मर्यादा की सीमा रेखा
जिसने किया अनदेखा
निकल गया वह
सुरक्षा के दायरे से
इतिहास गवाह है
अमर्यादित हँसी ने
महाभारत का लेख रचा
लक्षमण रेखा लाँघते ही
सिया हर ली गईं
महाविद्वान रावण
स्वर्ण खान का नृप
अमर्यादित सोच ने ही उसे
विनाश के कगार पर पहुँचाया
भाई की रक्षिता शूर्पनखा
मर्यादा उसने न गँवाई होती
जग में उसकी न हँसाई होती
प्रकृति नियम पर चलती
तभी दिन के बाद रात ढलती
पौ फटते ही
खगों की चहचह...
गोधूलि में बसेरे को लौटना
नीड़ में समाना
सुरक्षित होने के पल हैं
पुरुष से स्त्री और
स्त्री से पुरुष सुरक्षित हैं
मर्यादा पालन सिर्फ
स्त्रियों के लिए नहीं
मर्यादित श्रीराम ही
मर्यादापुरुषोत्तम कहलाए
मर्याद से सुरक्षा
हर हाल में जरूरी
बोलचाल में जरूरी
हँसी-मजाक में जरूरी
लेखन के शब्द में जरूरी
प्रारब्ध में जरूरी
रक्षा का धर्म निभाओ
स्यंमेव रक्षित बन जाओगे|
............ऋता