शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

उत्तरदायित्व

उत्तरदायित्व का ज्ञान
"अंजना, जरा पानी देना।"
"अंजना, चादर ठीक से ओढ़ा दो बेटा।"
"अंजना, मन भारी लग रहा, कुछ देर मेरे पास बैठो।"
"माँ, पानी भी दिया, चादर भी दिया। पास बैठने का समय नहीं, आपके बेटे आएंगे, वही बैठेंगे।"
बहु की बात सुनकर प्रमिला जी की आंखें छलक गईं।

प्रमिला जी ने बेटे की शादी तब की थी जब उनकी सास जीवित थीं। तीन देवर और दो ननदों वाला भरा पूरा संयुक्त परिवार था। सबसे बड़ी बहू प्रमिला जी ने खुद को गृहस्थी में पूरी तरह से लगा दिया। सास के ताने सुनते सुनते आदी भी हो गईं थीं। बेटे की शादी हुई तो वे नहीं चाहती थीं कि उनकी बहु इस झमेले में पड़े। इसलिए कभी उसे अपने पास नहीं रखा। ईश्वर की निष्ठुरता से उस दिन बुरी तरह से टूट गईं जब उन्हें लिवर कैंसर निकल गया। बड़ी बेटी और दामाद ने उनकी भरपूर सेवा की। बाद में बेटा किसी तरह से तबादला करवाकर माँ के पास आ गया। अब वे बेटी के घर से अपने घर आ गई थीं।आये हुए सिर्फ पाँच दिन ही बीते थे।
अब बेटी रोज़ आकर माँ को देख जाती। कुछ चीज़ें न भी पसन्द आती तो चुप रहकर कर देती। उस दिन भी वह आई। माँ की छलकी आँखें उससे छुप न सकीं। कीमोथेरेपी ने माँ को बहुत कमजोर बना दिया था।
"भाभी, माँ अब कम दिनों की ही मेहमान है। थोड़ा वक्त उनके साथ बिता लिया कीजिये।" सहज भाव से बेटी ने कह दिया।
"तो मैं क्या करूँ, यहां आकर फंस गई हूँ।" भाभी की बात से वह आहत हो गयी।
"छह महीने लगे आपको आने में भाभी। "
"अब तुम मुझे मेरा उत्तरदायित्व बताओगी"
"नहीं, मैंने सोचा था कि बेटा बहु के आ जाने से अच्छा रहेगा। खैर, माँ को ले जा रही हूँ वापस। आप आराम करें।"
दरवाजे पर बेटे ने भी कोरों पर छलक आई बूंदों को चुपचाप से पोंछकर माँ के पास चला गया।
"भाई, आपकी कोई गलती नहीं। गलती तो माँ से हुई जो प्रेमवश आपको परिवार के जंजाल से दूर रखी। भाभी इसे अपना अधिकार समझ बैठीं और उत्तरदायित्व भूल गईं।"
-ऋता शेखर मधु

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

उधम की परिणति

उधम की परिणति
शाम हो चली थी| हल्के अँधेरे अपने पाँव धीरे धीरे पसार रहे थे| मैं ऑफिस से लौट कर अपार्टमेंट की ओर बढ़ रहा था| पार्क में खेलता हुआ मेरा छह वर्षीय बेटा मुझे देखते ही मेरे पास आ गया| हम आगे बढ़ते जा रहे थे तभी रोने की आवाज़ आई| कौन रो रहा, यह देखने के लिए हम इमली के पेड़ वाले पार्क की ओर बढ़े| वहाँ बहुत बड़ा लोहे का पिंजरा था जिसके अन्दर तीन बड़े और दो नन्हें बन्दर कैद थे| वे ही बन्दर रो रहे थे और बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे| मुझे याद आया कि अपार्टमेंट की ओर से सुबह ही नोटिस आ चुका था कि अपने छोटे बच्चों को इमली पार्क में न जाने दें|
“पापा, इन बन्दरों को पिंजरे में क्यों बंद किया है|”

“ये सबको तंग करते थे बेटा| तुमने देखा था न कि गृह प्रवेश के दिन ये खिड़की से घुसकर पूजा के सारे केले उठाकर ले गए थे|”

