इन्तिज़ार
सर्वशक्तिमान को है बंदगी का इन्तिज़ार
जिंदगी में हर किसी को है किसी का इन्तिज़ार
लाद कर किताब पीठ पर थके हैं नौनिहाल
'वो प्रथम आए', विकल है अंजनी का इन्तिज़ार
पढ़ लिए हैं लिख लिए हैं ज्ञान भी वे पा लिए हैं
अब उन्हें है व्यग्रता से नौकरी का इन्तिज़ार
बूँद स्वाति की मिले, समुद्र को लगी ये आस
तलछटी के सीप को है मंजरी का इन्तिज़ार
ब़ाग़वाँ को त्याग कर विदेश को जो चल दिये हैं
निर्दयी वो भूल जाते भारती का इन्तिज़ार
--ऋता शेखर 'मधु'
सर्वशक्तिमान को है बंदगी का इन्तिज़ार
जिंदगी में हर किसी को है किसी का इन्तिज़ार
लाद कर किताब पीठ पर थके हैं नौनिहाल
'वो प्रथम आए', विकल है अंजनी का इन्तिज़ार
पढ़ लिए हैं लिख लिए हैं ज्ञान भी वे पा लिए हैं
अब उन्हें है व्यग्रता से नौकरी का इन्तिज़ार
बूँद स्वाति की मिले, समुद्र को लगी ये आस
तलछटी के सीप को है मंजरी का इन्तिज़ार
ब़ाग़वाँ को त्याग कर विदेश को जो चल दिये हैं
निर्दयी वो भूल जाते भारती का इन्तिज़ार
--ऋता शेखर 'मधु'