शंकर जी की नगरी आकर, बम लहरी से दिल डोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है ||
निकल जटा से शिव की गंगा,
करने आतीं सबको पावन |
हर हर गंगे के नारों से ,
गूँज उठा है फिर से सावन ||
जटाजूटधारी के तन पर, व्याघ्र चर्म का इक चोला है|
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||
इस दुनिया की रीत यही है
सबको ही विष पीना होगा ||
फैल न पाए वह जीवन में
नीलकंठ बन जीना होगा ||
डम डम बज कर डमरू भी अब, ओम नमः नमः शिव बोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है ||
ढेर लगी है विल्वपत्र की ,
राम नाम का शुभ वंदन है ||
भाँग धतूरा भोग बने हैं ,
चढ़ता शिव माथे चंदन है ||
वृषभ सर्प जहँ संग रहें वह, औघड़दानी का टोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||
छाए हैं संकट के बादल
शिव जी अपनी कृपा बढ़ाओ|
मति मानव की मूढ़ बनी है,
वहाँ ज्ञान की परत चढ़ाओ ||
भस्म विभूषित होकर बैठे, एक नयन रखता शोला है|
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||