“दादी ने कहा था कि हनुमान जी स्वयं आकर प्रसाद ग्रहण किये| तो ये तो भगवान हैं न |” बालमन बन्दरों को कैद में देखकर छटपटा रहा था| ”ये बन्दर शाम को यहाँ घूमते थे तो कितना अच्छा लगता था|”

“पर अब यहाँ हम मनुष्य रहेंगे तो वे कैसे रह सकते हैं,” मैंने बेटे की गाल थपथपाते हुए कहा|

“हम मनुष्य बहुत गंदे हैं पापा| उनके रहने के पेड़ काटकर अपना घर बना लिया| उनसे उनका घर छीन लिया| वे अपना घर खोजने आते हैं,” बेटे की बात मुझे भी आहत कर रही थी|

“उधम मचाएँगे तो यही होगा”, बात टालने के इरादे से मैंने कह दिया|

“दादी कहती हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं| मैं भी तो उधम मचाता हूँ तो क्या मुझे भी...”उसने अपना मुँह मेरे कंधे में छुपा लिया|

हर दिन सोने से पहले बिस्तर पर उधम मचाने वाला मेरा मासूम बेटा उस दिन चुपचाप सो गया और मैं शांत बिस्तर पर जाग रहा था|

-ऋता शेखर ‘मधु’
14/04/18
मौलिक, अप्रकाशित

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

मी टू-लघुकथा

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मी टू

‘रमोला, ये तुम्हें क्या सूझी है| तुम्हारा हँसता खेलता परिवार बर्बाद हो जाएगा| परिणाम पर भी विचार किया है क्या?’’
‘जी दीदी, सब सोच कर ही फैसला लिया है| अब बात बाहर आनी ही चाहिए|”
‘किन्तु, रमेन्द्र जी ये सह नहीं पाएँगे| समाज में सशक्त लेखक के रूप में उनकी इज्जत है| पहले उनसे बात कर लो|’’
‘वो नारी सशक्तिकरण के घोर समर्थक हैं| कुछ न कहेंगे|’’
‘वे पुरुष भी हैं, यह सोच लेना| पर वह था कौन रमोला?’’ दीदी का भयभीत स्वर गूँज उठा|
‘वह तो ‘मी टू’ कैंपेन से जुड़कर ही बताऊँगी दीदी,’’ कहती हुई रमोला बाहर निकल गई|

थोड़ी देर बाद ब्रेकिंग न्यूज था, ‘प्रसिद्ध लेखक रमेन्द्र जी की पत्नी रमोला ''मी टू” कैंपेन से जुड़ी हैं| जब वे बारह वर्ष की थीं तो बड़ी बहन ने डिलीवरी के वक्त बुलाया था ताकि घर के कामों में मदद मिल सके| जब बहन अपनी ननद के साथ अस्पताल में थीं तो घर में बहन की ननद के पति ने उनके अकेलेपन का फायदा उठाया| बहन का घर न टूटे इस वजह से वे चुप थीं| किन्तु इस कैंपेन ने उन्हें अपनी बात कहने की हिम्मत दी है|’’
खबर सुनते ही रमेंन्द्र जी स्तब्ध रह गए| रात में बच्चों ने पिता को बाहर सोफे पर सोये देखा|
तभी दीदी का फोन आया,’’मेरी ननद सूटकेस के साथ मेरे घर आ गई हैं रमोला, शायद हमेशा के लिए| पर तू तो खुश है न’’
रमोला फोन रखते हुए सोच रही थी, कौन का अपराध ज्यादा बड़ा है...चुप रहने का या बोल देने का|
-ऋता शेखर ‘मधु’

सेलिब्रीटीज द्वारा मी टू कैंपेन के तहत किए जा रहे खुलासों के आधार पर रचित कथा

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

संवैधानिक अधिकार-सदुपयोग या दुरुपयोग

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संवैधानिक अधिकार-सदुपयोग या दुरुपयोग

अधिकार, एक ऐसा शब्द जो सुख, सुविधा और सहुलियत के दरवाजे खोलता है| कहते हैं जब मनुष्य अपना कर्तव्य करता है तो अधिकार खुद ब खुद मिल जाते हैं| समाज में रहने के लिए कर्तव्य और अधिकार, दोनों आवश्यक हैं|

अब सवाल यह उठता है कि कानूनी रूप से अधिकार लेने की नौबत कब आती है| तभी न जब सामने वाला उसे वह सहुलियत देने में अनदेखी करे या आनाकानी करे| कई मामलों में अधिकार को कानूनी रूप देना आवश्यक हो जाता है|
किन्तु जब किसी को मिला हुआ अधिकार उसे अहंकारी बना दे, निरंकुश बना दे तो कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता आ जाती है|

