शनिवार, 31 मार्च 2012

किस्म-किस्म के फूल



गुलाब के फूल बागों में खिल रहे
चमेली के फूल चमन में चमक रहे
कमल के फूल जल में विचर रहे
बेली के फूल उपवन में बहक रहे
गुल्लड़ के फूल दिख नहीं रहे
गोभी के फूल उद्दान में चहक रहे
अप्रील के 'फ़ूल' यह पोस्ट पढ़ रहेः)))


अरे रे! बुरा न मानें...अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई!!!
आए हैं तो अपनी उपस्थिति भी दर्ज कर दीजिए...टिप्पणी बॉक्स मेंः)))

रामनवमी के शुभ अवसर पर-श्रीराम जन्म

!!!रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!!

प्रतीक्षा हुई खत्म, बस आने को है वह मधुर वेला|
पधारेंगे परम नारायण विष्णु बन  के  राम लला||

ग्रह  नक्षत्र  दिन  वार  सब  हो  गए  अनुकूल|
स्थान  है  सूर्यवंशी महाराज दशरथ  का  कुल||

चैत्र  शुक्ल  नवमी  तिथि  समय  है  मध्याह्न|
न शरद न ग्रीष्म है, चहुँ ओर  फैला  है विश्राम||

नदियों की धारा  अमृत सा जल ले कर बह रही|
ऋतुराज खड़े स्वागत को धरती आनंदित हो रही||

गगन  सजा देवगणों से गन्धर्व राम गुण गाने लगे|
गह-गह दुन्दुभि बजने लगी देवता पुष्प बरसाने लगे||

नाग  मुनि देव  कर स्तुतिगान लौट गए अपने-अपने धाम|
प्रकट हुए माता के सम्मुख, जग  को विश्राम देने वाले राम||

देख  अलौकिक रूप पुत्र  का  प्रफुल्लित हुआ कौशल्या का  मुख|
नेत्र आकर्षक तन था श्यामल, निहार माता को मिला अद्भुत सुख||

चार भुजाओं ने धारण किए थे अद्भुत आयुध चार|
आभूषण बन चमक रहा था गले में फूलों का हार||

प्रभु के रोम- रोम में शोभित थी ब्रह्मांड की छाया|
बिखरी दिख रही थी  कोटि-कोटि  वेद की माया||

विराट सागर की भाँति शोभा रही थी निखर|
देख-देख माता विह्वल, आनन्द से गईं सिहर||

प्रभु पुत्र-रूप में रहे गर्भ में, कौशल्या  को हुआ संज्ञान|
यह जान नारायण मुस्कुरा दिए, किया प्रश्नों का संधान||


पूर्व जन्म की कथा सुनाई, किया माता से निवेदन|
पुत्र-रूप में स्वीकारिए,  रखिए  पुत्रवत्  ही संवेदन||

माता हर्षित पुलकित हो गईं,कहा प्रभु से कर जोड़|
शिशु  रूप  में  आ  जाइए, मैं  हूँ  भाव  विभोर||
सुन कौशल्या की कोमल वाणी,प्रभु ने रूप वह त्यागा|
शिशु बन रूदन करने लगे, माता का प्यार भी जागा||

जो भी श्रवण करें इस चरित्र को, हरिपद वह पाएँगे|
माया-मोह  का जाल समझ, भव कूप में न जाएँगे||
                         ऋता शेखर मधु
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पूर्वप्रकाशित

गुरुवार, 29 मार्च 2012

सीखा है हमने...


