रंग भरे दिन-रैन- दोहा संग्रह
लेखिका- कमल कपूर
प्रकाशन- अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य- 260/-
पृष्ठ- १०५
पुस्तक लेखन की दुनिया के सहृदय लेखक रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी को समर्पित की गई है| उसके आगे लेखिला का गुरु के प्रति समर्पित दोहै है जो गुरु के प्रति लेखिका का सम्मान प्रदर्शित करता है|
पहले गुरु की वंदना करूं हाथ में जोड़। जिसने चमकाया सदा जीवन का हर मोड़।।
कमल जी ने कुछ दोहे कलम को समर्पित किए हैं। लिखते कथा कहानियां मीठे मोहक गीत। लिखे खत मनुहार के कलम मनाती मित्र।
अनुक्रम में चार विषयों के अंतर्गत उप विषय रखे गए हैं|
लेखिका ने अपनी बात में लिखा है की उनके 480 दोहे पूजा के वे दीप हैं जो उन्होंने कृतज्ञ भाव से देवी प्रकृति की उपासना करते हुए प्रज्वलित किए हैं।
अनुक्रम में चार विषयों के अंतर्गत उप विषय भी रखे गए हैं। प्रथम विषय रंग भरे दिन रैन के अंतर्गत पहला उप विषय रंग भरे दिन रैन ही है।
बरसों से मौसम सभी, देख रहे भर नैन।
रूप बदलते हर घड़ी, रंग भरे दिन- रैन।।
यहाँ पर दोहाकार ने मौसम की आवाजाही और उस के बदलते स्वरूप को अपने अनुभव से जोड़कर लिखा है। यह मौसम कभी खुशियों के भाव भरते हैं और कभी उदास कर जाते हैं। सभी भाव के अपने रंग होते हैं जिसमें जीते हुए मनुष्य अपने दिन और समय को व्यतीत करता जाता है। प्रकृति के सानिध्य में दिन का सबसे उर्जात्मक समय सुबह का समय होता है। जिसने भोर को देखा और आनंद उठाया वही सुबह के खुशनुमा रंग को आत्मसात कर सकता है।
माखन से उजली सुबह ,पाखी दल के गीत।
हँसी खुशी है घूमती, बनके जुड़वा मीत।।
सुबह के लिए माखन का बिंब लेना आकर्षित करता है।
एक और दोहा देखिए…
रजनीगंधा रेन थे,दिन थे शोख़ गुलाब।
दिन में हाथ किताब तो, रातों को थे ख्वाब।।
एक दोहा देखिए जिसमें कवयित्री का हल्का सा चुहल नजर आता है।
जाड़े में रविराज जी, करते नखरे खूब।
बादल से नाराज हो, गए नदी में डूब।।
मौसम में जेठ सबसे गर्म महीना माना जाता है। यह गर्मी जहाँ पशु पक्षी समुदाय को त्रस्त करती है, परेशान करती है वहीं यह गुलमोहर में नई रंगत पैदा करती है।
धूप जेठ की सींचती, गुलमोहर में जान।
सूरज से ले लालिमा, बढ़ती अद्भुत शान।।
जब दिवस का अवसान होता है तो भोर में जितने स्वर्ण रश्मियाँ बिखरी थीं उन्हें समेटने का काम भी शुरू होता है। और यह काम सांझ के जिम्मे आता है।
किरण-गठरिया लाद के, चली केसरी शाम।
पहुँचेगी यह रात तक, अँधियारे के गाम।
अंधियारे के गाँव में क्या होता है इसका दर्शन करते हैं।
नीरवता में गूंजता, मलयानिल संगीत।
चाँद फलक पर आ गया, हुई रात की जीत।।
एक अन्य सुंदर दोहा देखिए…
कुमुद कुमुदिनी से सजे, नदी सरोवर ताल।
लहरों पर तेरा करें, उजले बाल-मराल।।
ऋतुओं में सबसे मनमोहक ऋतु बसंत का होता है। यह बहारों का मौसम है| ये बहार फूलों और तितलियों से आती है| चारो ओर उनका साम्राज्य दिखता है| यह बात दोहा के माधयम से कवयित्री ने इस प्रकार लिखी है|
