जीजिविषा--
घर में आनेजाने वालों का और साथ ही फोन पर बधाई देने वालों का ताँता लगा था| शशांक ने इंजीनियरिंग के लिए आइ आइ टी की परीक्षा में अच्छे रैंक लाए थे| घर में उत्सव सा माहौल था|
दो दिनों बाद बारहवीं का परिणाम घोषित होना था| समय पर परिणाम निकला|
मगर यह क्या! शशांक का नाम कहीं नहीं था| सबके पैरों तले की जमीन खिसक गई| तुरंत स्कूल में फोन लगाया गया| पता चला कि भोतिकी में उसे उत्तीर्णांक से कम थे|
एकाएक माहौल गमगीन हो गया| शशांक गुमसुम अपने कमरे में बैठ गया| सबने कहा था, पहले बारहवीं पर ध्यान दो|
उस परिश्रमी बालक की मनःस्थिति कल्पनीय थी| अब न उसे पढ़ने में रुचि थी, न खेलने मे, न कहीं बाहर जाने , और न ही ढंग से खाना खाता|
स्वाति , उसकी बड़ी बहन समझाकर थक गई कि वह अगले साल के लिए जमकर तैयारी करे| मगर उसका निराश मन बड़ा ही मायूस था|
एक दिन शाम को घर के कंक्रीट अहाते में टहलते हुए स्वाति को कुछ दिखा| वह दौड़कर भाई को बाहर घसीट लाई| चिकने चुपड़े साफ कंक्रीट रास्ते पर हल्की दरार से एक नन्हा सा कोंपल झाँक रहा था| उसकी गुलाबी कोमल पत्तियाँ बड़ी सुहावनी थी|
शशांक गौर से उसे देख रहा था|इधर स्वाति भी बड़े गौर से भाई का मन टटोलने की कोशिश कर रही थी |
कुछ देर रुककर स्वाति ने कहा-"भाई, इसे काट देते हैं| नाहक ही यह बढ़ता जाएगा|"
"नही, इसे मत काटो| बहुत मेहनत से इसने ऊपर आने का रास्ता बनाया है|" शशांक ने दृढ़ता से कहा|
इसके बाद वह दौड़कर अपने कमरे में गया और अपनी सारी किताबें व्यवस्थित करने लगा| स्वाति भी पीछे पीछे गई| वापस आकर संतुष्टि से कोमल पत्तियों को सहलाने लगी|
दोनो भाई बहन ने पौधे का नाम रखा, 'जीजिविषा"
*ऋता शेखर 'मधु'*