                         



नन्हें मुन्नों संग खिलखिलाना सीखा है हमने
उनकी मासूमियत अपनाना सीखा है हमने|१|

मिट गए सारे रंजो-गम पल भर के लिए
उनसे सच्चाई आज़माना सीखा है हमने|२|

अहं को परे रख दिया दोस्ती के लिए
उन-सा ही सब कुछ भुलाना सीखा है हमने|३|

चोट लगी ज़ार ज़ार रो पड़े थे हम
रोते-रोते हँसने की कला भी सीखा है हमने|४|

कागज़ों पर आड़ी सीधी रेखाएँ खींचते हैं वो
उनसे उल्टे सीधे शब्द सजाना सीखा है हमने|५|

भा जाती हैं बच्चों की चुलबुली आँखें
गंभीरता के बीच शरारतें  भी सीखा है हमने|६|

ग़ल्तियाँ हो जाएँ सर झुका लेते हैं वो
उनसे भूल को स्वीकारना सीखा है हमने|७|

घंटी लगी, आजादी का शोर गूँजा
उनके बीच अपना सुर मिलाना सीखा है हमने|८|

ऋता शेखर मधु

शनिवार, 24 मार्च 2012

किसी को इतना न सताओ...




किसी को इतना न सताओ
कि उसकी मदद को
कायनात चल पड़े...

निर्दोष आँखों में
इतने आँसू न भरो
कि उसे सुखाने
ठंढी बयार चल पड़े...

उज्जवल जीवन में
इतने अंधकार न भरो
कि राह दिखाने
जुगनुओं की जमात चल पड़ें...

सरस कानों में
इतने टंकार न भरो
कि उसे भुलाने
कोयलों की कतार चल पड़े...

निर्मल दिलों में
इतने अंगार न भरो
कि उसे सहलाने
पावस की फुहार चल पड़े...

किसी की राहों में
इतने काँटे न बिछाओ
कि उसे हटाने
पँखुड़ियाँ अपार बिछ पड़ें...

भोलापन ईश्वर की नियामत है
इतनी निर्ममता से न कुचलो
कि उसे गुदगुदाने
तितलियों के पंख मचल पड़ें...

किसी को अपमानों के
इतने घूँट न पिलाओ
कि उसे अमर बनाने
पीयुष की धार चल पड़े...

नाहक किसी के लिए
इतनी नफ़रतें न पालो
कि उसके लिए
सृष्टि का प्यार उमड़ पड़े...

जिसका कोई नहीं
उसके लिए
प्रभु का प्यार है...
प्रकृति का दुलार है...

ऋता शेखर मधु

भगतसिंह


भगतसिंह (२३ मार्च पर विशेष)


आज़ाद भारत की कहानी
लिखी जिसने देकर कुर्बानी
परतंत्रता की बेड़ी को तोड़
किया जनमानस को उद्वेलित
वह शूरवीर बलिदानी था
नाम था उसका भगतसिंह
साथ सुखदेव राजगुरु के
ब्रिटिश शासन को ललकार दिया
हँसते हँसते फाँसी का फंदा
गले में वरमाला सा डाल लिया|

ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 20 मार्च 2012

ऐ बिहार तू बेमिसाल- बिहार दिवस (२२ मार्च)पर विशेष







ऐ बिहार, तू बेमिसाल
तुझ से हैं हम तुझमें मगन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|

हरियाली तेरे कदम चूमती
बहती पावन पवित्र गंगा
सीमा पर तुझको घेरे है
अवध झारखंड और बंगा
देकर कुर्बानी प्राणों की
सचिवालय पर लहरा दिया तिरंगा
आओ संभालें इसका चैन औ अमन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|१|

शून्य का जिसने ज्ञान दिया
खगोल का प्रमाण दिया
उस महान आर्यभट्ट को
तूने ही तो जन्म दिया
पाणिनी की व्याकरण दी
चाणक्य की दी कूटनीति
आओ समेटें गौरव इसका करके जतन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|२|

गौतम बुद्ध ने पाया ज्ञान
बोध गया बन गया महान
वैशाली की धरती ने
जैन महावीर का दिया दान
अशोक स्तम्भ बना राष्ट्र चिन्ह
भारत को मिल गई पहचान
आओ रौशन करें प्रांत औ वतन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|३|

विश्वविद्यालय नालंदा का
ज्ञान का था भवन प्रथम
वैशाली तन्त्र लिच्छवियों का
विश्व का था गणतन्त्र प्रथम
आरा के वीर कुँवर सिंह ने फूँका
आजादी का बिगुल प्रथम
आओ सहेज लें आजाद गगन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|४|

