सेल्फ़ डिपेंडेंट...अर्थात आत्मनिर्भर होना|
परावलंबन का संबंध अधिकतर स्त्रियों और सेवक वर्ग से जुड़ा होता है|
इस सेल्फ़ डिपेंडेंट की रेंज क्या है, इसे कोरोना काल ने सुस्पष्ट कर दिया है|
सेल्फ़ डिपेंडेंट...कब कब ?
१.शारीरिक रूप से
२.आर्थिक रूप से
३.मानसिक रूप से
४.सामाजिक रूप से
५...................
१.शारीरिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट रहने की कामना बुजुर्गों में होती हैं| वे चाहते हैं कि अपनी रोजमर्रा का काम वे खुद कर पाएँ| उनको किसी को आवाज न लगानी पड़े|| उन्हें अक्सर यह बोलते हुए सुना जा सकता , "भगवान हमें चलते फिरते उठा लेना|"
शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति भी अपना काम खुद करना पसंद करते हैं और किसी की मदद कम से कम लेना चाहते हैं|
२.आर्थिक रूप से सेल्फ़ डिपेंडेंट होने की कामना युवा वर्ग को होती है| एक निश्चित उम्र के बाद आर्थिक डिपेंडेंसी उन्हें खलने लगती है| इसे लड़कियों के मामले में भी खूब प्रयोग में लाया जाता है| पहले लड़कियों के लिए सिर्फ़ पढ़ना लिखना जरूरी समझा जाता था| किन्तु उनकी दुर्दशा देखकर धीरे धीरे किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़कर उन्होंने आर्थिक रूप से खुद को सेल्फ़ डिपेंडेंट बनाया| हालांकि अभी भी प्रतिशत बहुत अधिक नहीं है फिर भी कोशिशें निरंतर जारी हैं|
वृद्धों को पेंशन मिलना भीआर्थिक सेल्फ डिपेंडेंट होना है|
३. मानसिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने का अर्थ है निर्णय लेने की क्षमता होना|पर किसी कारण से यह डिपेंडेंसी भी झेलनी पड़ती है|
४. सामाजिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने में आप सामाजिक कार्यों में बिना किसी हस्तक्षेप के अपना योगदान दे सकते हैं| यह सोचने और अवलोकन की बात है कि क्या हम सभी इस मामले में स्वतंत्र हैं|
अब बात करते हैं कोरोना काल की जिसने नए सेल्फ डिपेंडेंट को जन्म दिया है|...उसके पहले सामाजिक सोच के कुछ उदाहरण देती हूँ|
दृष्य १
"किरण, लड़का बाहर जा रहा, उसे कुछ सिखा दे ताकि वक्त बेवक्त खुद बना कर खा सके"
अरे क्या बुआ, मैं तो कुछ नहीं सीखने वाला| अब किस चीज की कमी है बाजार में, ऑनलाइन मँगाओ और खाओ|""
"हाँ दीदी, ये ठीक कह रहा| यहाँ तो कभी किसी ने खाना भी खुद निकाल कर न खाया है|"
दृष्य २
"बिटिया, पढ़ाई लिखाई के कारण रसोई का काम नहीं सीख सकी| अब नौकरी पर जा रही| कुछ तो पकाना सीख ले|"
"क्या चाची, कमाएँगे, कुक रखेंगे और मस्ती से रहेंगे|"
" बिटिया, बेला बखत कोई नहीं जानता| कभी खुद बनाना पड़े तो| "
कहने का अर्थ यह रहा कि रसोई युवा पीढ़ी के लिए कोई आवश्यक जगह नहीं जबकि रसोई न हो तो दुनिया टिकेगी कैसे|
कल दिल्ली में एक पिज्जा डिलिवरी बॉय का कोरोना पॉजिटिव पाया जाना दिल्ली में हड़कंप मचा गया| उसने सत्तर घरों में पिज्ज़ा दिया था|
