एक साधु बाबा किसी गाँव में पहुँचे| गाँववाले बड़े खुश हुए| सभी उनके दर्शन के
लिए बेताब हुए जाते थे| साधु बाबा ने कहा कि वे कल सुबह आएँगे और सबके घरों की बनी
खिचड़ी खाएँगे| गाँववाले उत्साहित हो गए| सबने बहुत मन से खिचड़ी पकाई| गाँव में
सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते थे| दूसरे दिन साधु बाबा गाँव में पधारे| सभी
चाहते थे कि वे उनकी खिचड़ी खाएँ| साधु बाबा सबके मन की बात समझ रहे थे| उन्होंने
कहा, सबकी खिचड़ी मिला दी जाए तब वे खाएँगे| सभी संप्रदाय के लोग अपनी खिचड़ी को
स्वादिष्ट मान रहे थे| पर बाबा जी की आज्ञा थी सो खिचड़ी मिला दी गई| सबके चेहरे
से मायूसी झलक रही थी| इसे देख साधु बाबा ने कहा कि उस इकट्ठी खिचड़ी से सब अपनी
अपनी खिचड़ी अलग कर लें| अब भला सबकी खिचड़ी अलग कैसे हो सकती थी| सबने कहा कि हम
सब मिलकर इसे खाएँगे| अपनी खिचड़ी को सबसे स्वादिष्ट साबित करने का विचार सबके मन
से निकल चुका था इसलिए सभी तनावमुक्त थे| सबने मिलजुल कर खिचड़ी खाई और साधु बाबा
जो संदेश देना चाहते थे उसमें सफल रहे|
एकता और भाइचारा में जो खुशी है वह सबकी समझ में आ चुका था|
....ऋता शेखर ‘मधु’