चम्पारण का नील आन्दोलन
सत्याग्रह गाँधी का था प्रथम
छपरा के अनुपम राजेन्द्र
राष्ट्रपति देशरत्न बने प्रथम
पटना साहिब के गोविन्द सिंह
गुरु सिखों के बने दशम्
आओ निहारें जगमग रतन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|५|

रेणु ,दिवाकर, बेनीपूरी हैं बिहार की शान
कवि कोकिल विद्यापति का, मधुबनी में धाम
सांस्कृतिक महोत्सव देता राजगीर को मान
विश्व प्रसिद्ध पशु मेले में सोनपूर का नाम
मधुबनी की चित्रकला है बिहार की आन
बोधगया में विश्व का मोक्षदायिनी धाम
आओ गर्व से सर ऊँचा करें हम
बनाएँ बिहार को सुंदर चमन
शत शत नमन तुझे शत शत नमन|६|

ऋता शेखर मधु

रविवार, 18 मार्च 2012

कुछ ताँका कविताएँ




१.
कोयल काली
तुम कितनी प्यारी
रूप से नहीं
गुण से जग जीता
स्वर दे मनोहारी|
२.
ओस की बूँद
सिमटी है पँखुड़ी
ज्यूँ मीठा स्वर
बस जाता बाँसुरी
सीपी में मंजरी|
३.
शरद ऋतु
रोम-रोम सिहरा
जिस धूप को
ग्रीष्म में बिसराया
अभी गले लगाया|
४.
लाल गुलाब
कहे काँटों के साथ
जीवन कथा
चुभन को झेल लो
खिलना तो न छोड़ो|
 ५.
झूमती कली
हँसी, कहने लगी
मैं तो खिली
भँवरों का गुँजन
सुन भई बावली|
६.
काला बादल
ढँके सूर्य किरण
छुप न पाती
ढकेल आवरण
वो चमक ही जाती|
७.
बरखा लाए
रिमझिम फुहार
सुर सजाए
तेज धार बौछार
गाए राग मल्हार|
८.
पावस ऋतु
हौले-हौले हवाएँ
सजे राग हैं
विरहा औ कजरा
भीगे कानन फूल|
९.
ग्रीष्म तपती
नभ में उड़ जाती
बन बदरा
झूमती फुहराती
ठंढक पहुँचाती|
 १०.
मेघ का थाल
बूँद-बूँद नीर के
ग्रीष्म सजाती
टकटक चातक
गिरा, प्यास बुझाती|

ऋता शेखर 'मधु'
यह कविता की जापानी विधा है|
इसमें वर्णों का क्रम 5+7+5+7+7=31 है|

मंगलवार, 13 मार्च 2012

कभी सोचा है...




कभी सोचा है...
न चाँद होता
न होते तारे
फिर हम क्या करते
चंदा को मामा बना
बच्चों को कैसे फुसलाते
कभी तन्हा रातों में
चाँद को साथी कैसे बनाते
नींद न आती
टकटकी लगा
तारों को कैसे गिनते
होते न तारे
न ही वे टूटते
फिर अपनी विश किसे बताते
चाँदनी रात न होती
मधुर सी कोई बात न होती
पूनम का चाँद न होता
पथ हमारे अँधियारे रह जाते
अपने प्रिय
दूर देस जब जाते
बताओ,तारों में उनको
कैसे ढूँढ पाते
काले बादल कोई क्यूँ देखे
चाँद की छुपा छुपी
कैसे हमें लुभाते
टिमटिम करते तारे न होते
ट्विंकल ट्विंकलकिसे सुनाते
चाँद न होता
चाँद-सी महबूबा न होती
कभी सोचा है...
काली स्याह भयानक रातें
कितना हमें डरातीं!!!

