अभिनंदन राम का
भारत की माटी ढूँढ रही
अपना प्यारा रघुनंदन
भारी भरकम बस्तों में
दुधिया किलकारी खोई
होड़ बढ़ी आगे बढ़ने की
लोरी भी थक कर सोई
महक उठे मन का आँगन
बिखरा दो केसर चंदन
वर्जनाओं की झूठी बेड़ी
ललनाएँ अब तोड़ रहीं
अहिल्या होना मंजूर नहीं
रेख नियति की मोड़ रहीं
विकल हुई मधुबन की बेली
राह तके सिया का वंदन
बदल रहे बोली विचार
आक्षेप बढ़े हैं ज्यादा
हे! धनुर्धारी पुरुषोत्तम
लौटा लाओ अब मर्यादा
श्रीराम जन्म के सोहर में
पुलक उठे हर क्रंदन
हर बालक में राम छुपे हों
हर बाला में सीता
चरण पादुका पूजें भाई
बहनें हों मन प्रीता
नवमी में हम करें राम का
धरती पर अभिनंदन
--ऋता शेखर 'मधु'