अब सोचने वाली बात यह है कि लोग इतने लापरवाह कैसे हो गये| जब पूरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग की बात हो रही, बाहर से सामान लेने पर भी पाबंदी है| बाहर से आने वाले पैकेट और सब्जियाँ सभी एहतियात से धोकर प्रयोग कर रहे, ऐसे समय में यह ऑर्डर कैसे प्लेस किया गया और लोग भी किस प्रकार हिम्मत कर पाए|
कल फेसबुक पर एक पोस्ट में मैंने यही बात पूछी तो यह बात सामने आई कि जो बच्चे घर नहीं जा पाए ्उन्होंने मजबूरी में पिज्जा मँगवाया होगा| इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता |
तो क्या वे बच्चे सेल्फ डिपेंडेंट नहीं थे|
जवाब यही हो सकता है ...कि नहीं थे| उन्होंने कभी यह विचार भी नहीं किया होगा कि कभी इस तरह की नौबत आ सकती है वरना इंडक्शन या बॉयलर तो रख ही सकते थे| पिज्जा मँगवाने वाले इन सब चीजों को एफोर्ड भी कर सकते हैं|
सेल्फ डिपेंडेंसी में यहीं पर मात खा जाएँगे बच्चे यदि आरम्भ से ही पढ़ाई के साथ साथ उनसे रसोई के हल्के फुल्के काम करवाने की ट्रेनिंग न दी जाए| कोरोना ने बता दिया कि अब वैसी रईसी का महत्व नहीं जो काम न करना जाने| साधारण सी खिचड़ी न बना सकें, एक रोटी न बना सकें|
वो माएँ जो बेटे-बेटी से थोड़ा भी काम करने को प्रेरित नहीं कर पातीं उनको भी सोचना होगा|
५ अब सेल्फ डिपेंडेंट होना है रसोई में...कोरोना हमेशा नहीं रहने वाला...पर जब भी माँ न हों घर में, पत्नी मायके गई हो तो बाहर का खाना न खाएँ| खुद बनाएँ और खाएँ|
बाहर का खाना बहुत खास समय के लिए रखें...सेल्फ डिपेंडेंट बनें|
@ऋता शेखर 'मधु'
परावलंबन का संबंध अधिकतर स्त्रियों और सेवक वर्ग से जुड़ा होता है|
इस सेल्फ़ डिपेंडेंट की रेंज क्या है, इसे कोरोना काल ने सुस्पष्ट कर दिया है|
सेल्फ़ डिपेंडेंट...कब कब ?
१.शारीरिक रूप से
२.आर्थिक रूप से
३.मानसिक रूप से
४.सामाजिक रूप से
५...................
१.शारीरिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट रहने की कामना बुजुर्गों में होती हैं| वे चाहते हैं कि अपनी रोजमर्रा का काम वे खुद कर पाएँ| उनको किसी को आवाज न लगानी पड़े|| उन्हें अक्सर यह बोलते हुए सुना जा सकता , "भगवान हमें चलते फिरते उठा लेना|"
शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति भी अपना काम खुद करना पसंद करते हैं और किसी की मदद कम से कम लेना चाहते हैं|
२.आर्थिक रूप से सेल्फ़ डिपेंडेंट होने की कामना युवा वर्ग को होती है| एक निश्चित उम्र के बाद आर्थिक डिपेंडेंसी उन्हें खलने लगती है| इसे लड़कियों के मामले में भी खूब प्रयोग में लाया जाता है| पहले लड़कियों के लिए सिर्फ़ पढ़ना लिखना जरूरी समझा जाता था| किन्तु उनकी दुर्दशा देखकर धीरे धीरे किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़कर उन्होंने आर्थिक रूप से खुद को सेल्फ़ डिपेंडेंट बनाया| हालांकि अभी भी प्रतिशत बहुत अधिक नहीं है फिर भी कोशिशें निरंतर जारी हैं|
वृद्धों को पेंशन मिलना भीआर्थिक सेल्फ डिपेंडेंट होना है|
३. मानसिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने का अर्थ है निर्णय लेने की क्षमता होना|पर किसी कारण से यह डिपेंडेंसी भी झेलनी पड़ती है|
४. सामाजिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट होने में आप सामाजिक कार्यों में बिना किसी हस्तक्षेप के अपना योगदान दे सकते हैं| यह सोचने और अवलोकन की बात है कि क्या हम सभी इस मामले में स्वतंत्र हैं|
अब बात करते हैं कोरोना काल की जिसने नए सेल्फ डिपेंडेंट को जन्म दिया है|...उसके पहले सामाजिक सोच के कुछ उदाहरण देती हूँ|
दृष्य १
"किरण, लड़का बाहर जा रहा, उसे कुछ सिखा दे ताकि वक्त बेवक्त खुद बना कर खा सके"
अरे क्या बुआ, मैं तो कुछ नहीं सीखने वाला| अब किस चीज की कमी है बाजार में, ऑनलाइन मँगाओ और खाओ|""
"हाँ दीदी, ये ठीक कह रहा| यहाँ तो कभी किसी ने खाना भी खुद निकाल कर न खाया है|"
दृष्य २
"बिटिया, पढ़ाई लिखाई के कारण रसोई का काम नहीं सीख सकी| अब नौकरी पर जा रही| कुछ तो पकाना सीख ले|"
"क्या चाची, कमाएँगे, कुक रखेंगे और मस्ती से रहेंगे|"
" बिटिया, बेला बखत कोई नहीं जानता| कभी खुद बनाना पड़े तो| "
कहने का अर्थ यह रहा कि रसोई युवा पीढ़ी के लिए कोई आवश्यक जगह नहीं जबकि रसोई न हो तो दुनिया टिकेगी कैसे|
कल दिल्ली में एक पिज्जा डिलिवरी बॉय का कोरोना पॉजिटिव पाया जाना दिल्ली में हड़कंप मचा गया| उसने सत्तर घरों में पिज्ज़ा दिया था|
अब सोचने वाली बात यह है कि लोग इतने लापरवाह कैसे हो गये| जब पूरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग की बात हो रही, बाहर से सामान लेने पर भी पाबंदी है| बाहर से आने वाले पैकेट और सब्जियाँ सभी एहतियात से धोकर प्रयोग कर रहे, ऐसे समय में यह ऑर्डर कैसे प्लेस किया गया और लोग भी किस प्रकार हिम्मत कर पाए|
कल फेसबुक पर एक पोस्ट में मैंने यही बात पूछी तो यह बात सामने आई कि जो बच्चे घर नहीं जा पाए ्उन्होंने मजबूरी में पिज्जा मँगवाया होगा| इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता |
तो क्या वे बच्चे सेल्फ डिपेंडेंट नहीं थे|
जवाब यही हो सकता है ...कि नहीं थे| उन्होंने कभी यह विचार भी नहीं किया होगा कि कभी इस तरह की नौबत आ सकती है वरना इंडक्शन या बॉयलर तो रख ही सकते थे| पिज्जा मँगवाने वाले इन सब चीजों को एफोर्ड भी कर सकते हैं|
सेल्फ डिपेंडेंसी में यहीं पर मात खा जाएँगे बच्चे यदि आरम्भ से ही पढ़ाई के साथ साथ उनसे रसोई के हल्के फुल्के काम करवाने की ट्रेनिंग न दी जाए| कोरोना ने बता दिया कि अब वैसी रईसी का महत्व नहीं जो काम न करना जाने| साधारण सी खिचड़ी न बना सकें, एक रोटी न बना सकें|
वो माएँ जो बेटे-बेटी से थोड़ा भी काम करने को प्रेरित नहीं कर पातीं उनको भी सोचना होगा|
५ अब सेल्फ डिपेंडेंट होना है रसोई में...कोरोना हमेशा नहीं रहने वाला...पर जब भी माँ न हों घर में, पत्नी मायके गई हो तो बाहर का खाना न खाएँ| खुद बनाएँ और खाएँ|
बाहर का खाना बहुत खास समय के लिए रखें...सेल्फ डिपेंडेंट बनें|
@ऋता शेखर 'मधु'