ऋता शेखर मधु

शनिवार, 10 मार्च 2012

नारी,स्वयंसिद्धा बनो





ओ धरा-सी वामा तू सुन,
गीले नयनों को नियति न मान
अपने आँसुओं का कर ले निदान
स्वयं को साबित करने की ठान
चल पड़ी तो राह होगा आसान|

तेरा  यह  क्रंदन  है  व्यर्थ
जीती  है  तू  सबके  तदर्थ
तू खुद को बना इतना समर्थ
तेरे  जीने का भी  हो  अर्थ|

जिस सृष्टि का तूने किया निर्माण
उसी सृष्टि में मत होने दो अपना अपमान|
तेरे भी अधिकार हैं सबके समान
नारी तू महान थी, महान है, रहेगी महान|

आज की नारी

नारी व्यथा की बातें हो गईं पुरानी
नए युग में बदल रही  है  कहानी|
बनती हैं अब वह घर का आधार
पढ़ें-लिखें करें पुरानी प्रथा निराधार|
बेटियाँ होती हैं अब घर की शान
उन्हें भी पुत्र समान मिलता है मान|
किशोरियों की होती है नई नई आशा
उनके गुणों को भी जाता है तराशा|
प्रमाण पत्रों पर होता माता का भी नाम
बदले युग में है यह नारी का सम्मान|
नारी शिक्षा पर है अब सभी का ध्यान
सरकारों के चलते हैं नए नए अभियान|
अब नारी के होंठ हँसते हैं
खुशी  से  पैर थिरकते हैं
सपने विस्तृत गगन में उड़ते हैं
इच्छाएँ पसन्द की राह चुनते हैं|
नारियों के मुख पर नहीं छाई है वीरानी
वक्त बदल गया,अब बदल गई है कहानी|

              ऋता शेखरमधु



गुरुवार, 8 मार्च 2012

तेरे नयन हैं गीले क्यों!-महिला दिवस पर




नारी,
तू अति सुन्दर है;
अति कोमल है;
सृष्टि की जननी है तू|
उम्र के हर पड़ाव पर किन्तु
तेरे नयन हैं गीले क्यों?

ओ गर्भस्थ शिशु बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘माता दिखाना ना चाहे दुनिया
दोष यह है, में हूँ एक कन्या ’’

ओ नवजात कन्या बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘पा सकी न स्नेह आलिंगन
समझते हैं सब मुझको बंधन’’

ओ नन्ही सी गुड़िया बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘भइया खाता है दूध और मेवा
मैं खाती हूँ सूखा कलेवा’’

ओ छोटी सी बालिका बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘पढ़ना चाहती हूँ पुस्तक मोटी
सेंकवाते हैं सब मुझसे रोटी’’

ओ चंचल किशोरी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मन है छोटा सा छोटी सी आशा
अनुशासन से होती है निराशा’’

ओ कमनीय तरुणी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘ख्वाबों की दुनिया रंग रंगीली
कहते हैं सब मुझको हठीली’’

ओ प्यारी सी पुत्री बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मैं भी तो हूँ उनकी जाई
फिर क्यूँ वो समझें मुझे पराई’’

ओ सजीली बन्नो बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘लागे है प्यारा मेरा साजन
पर छूटेगा घर और आँगन’’

ओ जीवन की संगिनी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘मैं चाहूँ सबको खुश रखना
कोई मुझको समझ पाए ना’’

ओ घर की बहुरानी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘दिन भर करती मैं सारे काम
ताने सुन सुन जीना है हराम’’

ओ आज्ञाकारिणी पत्नी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘सुख दुख को लेती मैं बाँट
फिर भी सुननी पड़ती है डाँट’’

ओ ममतामयी जननी बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘सारे दर्द तो मैंने सहे
नाम पिता का ही क्यों चले’’

ओ बच्चौं की अम्मा बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
 ‘‘उनके लिए मैं सोचूँ दिन रात
मन की करें चलाते अपनी बात’’

ओ रोबीली सासू बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘बड़े प्यार से परपुत्री अपनाई
करती है सारे जहाँ में बुराई’’

ओ अशक्त वृद्धा बोल
तेरे नयन हैं गीले क्यों!
‘‘मेरी बोली मन को न भाए
सबका निरादर सहा नहीं जाए’’

इससे आगे की बातें अगले पोस्ट में...
ऋता शेखर मधु