*हम यहाँ पर शुरु करते हैं उस अधिकार की बात से जब वैवाहिक विच्छेद को कानूनन स्वीकृत किया गया| 1955 में हिन्दु मैरिज एक्ट के तहत हिन्दु रीति रिवाज से हुए विवाह को मान्यता प्राप्त थी| बाद में उसे कानून के हाथों में सौंपा गया जब किसी परिस्थिति में पति-पत्नी का साथ रहना सम्भव नहीं हो पाए तो विवाह विच्छेद ही एकमात्र विकल्प बचता है| यह परिस्थिति में पत्नी को क्या क्या सुविधाएँ मिलनी चाहिए, इसपर कई संशोधन हुए| धीरे धीरे यह कानून जहाँ एक ओर स्त्रियों को सहुलियत देने लगा वहीं कुछ इसका दुरुपयोग भी करने लगे| झूठे आरोप गढ़े जाने लगे| घरों को टूटने की संख्या बढ़ने लगी| संपत्ति के लिए या बदला लेने के लिए इन अधिकारों का दुरुपयोग किया जाने लगा|

*दहेज प्रतिबंध अधिनियम 1961 में बनाया गया| इसका उद्देश्य नवविवाहिता को दहेज उत्पीड़न से बचाना था| धीरे धीरे इन अधिकारों का दुरुपयोग आरम्भ होने लगा| तब संशोधन की आवश्यकता पड़ी|27 जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया|अब दहेज उत्पीड़न मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।

कोर्ट ने नाराज पत्नियों द्वारा अपने पति के खिलाफ दहेज-रोकथाम कानून का दुरुपयोग किए जाने पर चिंता जाहिर करते हुए निर्देश दिए कि इस मामले में आरोप की पुष्टि हो जाने तक कोई गिरफ्तारी ना की जाए। कोर्ट ने माना कि कई पत्नियां आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग करते हुए पति के माता-पिता, नाबालिग बच्चों, भाई-बहन और दादा-दादी समेत रिश्तेदारों पर भी आपराधिक केस कर देती हैं। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा कि अब समय आ गया है जब बेगुनाहों के मनवाधिकार का हनन करने वाले इस तरह के मामलों की जांच की जाए।

कोर्ट द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस के मुताबिक, हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति गठित की जाएगी और सेक्शन 498A के तहत की गई शिकायत को पहले समिति के समक्ष भेजा जाएगा। यह समिति आरोपों की पुष्टि के संबंध में एक रिपोर्ट भेजेगी, जिसके बाद ही गिरफ्तारी की जा सकेगी। बेंच ने यह भी कहा कि आरोपों की पुष्टि से पहले NRI आरोपियों का पासपोर्ट भी जब्त नहीं किया जाए और ना ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो।

*हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन से पहले, परिवार के केवल पुरुष सदस्य ही प्रतिपक्षी थे, लेकिन बाद में बेटियों को भी एक हिस्सा पाने का हकदार बना दिया गया। अब सोचने वाली बात यह है कि इस संशोधन की आवश्यकता ही क्यों पड़ी| इसलिए न कि यदि बेटी किसी विशेष परिस्थिति में माता पिता की संपत्ति का कुछ हिस्सा चाहे तो भाई इसके लिए कदापि तैयार न होंगे| साधारणतंः विवाहित खुशहाल बेटियाँ संपत्ति पर अपन दावा नहीं ठोकतीं किंतु बेटी का किसी कारणवश पति से संबंध विच्छेद हो जाए तो वह कहाँ जाए| या फिर कोई बेटी अविवाहित रह जाए तो उसे भी माता पिता के घर में रहने का उतना ही अधिकार है जितना बेटे को| किसी भी घर की बिक्री के लिए बेटियों की सहमति भी आवश्यक है| इससे बेटों की मनमानी पर रोक लगी|

*एक एनजीओ कॉमन कॉज ने 2005 मेंसुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छा मृत्यु की वसीयत (लिविंग विल) लिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर मरणासन्न का सपॉर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2018 को ऐतिहासिक फैसले में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को गाइडलाइन्स के साथ कानूनी मान्यता दे दी है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि कब वह आखिरी सांस ले। कोर्ट ने कहा कि लोगों को सम्मान से मरने का पूरा हक है। लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। 'पैसिव यूथेनेशिया' (इच्छा मृत्यु) वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

