मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

अभिनंदन राम का


अभिनंदन राम का

भारत की माटी ढूँढ रही
अपना प्यारा रघुनंदन

भारी भरकम बस्तों में
दुधिया किलकारी खोई
होड़ बढ़ी आगे बढ़ने की
लोरी भी थक कर सोई

महक उठे मन का आँगन
बिखरा दो केसर चंदन

वर्जनाओं की झूठी बेड़ी
ललनाएँ अब तोड़ रहीं
अहिल्या होना मंजूर नहीं
रेख नियति की मोड़ रहीं

विकल हुई मधुबन की बेली
राह तके सिया का वंदन

बदल रहे बोली विचार
आक्षेप बढ़े हैं ज्यादा
हे! धनुर्धारी पुरुषोत्तम
लौटा लाओ अब मर्यादा

श्रीराम जन्म के सोहर में
पुलक उठे हर क्रंदन

हर बालक में राम छुपे हों
हर बाला में सीता
चरण पादुका पूजें भाई
बहनें हों मन प्रीता

नवमी में हम करें राम का
धरती पर अभिनंदन
--ऋता शेखर 'मधु'

धरती को ब्याह रचाने दो

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धरती को ब्याह रचाने दो
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धरती ब्याह रचाती है
पीले पीले अमलतास से
हल्दी रस्म निभाती है
धानी चुनरी में टांक सितारे
गुलमोहर बन जाती है
देखो, धरती ब्याह रचाती है।


आसमान के चाँद सितारे
उसके भाई बन्धु हैं
लहराते आँचल पर निर्मल
बहता जाता सिंधु है
ओढ़ चुनरिया इंद्रधनुष की
देखो, धरती ब्याह रचाती है।

बने पुजारी सप्तऋषि
ऋचाएँ वेद सुनाती हैं
नन्दन कानन में वृक्ष लताएं
झूम झूम लहराती हैं
छुईमुई बन कर सिमटी हुई
देखो, धरती ब्याह रचाती है।

इंसानों ने छीन लिया है
उसकी ठंडी छाया को
खेतों में वह ढूँढ रही
स्वर्ण फसल की काया को
वहाँ खड़े भवनों में धरती
कैसे ब्याह रचाएगी ।

मखमली गलीचे दूर्वा के
धूमिल पड़े सड़कों के नीचे
पवन बसन्ती धुआँ धुआँ है
कलियाँ सूखीं अँखियाँ मीचे
वन्दनवार फिर कहाँ बनेंगे
सुमन-हार कहाँ से लाएगी

इंसानों!
लौटा दो सुषमा उसकी
पृथ्वी को स्वर्ग बनाने दो
हम सब नाचेंगे बन बाराती
धरती को ब्याह रचाने दो।
--ऋता

रविवार, 21 अप्रैल 2019

जागो वोटर जागो

जागो वोटर जागो

अपने मत का दान कर, चुनना है सरकार।
इसमें कहीं न चूक हो, याद रहे हर बार।।
याद रहे हर बार, सही सांसद लाना है।
जो करता हो काम, उसे ही जितवाना है।
सर्वोपरि है देश, जहाँ पलते हैं सपने।
'मधु' उन्नत रख सोच, चुनो तुम नेता अपने।।१

जिम्मेदारी आपकी, चुनने की सरकार।
सजग भाव से लीजिये, अपना यह अधिकार।।
अपना यह अधिकार, भला क्योंकर खोना है।
देकर अपना वोट, वहाँ शामिल होना है।
पक्की कर लो 'ऋता', चुनावी हिस्सेदारी।
चुनने की सरकार, हमारी जिम्मेदारी।।२

जागो नेता देश के, खूब बजाओ ढोल।
जी भर-भर के खोल दो, इक दूजे की पोल।।
इक दूजे की पोल, बड़ी लगती है प्यारी।
भाषाओं की लोच, निरीह लगे बेचारी।
त्यागो 'मधु' आलस्य को, वोट देने को भागो।
दो झूठों को सीख, देश की जनता जागो।।३

जनशासन में वोट का, सबको है अधिकार|
योग्य पात्र को तौलकर, बटन दबाओ यार||
बटन दबाओ यार, यही है भागीदारी |
दलबदलू के साथ ,न करना रिश्तेदारी|
स्वयं रहे जो नेक, निभाता वह अनुशासन|
'ऋता' है खुशनसीब, यहाँ पायी जनशासन||४

सारे नेता भ्रष्ट हैं, रखें न ऐसी सोच|
प्रजा कुशल है जौहरी, कहाँ रहे फिर लोच||
कहाँ रहे फिर लोच, परख कर लायें हीरा|
ढूँढ निकालें आप, उष्ट के मुँह से जीरा|
'मधु', तुम जाओ बूथ, वोट दो सुबह सवारे|
रखो न ऐसी सोच, भ्रष्ट हैं नेता सारे ||
--ऋता शेखर 'मधु' 

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

आखिर ऐसा क्यों हुआ,समझाओ श्रीमान


गुलमोहर खिलता गया, जितना पाया ताप |
रे मन! नहीं निराश हो, पाकर के संताप |।१

उसने रौंदा था कभी, जिसको चींटी जान।
वही सामने है खड़ी, लेकर अपना मान।।२

रटते रटते कृष्ण को, राधा हुई उदास।
चातक के मन में रही, चन्द्र मिलन की आस।।३

रघुनन्दन के जन्म पर, सब पूजें हनुमान।
आखिर ऐसा क्यों हुआ,समझाओ श्रीमान।।४

आलस को अब त्याग कर, करो कर्म से प्यार।
घिस-घिस कर तलवार भी, पा जाती है धार।।५

जीवन है बहती नदी, जन्म मृत्यु दो कूल।
धारा को कम आँक कर, पाथर करता भूल।।६

ऋता