बासंती ऋतु ने किया, अजब अनोखा काम।
सारा गुलशन लिख दिया, अलि-तितली के नाम।।
चारों ओर बढ़ते प्रदूषण और अरशद हवा की कमी की ओर कवित्री ने बहुत ही सरल और सरस भाव से इशारा किया है। जहां वह मंदाकिनी हो कदंब की छांव। खोजें चलकर आज ही ऐसा कोई गांव।।
ऋतुओं का उल्लेख करते हुए महाकवि निराला के अवतरण दिवस को लेखिका ने मनभावन तरीके से लिखा है।
मधुरिम तिथि थी पंचमी, ऋतु बसंत अभिराम।
जब भारत के पटल ने, लिखा ‘निराला’ नाम।।
लेखक जब कभी कलम उठाता है तो उसकी कोशिश रहती है की वह मानव मन को भी परिभाषित करें और प्रेरणा की पतवार पकड़कर मनुष्य को निराशा के दलदल से पार कराने का प्रयास करें| लेखिका ने भी मानव मन पर और रिश्तो पर अच्छे दोहे सृजित किए हैं| मन को धैर्य बंधाने का प्रयास देखिए…
झड़ गई सारी पत्तियां, पर ना पेड़ उदास|
सांस सांस में पल रहे, नव जीवन की आस।।
कवयित्री ने सबके लिए मंगल कामना करते हुए लिखा है-
दीपक रोज जलाइये, एक सुबह इक शाम|
महारोग से जूझते, सब लोगों के नाम।।
लेखिका ने खिड़की को विषय बनाते हुए लिखा है…
खिड़की के आगे कभी, ना चिनना दीवार।
सिसक रही बाहर खड़ी, ताजा मधुर बयार।।
इस दोहे में मकानों के बीच में दूरी ना होने का जिक्र हुआ है। शहरों में सटे-सटे मकान बनते हैं जिनसे खिड़की का फायदा खत्म हो जाता है। जिस खिड़की को हवा और धूप के लिए बनाया जाता है सामने दीवार उठ जाने से, वह घर वंचित रह जाता है।
कमल जी की लेखनी माँ के लिए बहुत भावपूर्ण चली है और खूब चली है।
माँ की महिमा का करें, कवि कोई गुणगान।
भरनी होगी और भी, उसे कलम में जान।।
सचमुच माँ को शब्दों में बाँध पाना बहुत कठिन है। इसी संदर्भ में दूसरा दोहा भी बहुत सुंदर है।
माँ बनकर ही जानती, बिटिया मां का मोल।
कानों में तब गूँजते, माँ के मीठे बोल।।
जब रिश्तो की बात चले तो भाई बहन का जिक्र ना हो, ऐसा नहीं हो सकता।
डोर कलाई बाँध के, तिलक लगाकर भाल।
भाई का सुख माँगती, बहना हुई निहाल।।
शेष अशेष के अंतर्गत एक दोहा जो आकर्षित कर रहा…
दीवारें कब तक सहे, तस्वीरों का भार|
मन में उन्हें सजाइए, चले गए जो पार।|
अक्सर घर में उनके फोटो रखे जाते हैं जो दुनिया छोड़ कर चले जाते हैं। कवयित्री का कहना है कि दीवारों पर सजाने के बजाय उन्हें मन में स्थान देना चाहिए ताकि वह हर जगह साथ रहे| उनकी तस्वीरें मन के दीवार पर होनी चाहिए , घर की दीवारों पर नहीं।
एक दोहा और है जो सीधे मन तक पहुंच रहा…
राहें तो सीधी सभी, टेढ़े मन के मोड़।
कभी हमें जो तोड़ दें, और कभी दे जोड़।|
कमल जी ने बहुत सार्थक तरीके से या बात समझाई है कि रास्ते हमेशा सीधे ही रहते हैं| यह मनुष्य का मन होता है जो राहों को सरल या कठिन बनाता है|
कवयित्री कमल कपूर जी की लेखनी सतत चलती रहे, इसके लिए दिल से शुभकामनाएँ !!