अब देखना यह है कि इस फेसले का  सदुपयोग ही हो|

*अब बात करते हैं अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण की| भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव रामजी आंबेडकर ने स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाति/जनजाति के उत्थान के लिए सभी सरकारी लाभ के लिए उनका प्रतिशत निश्चित किया था| यह सर्वप्रथम दस वर्षों के लिए लागू की गई| बाद में इसकी अवधि बढ़ाकर चालीस वर्ष की गई| आरक्षण तो मिला पर दलित समाज को उनकी जाति का नाम लेकर व्यंग्य और कटाक्ष करने वाले भी कम न थे| इसे मद्देनजर रखते हुए अगस्त 1989 में नियम बनाया गया कि कोई सवर्ण जाति यदि ऐसे शब्द इस्तेमाल करते हैं जिनसे उनकी भावनाएँ आहत होती हैं और उनकी शिकायत थाने में दर्ज की जाती है तो तुरंत उस तथाकथित व्यक्ति को गिरफ्तार करना होगा| उस दलित को मुआवजा भी दिया जाएगा|

कानून दलित समाज के भले के लिए था किन्तु धीरे धीरे यह धमकी का रूप लेने लगा| इसी कानून का हवाला देकर झूठे आरोप भी लगाए जाने लगे| जितने केस दर्ज़ हुए उनमें करीब सत्तर प्रतिशत केस झूठे साबित होने लगे| नौबत यहाँ तक पहुँच गई कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश को अनुसूचित जाति के उनके जुनियर जजों ने फँसा दिया| इन सबके मद्देनजर कानून में सुधार की आवश्यकता पड़ी| मार्च 2018 में इस नियम में बदलाव किया गया है और शिकायत पर तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई गई है||
-ऋता शेखर 'मधु'

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

ग्रीष्म गुलमोहर हुई

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ग्रीष्म
ग्रीष्म गुलमोहर हुई है
मोगरे खिलने लगे
नभ अमलतासी हुआ जब
भाव गहराने लगे|

अब नवल हैं आम्रपल्लव
बौर भी अमिया बना
वीरता भी है पलाशी
शस्त्र दीवाने लगे|

तारबूजे ने दिखाया
रंग अब अपना यहाँ
दोपहर में जेठ की
स्वेदकण बहने लगे|

नीम भी करने लगे हैं
ताप से अठखेलियाँ
जी गईं उनकी शिराएँ
पात हरसाने लगे|

शौक से चढ़ने लगी हैं
मृत्तिकाएँ चाक पर
नीर घट के साथ रहकर
सौंधपन लाने लगे|

भोर की ठंडी हवाओं
ने दिया संदेश है
झूम लो क्षण भर यहा़ँ
हम फिर कहाँ अपने लगे|

-ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 1 अप्रैल 2018

धुंध

4
धुंध
नींद खुली
नव रश्मियाँ
भोर का सौंदर्य
कलरव
प्रकृति का माधुर्य
खिड़कियाँ
आज भी खोलीं
बाहर झांकते हुए
स्पष्ट नहीं था कुछ
धुंध छायी थी।
उज्ज्वल रास्तों के लिए
करना होगा वक्त का इंतेज़ार
धूप गहराएगी
तभी दिखेंगे
दूब और फूल
कि सब कुछ
हमारे वश में नहीं होता
करना ही होता है
समय का इंतेज़ार
मन में छाए धुंध को
छंट जाने का।
-ऋता
5
समानता
*
समान चेहरा फिर भी अलग
समान दिनचर्या होते अलग
समान समस्याएं निदान अलग
समान सोच अभिव्यक्ति अलग
समान जीवन क्रम उम्र अलग
सूर्य वही दिवस विस्तार अलग
चाँद वही रूप अलग

समानता में अलगाव
फिर क्यों हम चाहते
सामने वाले का निदान
वही हो
जैसा हमने किया
वह वैसे ही जीये
जैसे हमने जीया
समझो कभी उनके मन को
जिंदगी और मौत समान
जीने की कला अलग अलग
मरने के रास्ते अलग अलग।
-ऋता