1.पाने को किनारा
फैसला था
मझधार में जाने का
डुबकियाँ लगती रहीं
सीप की मोतियाँ मिलीं
अब किनारे की चाह
चाह न रही
ज्ञान की तली ने
ठहराव जो दिया
मिटने लगी थीं
अपेक्षाएँ
जगने लगी पिपासा
परमात्मा में लीन होने की
2. दुःख के पके पत्ते
दुःख के पके पत्ते गिरे
मन की संधियों से झाँकने लगीं
कोंपलें सुख की
वह तूफ़ान
जो ले गया दूर
जीवन के विक्षत पन्ने
उसी से बने दलदल में
एक सुबह फूले आशाओं के कँवल
चाँद भी लौटा अमा से जीतकर
मन के आकाश में
कुछ ही पल के तो रहे जीवन के सूर्य ग्रहण
मुश्किल वक़्त ने ही मुझे दिए
करुणा के स्वर
और कर्म निश्छल
दुःख की कुदाल से ही हटे
जीवन की जमीन के जिद्दी अधिग्रहण.
3.दरीचे
बीती बातों के खंडहर में
जाने अनजाने क्यों घूमना
भविष्य के दरीचे से
जरा झाँक कर देख लो
सुवासित उपवन है
4.जादू की छड़ी
आने दो
मन के बसंत पर
व्यथा का पतझर
तभी मिलेंगे
खुशियों के किसलय
अँखियों में
घनघोर बदरिया
छाने दो
पल की परी
जादूई बड़ी
एक बार क्षण भर को
मुस्कानों वाली
छड़ी परी से
पाने दो
5.गुलमोहर
गुलमोहर सी जिंदगी
वीरता के नारंगी साफे में
जीत लेती है
अग्नि मिसाइल छोड़ते हुए
शत्रु धूप को
ख्वाब के पुष्प से
सज जाता आसमान
गुलमोहर
सिर्फ कवि की कविता नहीं
डायरी है साहस की
जिसने पंखुरियों के पन्ने पर
उकेरे हैं
मानव जीवन
6.बदलाव
बचपन की चटाई पर
बिखरे बिखरे खेल
गुड़ियों का घर
रसोई में पकते
झूठमूठ के चावल
और झूठमूठ से
चटखारे ले ले कर
खाती हुई माँ
कि
सच में अब
प्रोत्साहित करने को
माँ नहीं होती
कि
लैपटॉप में रमी
गुड़िया खेलने वाली
बेटियाँ नहीं होतीं
7.सतोलिया
चटपटी चाट सी चटपटी यादें
मन के मैदान पर
सतोलिया सजाती हुई
उस अल्हड़ किशोरी की बाट देखती
जो खिलखिलाकर
गिरा देती
सारी गोटियाँ
और पुनः सजाने की धुन में
निरीह हो जाता
वह विश्वास
जो उसकी सम्पदा थी।
8.मेरी बात
मैं अच्छी हूँ
तुमने कहा
समाज ने माना
मैं बुरी हूँ
तुमने कहा
समाज ने माना
मैं अच्छी ही हूँ
यह मैं कहती हूँ
समाज को मानना होगा
और तुम्हे भी
समाज में मेरा अस्तित्व
मेरी इज्जत
सिर्फ मेरे कर्मों से है
तुम्हारे वचन ने नहीं
9.बँधे हाथ
अपने वतन के वास्ते
गुलमोहर सा प्यार तुम्हारा
अनुशासन के कदम ताल पर
केसरिया श्रृंगार तुम्हारा
पत्थर बाजों की बस्ती में
जीना है दुश्वार तुम्हारा
चोट सहो तुम सीने पर
पर कचनारी हो वार तुम्हारा
हा! कैसा है सन्देश देश का
चुप रहकर शोले पी लेना
उन आतंकी की खातिर तुम
अपमानित होकर जी लेना।
अच्छी नहीं सहिष्णुता इतनी भी
रामलला को याद करो
कोमल मन की बगिया में
कंटक वन आबाद करो
-ऋता शेखर 'मधु'