शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

उर में हमारे तुम पधारो, पंचमी त्योहार है - हरिगीतिका छंद

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सरस्वती वंदनाहरिगीतिका छंद

गूगल से साभार

यह शीश कदमों पर नवा कर, कर रहे हम वन्दना |
माँ शारदे, कर दो कृपा तुम, है विद्या  की  कामना||

संतान  हम  तेरे  अज्ञानी, ज्ञान  की  मनुहार है |
उर में हमारे तुम पधारो,  पंचमी  त्यौहार  है |१|


धारण मधुर वीणा किया है,  दे रही सरगम हमें|
संगीत से ही तुम पढ़ाती, पाठ  एकता  का हमें||

बस शांति हो संदेश अपना, दो  हमें यह भावना|
भारत वतन ऐसा बने, हो, सब जगह सद्‌भावना|२|


पद्‌मासिनी होकर कही तुम, हो सुवासित यह जहाँ|
रहती सदा ही हंस पर तुम, शांति छा जाती वहाँ||

माता करो उपकार हमपर, कर रहे  हम  साधना|
साकार हों सपने सभी के,  है  यही  आराधना|३|


इस ज़िन्दगी की राह भीषण, पाहनों से सामना|
ना ठोकरें खा के गिरें माँ, ज्ञान  दे,  संभालना||

तेरे बिना कुछ भी नहीं हम, सब जगह अवरोध है|
हों ज्ञान-रथ के सारथी हम, यह सरल अनुरोध है|४|


तूफ़ान में पर्वत बनें हम, शक्ति  इतनी  दो  हमें|
तेरे चरण- सेवी रहें हम,  भक्ति भी दे  दो  हमें||

करते तुझे शत-शत नमन हम, हो न तम का सामना|  
आसक्त तुझमें ही रहें हम,  बस  यही  है  कामना|५|

ऋता शेखर 'मधु'

बुधवार, 25 जनवरी 2012

आजान गूँजें मस्जिदों में, मंदिरों में घंटियाँ

चित्र गूगल से साभार
नटखट कन्हैया जा रहे हैं, धर्म से अनजान हैं|
बैठे सकीना गोद में वे,  मंद  सी  मुस्कान   है||

यह दृश्य है अद्भुत अलौकिक, बन रहा पहचान है|
ऐसे सलीमों को नमन है,  देश  की  ये  शान  हैं|१|


भारत वतन समभाव का है,हैं विविध से गीत भी|
सद्भाव बहता है रगों में,    है  दिलों  में  प्रीत  भी|

आजान गूँजे मस्जिदों में,  मंदिरों   में   घंटियाँ|
मीठा मधुर संगीत बन के, भाव प्यारा हो बयाँ|२|

ऋता शेखर 'मधु'

!!!गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!


रविवार, 22 जनवरी 2012

मैं भी चमकूँ

गूगल से साभार

गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई!!!









मैं भी चमकूँ


हम निवासी स्वाधीन देश के
उन्मुक्त विचरण करते हैं
वसुन्धरा के व्योम मंडल में
भास्कर में भारत को देखते हैं
निशा के घने अंधियारे में
नभ के चमकीले चन्द्र में
गाँधी का चेहरा चमकता है
सबसे प्रज्वलित ध्रुवतारे में
देशरत्न सा रतन दमकताहै
अगणित टिमटिम तारों में
बलिदानियों का
रक्तिम मुख भभकता है
रात के खिलते सितारों में
भगतसिंह आजाद मुसकते हैं
लक्ष्मीबाई वीरकुँअर के तारे
आकर्षित बहुत ही करते है
सप्तऋषि-मंडल के तारे
देशभक्त  ही  हैं  सारे
बिस्मिल सुखदेव राजगुरू
नेहरू तिलक पटेल सुभाष
इनसे सजा भारत आकाश
सावरकर और खुदीराम
अम्बर में चमचम करते हैं|

एक अभिलाषा मेरी भी है
देश के लिए मर मिटूँ
जब भी मैं तारा बनूँ
इनके बीच ही मैं भी चमकूँ|

         ऋता शेखर मधु

यह कविता रचनाकार पर १५ अगस्त २०११ को प्रकाशित हुई थी| 


शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

एक कविता - भाई के लिए


भाई मेरे
हो तो तुम मुझसे छोटे
पर रिश्ते यूँ निभाते
जैसे हो कितने बड़े|
जीवन पथ पर चलते-चलते
जब भी मैंने ठोकर खाया
सर उठाकर जो देखा
हाथ तुम्हारा आगे पाया|

जब भी तुमने ये देखा
मुख मलीन है मेरा
तुम भी फिर खुश न रहते
हर कोशिश खुश रखने की
लेकर आगे पग बढ़ाया
सर उठाकर जो देखा
हाथ तुम्हारा आगे पाया|

आँखों में अश्रु मेरे होते थे
विकल तुम नजर आते थे
सांत्वना की बड़ी टोकरी ले
सदा तुम्हें खड़े ही पाया
सर उठाकर जो देखा
हाथ तुम्हारा आगे पाया|

