!!!रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!!
प्रतीक्षा हुई खत्म, बस आने को है वह मधुर वेला|
पधारेंगे परम नारायण विष्णु बन के राम लला||
ग्रह नक्षत्र दिन वार सब हो गए अनुकूल|
स्थान है सूर्यवंशी महाराज दशरथ का कुल||
चैत्र शुक्ल नवमी तिथि समय है मध्याह्न|
न शरद न ग्रीष्म है, चहुँ ओर फैला है विश्राम||
नदियों की धारा अमृत सा जल ले कर बह रही|
ऋतुराज खड़े स्वागत को धरती आनंदित हो रही||
गगन सजा देवगणों से गन्धर्व राम गुण गाने लगे|
गह-गह दुन्दुभि बजने लगी देवता पुष्प बरसाने लगे||
नाग मुनि देव कर स्तुतिगान लौट गए अपने-अपने धाम|
प्रकट हुए माता के सम्मुख, जग को विश्राम देने वाले राम||
देख अलौकिक रूप पुत्र का प्रफुल्लित हुआ कौशल्या का मुख|
नेत्र आकर्षक तन था श्यामल, निहार माता को मिला अद्भुत सुख||
चार भुजाओं ने धारण किए थे अद्भुत आयुध चार|
आभूषण बन चमक रहा था गले में फूलों का हार||
प्रभु के रोम- रोम में शोभित थी ब्रह्मांड की छाया|
बिखरी दिख रही थी कोटि-कोटि वेद की माया||
विराट सागर की भाँति शोभा रही थी निखर|
देख-देख माता विह्वल, आनन्द से गईं सिहर||
प्रभु पुत्र-रूप में रहे गर्भ में, कौशल्या को हुआ संज्ञान|
यह जान नारायण मुस्कुरा दिए, किया प्रश्नों का संधान||
पूर्व जन्म की कथा सुनाई, किया माता से निवेदन|
पुत्र-रूप में स्वीकारिए, रखिए पुत्रवत् ही संवेदन||
माता हर्षित पुलकित हो गईं,कहा प्रभु से कर जोड़|
शिशु रूप में आ जाइए, मैं हूँ भाव विभोर||
सुन कौशल्या की कोमल वाणी,प्रभु ने रूप वह त्यागा|
शिशु बन रूदन करने लगे, माता का प्यार भी जागा||
जो भी श्रवण करें इस चरित्र को, हरिपद वह पाएँगे|
माया-मोह का जाल समझ, भव कूप में न जाएँगे||
ऋता शेखर ‘मधु’
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