूप, मान का मिलता मोहर,
ज्यों सहकर के धूप, खिले दिनभर गुलमोहर 
१४
सीढ़ी पर है मंजिलें, देख सके तो देख,
पायदान की हर कथा, बने अमिट आलेख|
बने अमिट आलेख, अडिग हो चढ़ते जाओ,
है  प्रकाश हर ओर, हथेली में भर लाओ|
कदमों में आकाश, लिए चलती हर पीढी, 
देख सके तो देख, मंजिलें होती सीढ़ी |
………ऋता शेखर "मधु"

सोमवार, 12 जनवरी 2015

ओ बटोही...

चित्र गूगल से साभार
ओ बटोही रोज सवेरे
तुम मेरे घर आना
खोल अपनी लाल पोटली
जग में रश्मि बिखराना

नव मुकुलित पुष्पों से छनकर
स्वर्ण प्रभा बिखराते
पाकर उजास जग जग जाता
पंछी गीत सुनाते
जलते चुल्हे धुआँ उड़ाते
पंछी शोर मचाते

उषाकाल से सँझा तक तुम
अथक निरंतर जाना
करने को विश्राम पथिक
सिंधु में जा समाना

प्रभात से रजनी बेला तक
नव उमंग मिल जाती
साँझ ढले जब घर जाते हो
चंद्रप्रभा मुसकाती
निशा साँवरी हुई सलोनी
तारों से खिल जाती

दिनकर से पाकर आलोक
चाँद बना मस्ताना
अच्छा लगता है सूरज का
दानवीर कहलाना

मकर संक्रा़तिकाल कथा में
गंगा सागर मिलते
सूर्यदेव उत्तरायण होकर
धरती का तम हरते
सेहत वाली किरणें लेकर 
पादप सुन्दर खिलते

आदित्यराज से लें हम सीख
जगमग जग कर जाना
जेठ दोपहरी में हँसकर
अमलतास सा छाना
*ऋता शेखर 'मधु'*

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

सांवरे की मनुहार


वसुधा मिली थी भोर से जब, ओढ़ चुनरी लाल सी।
पनघट चली राधा लजीली,  हंसिनी  की  चाल  सी।।
इत वो ठिठोली कर रही थी,   गोपियों  के साथ में ।
नटखट कन्हैया उत छुपे थे,   कंकड़ी  ले  हाथ  में ।१।


भर नीर मटकी को उठाया, किन्तु भय था साथ में ।
चंचल चपल इत उत  निहारें, हों   न   कान्हा  घात  में।।
ये भी दबी सी लालसा थी, मीत के दर्शन  करूँ।
उनकी मधुर मुस्कान पर निज, प्रीत को अर्पण करूँ।२।


धर धीर, मंथर चाल से वो, मंद मुस्काती चली ।
पर क्या पता था राधिके को, ये न विपदा है टली ।।
तब ही अचानक, गागरी में, झन्न से कँकरी लगी ।
फूटी गगरिया,  नीर फैला, रह  गई  राधा ठगी ।३।


कान्हा नजर के सामने थे, राधिका थी चुप खड़ी।
अपमान से मुख लाल था अरु, आँख धरती पर गड़ी ।।
बोलूँ न कान्हा से कभी मैं, सोच कर के वह अड़ी ।
इस दृश्य को लख कर किसन की, जान साँसत में पड़ी।४।


चितचोर ने झटपट मनाया, अब न छेडूंगा तुझे ।
ओ राधिके, अब मान भी जा, माफ़ भी कर दे मुझे ।।
झट  से  मधुर  मुरली  बजाई,  वो  करिश्मा  हो  गया ।
मनमीत की मनुहार सुनकर,  क्रोध  सारा  खो   गया ।५।


मनुहार सुनकर सांवरे की, राधिका विचलित हुई ।
हँसकर लजाई इस अदा पर, प्रीत  भी बहुलित हुई ।।
ये  प्रेम  की  बातें  मधुरतम,  सिर्फ़  वो ही जानते।
जो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
*ऋता शेखर 'मधु'*