कोई समस्या नहीं है ऐसी
जिसका हल न तुमसे पाया
खुद से ज्यादा विश्वास तुमपर
सदा आधार उसे बनाया
सर उठाकर जो देखा
हाथ तुम्हारा आगे पाया|

चंदामामा से प्यारा मेरा मामा
बच्चों ने सदा गुनगुनाया
बाल-मन पढ़ने में माहिर
तुमने जादू की छड़ी घुमाया
जो काम मैं नहीं कर पाती
झट से तुमने कर दिखाया|

हमारे खरीदे टेड्डी बियर
बार्बी और हेलिकॉप्टर ने
कोने में से मुँह चिढ़ाया,
तुम्हारे गुलाटी वाले बन्दर
फट-फट चलने वाले स्टीमर
बुलबुले उड़ाते पाइप ने ही
बच्चों को था सदा लुभाया|

एक वरदान दिया हमें प्रभु ने
मुझको तुमसे बड़ा बनाया
जन्मदिन तुम्हारा आया है
एक वस्तु एसी तो है
जो मैं तुम्हे दे सकती हूँ|

मेरे अन्तर्हृदय से दुआओं की
निर्मल स्नेहमयी धारा बह रही है
पावन आशीर्वाद वेद-ऋचाओं-से
पवन में उन्मुक्त गूँज रहे हैं
जीवन के किसी भी पल में
जब भी मेरी जरूरत होगी
मेरे हाथ भी तुम सदा
अपने लिए आगे पाओगे|

जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएँ!!!
तुम्हारी दीदी-- ऋता शेखर मधु

सोमवार, 16 जनवरी 2012

Wish You Hadnt Dropped By--काश! तुम ना पधारते



आप सोच रहे होंगे कि हिन्दी ब्लॉग पर इंग्लिश पोयम का क्या काम है|यह पोयम मेरे सुपुत्र ने बॉस डे (१६ अक्टूबर-११)पर लिखा था जिसे ऑफिस में बहुत सराहना मिली|इसे मैं इस ब्लॉग पर डालना चाहती थी, तो नियम के अनुसार मेंने पुत्र महोदय से इसकी अनुमति माँगी तो आशा के प्रतिकूल मुझे यह जवाब मिला कि यह पोयम तभी मिलेगी जब मैं इसका हिन्दी में अनुवाद करूँ और वही भाव लाऊँ जिस भाव से उसने लिखा है-तो प्रस्तुत है दोनों version-
गूगल से साभार
Wish You Hadnt Dropped By

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Monday morning, sleepy eyes,
Week starts 'n emotions reprise...
A mountain of work,
*And the end is not nigh*
I just hope that you do not drop by...

They say - time likes to fly,
Weekdays differ, this notion they belie,
Here cometh the smiling you,
*Another query.. and yet another lie*
I just wish you hadn't dropped by...


But things aren't always bad,
I've seen clouds that silver lining had...
When times are rough,
There is only you to rely -
For once I'm glad you did drop by...


Adrift in my dreams,
With riches galore in faraway realms...
Peace it is - that I cannot deny,
Its weekend now, and you'll not drop by...

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गूगल से साभार
काश! तुम ना पधारते
सोमवार को होती जब भोर
उनींदी आँखें सिर्फ़ देखतीं
र्वत से कामों का ढेर
ऑफ़िस में उस बोझ तले
*अन्तहीन कार्यों के बीच*
मन में आती है सोच
बॉस, कहीं तुम पधार ना जाओ|

फिर बदलते हैं दिन
सप्ताह के मध्य में
कुछ काम निपट जाते
कुछ अधूरे ही रहते
आते तुम, आती तुम्हारी मुस्कान
*प्रश्नों के असंख्य बाणों को धारते*
ओह बॉस! काश! तुम अभी ना पधारते|

पर जीवन की इतनी भी बुरी नहीं है गाथा
काले मेघों में भी रुपहली रेखा देता है विधाता
जब समय होता है प्रतिकूल
अँखियाँ तुम्हारे पथ को निहारतीं
बॉस, मुझे खुशी होती
जब तुम मेरी कुटी में पधारते|

सप्ताह के अंत में
जब मन होता
सुखद स्वप्नों में विलीन
ऑफिस से दूर और कष्टहीन
इस सुख के बीच,
तुम कार्य नहीं लाओगे
क्योंकि  सप्ताहांत में
बॉस, तुम पधार ही नहीं पाओगे !

ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

लिपटे लटाई मंझ धागे,जीत का आगाज़ है


मकर संक्रंतिहरिगीतिका में


पावन  मकर संक्रांति  आया,  सूर्य  उत्तरायण  हुए|
उष्मा भरी अरु, ऊर्जा समायी, सब सरस सावन हुए||

खाते दही चूड़ा गजक हम, आज  यह  आहार  है|
सब देव जागे हैं जमीं पर, मन  रहा  त्योहार  है|१|


पंजाब में  यह लोहड़ी है,  बंग  में  संक्रांति है|
पोंगल तमिलनाडू मनाए, बिहु असम के संग है||

प्यारी पतंगें सज चुकी हैं,  यह  बना  परवाज़  है|
लिपटे लटाई मंझ धागे,  जीत  का  आगाज़  है|२|

ऋता शेखर मधु

शनिवार, 7 जनवरी 2012

६.अहिल्या की श्राप-मुक्ति- ऋता की कविता में


आज मैं श्रीरामकथा की छठी कविता लेकर प्रस्तुत हूँ| आपकी छोटी से छोटी प्रतिक्रिया भी मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं और मुझमें नए उत्साह का संचार करती है|
अहिल्या की श्राप-मुक्ति
मान रखा मुनि विश्वामित्र का, यज्ञ पूर्ण करवाए दोऊ भाई|
सूर्यवंशी कुल की मर्यादा रखी, क्षत्रिय धर्म उन्होंने निभाई||

सर्व कार्य जब हो गए पूर्ण, विप्र  आनन्दित  हुए बहुत|
वापस आए निज आश्रम को, राम और लक्ष्मण सहित||

ऋषि नित पौराणिक कथा सुनाते, राम मन ही मन मुस्काते|
अन्तर्यामी  प्रभु   की लीला, विश्वामित्र  भी समझ न पाते||

सुअवसर देख एक दिन ऋषि ने, जनकपुरी का नाम लिया|
धनुष यज्ञ का वृतांत सुना, राजकुमारों  को  मोह  लिया||

चले  दशरथनंदन  संग  गुरू  के, पथ में मिला आश्रम सुनसान|
न खग, न हिरण, न कोई जन्तु, बस वहाँ पड़ा था एक पाषाण||

राम बहुत अचंभित हो गए, गुरू से प्रकट की अपनी जिज्ञासा|
उस पाषाण की कथा सुना, गुरू  बताए  शिला  की अभिलाषा||

एक  थे  ऋषि  गौतम, परिणीता अहिल्या थी मानिनी|
पतिव्रता थी, साथ ही थी अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी||

इन्द्रदेव की नजर फिसली, सुन्दरता पर हो गए मोहित|
अभिलाषा हुई उन्हें पाने की, सोच न पाए हित-अनहित||

एक   प्रातः गौतम  गए, करने  को  स्नान|
मित्र ही धोखा दे देंगे, इसका नहीं था भान||

गौतम का रूप धरा इन्द्र ने, ऋषि-पत्नी पहचान नहीं पाई|
विश्वासघात  किया  देवराज  ने, पतिव्रता ने धोखा खाई||

वापस लौटते हुए गौतम ने, निज रूप में देखा इन्द्र को|
पहचान कर विस्मित हुए, आखिर गए थे ये किधर को||

आश्रम में जो पग रखा, बात समझ में आ गई|
क्षुब्ध वह हुए बहुत, क्रोध ने  चरम सीमा पाई||

क्रोधित ऋषि ने आपा खोया, शिला बनने का दे दिया श्राप|
अहिल्या रोई,  गिड़गिड़ाई,  मुक्ति का मार्ग भी बताएँ आप||

क्रोध उतरा ऋषि पछताए, पर बचा नहीं था उपाय|
मुक्ति तो तभी मिलेगी, जब श्रीराम चरण-रज पाय||

गुरू ने राम को बतलाया, अहिल्या से हुई अनजाने इक भूल|
कृपा करें शापित शिला पर, दें स्व चरणों  की  पवित्र  धूल||

श्रीराम के शिला-स्पर्श से, हुई प्रकट तेजोमयी नारी|
पाकर रघुनाथ को सामने, मुँह  के  बोल  वह हारी||

नेत्रों से बह चली धार अश्रु की, रह न पाई वह खड़ी|
खुद को भाग्यवती माना, श्रीराम चरणों में गिर पड़ी||

धर धीर, जगतस्वामी को पहचाना, जिनकी दया से मुक्त हुई|
उनकी  कृपा  और  भक्ति  पाकर, मन ही मन वह तृप्त हुई||

कर जोड़ विमल वाणी में बोली,  हूँ तो मैं स्त्री अपवित्र|
प्रभु हैं सुखदाता, कृपानिधान, करते जग को सदा पवित्र||

भव को भयमुक्त कराने वाले, पड़ी हूँ मैं आपके चरण|
मेरी भी रक्षा करें, आ गई हूँ प्रभु, सिर्फ आपके शरण||

शाप दिया ऋषि गौतम ने , उसका  ही  तो  लाभ मिला|
उनके परम अनुग्रह से ही, प्रभु दर्शन कर मन मेरा खिला||

मैं बुद्धि से हूँ भोली, बस कृपा इतनी सी कीजिए|
मेरा मन रूपी भ्रमर
आपके चरण-रज रस-पान करे, वर यही तो दीजिए||

आई पवित्र गंगा प्रभु-चरण से, शिव  ने  मस्तक  पर  धार लिया|
ब्रह्मा भी पूजें चरण जिनके, उन चरणों के स्पर्श का सौभाग्य मिला||

परम आनन्द से पूरित होकर, अहिल्या स्वर्गलोक को गई|
श्राप वरदान साबित हुआ, बात यह  सिद्ध  कर गई||

ऋता शेखर मधु