रविवार, 22 दिसंबर 2019

दोहों के प्रकार3- शरभ छंद

दोहों का सामान्य शिल्प 13-11 का होता है।
आंतरिक शिल्प के आधार पर दोहे 23 प्रकार के होते है।
यह है तीसरा प्रकार...छंद विशेषज्ञ नवीन सी चतुर्वेदी जी के दोहे उदाहरणस्वरूप दिए गए हैं।
उसी आधार पर मैंने भी कोशिश की है।
शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
22 2 11 2 12, 22 2 2 21
2 2 2 221 2, 222 11 21
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
-- नवीन सी चतुर्वेदी

पानी भोजन श्वास में, है प्राणों का सार
पौधों पेड़ों ने रचे, ऊर्जा स्रोत अपार।।

माया कंचन कामना, हैं दुःखों के मूल।
माँगी थीं सारंग को, वैदेही छल भूल।।

पैसों को धन मानते, रिश्तों को व्यापार।
ऐसे लोगों में कहाँ, होता प्यार -दुलार।।

खेतों में सरसों खिली, जाड़े की है धूप।
भोली भाली कामना, माँगे रूप अनूप।।

पौधे और नदी मिले, बासंती है गान।
कान्हा ने जो भी दिया, मानो है वरदान।।
--ऋता शेखर 'मधु
सौजन्य: साहित्यम ब्लॉग से साभार

दोहों के प्रकार 2- सुभ्रमर दोहा

दोहों के प्रकार पर कार्यशाला 2 - सुभ्रमर दोहा
दोहों के तेईस प्रकार होते है।
वैसे 13-11के शिल्प से दोहों की रचना हो जाती है जिनमें प्रथम और तृतीय चरण का अंत लघु गुरु(12) से तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण का अंत गुरु लघु(21) से होता है।दोहे में कुल 48 मात्राएँ होती हैं।
आंतरिक शिल्प की बात करें तो दोहे 23 प्रकार के होते हैं । हर शिल्प के लिए दोहों के अलग-अलग नाम हैं। ये सज्जा एवं नाम गुरु वर्णों के अवरोह क्रम में रखे गए हैं।मेरी कोशिश है कि हर प्रकार के कुछ दोहे लिख सकूँ तथा मित्रों को भी बता सकूँ। इसी कोशिश में दूसरा प्रकार आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।इन दोहों की समीक्षा प्रार्थित है। पिछली कार्यशाला में प्रकाशित भ्रमर दोहों का थोड़ा रूपांतरण करके सुभ्रमर बनाया है जिससे समझने में आसानी हो।यहाँ प्रथम चरण में चौथे गुरु को दो लघु किया गया है, बाकी सारे यथास्थान हैं।
सुभ्रमर दोहा-
21 गुरु 6 लघु=48
22211212,222221
2222212,222221

पानी भोजन श्वास में, है प्राणी का सार।
पौधों पेड़ों ने रचे, जीवन का आधार।।

काया दौलत के बिना, सूना है संसार।
वाणी योगी साधना, ले जाएँगे पार।।

झूमी गाकर जिंदगी, ले फूलों का साथ।
माथे माथे हों सजे, कान्हा जी के हाथ।।

ऊर्जा से भरपूर हैं, खाते-पीते लोग।
हीरे को हीरा मिले, हो ऐसा संजोग।।

फूलों से खुशबू मिली, खानों से सौगात।
चंदा से है चाँदनी, पेड़ों से हैं पात।।

--ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

दोहों के प्रकार 1- भ्रमर दोहा

दोहों के प्रकार पर आज की कार्यशाला 1-
भ्रमर दोहा
दोहों के तेईस प्रकार होते है।
वैसे 13-11के शिल्प से दोहों की रचना हो जाती है जिनमें प्रथम और तृतीय चरण का अंत लघु गुरु से तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण का अंत गुरु लघु से होता है।कुल 48 मात्राएँ होती हैं।
किंतु आंतरिक शिल्प की बात करें तो दोहे 23 प्रकार के होते हैं । हर शिल्प के लिए दोहों के अलग-अलग नाम हैं। ये सज्जा एवं नाम गुरु वर्णों के अवरोह क्रम में सजाए गए हैं।मेरी कोशिश है कि हर प्रकार के कुछ दोहे लिख सकूँ तथा मित्रों को भी बता सकूँ। इसी कोशिश में प्रथम प्रकार आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। यहाँ 22 गुरु वर्ण तथा 4 लघु वर्णों का प्रयोग किया गया है।
1
भ्रमर दोहा-
22 गुरु 4लघु=48
2222212,222221
2222212,222221
खाना पानी श्वास में, है प्राणी का सार।
पौधों पेड़ों ने रचे, जीने का आधार।।

माया काया के बिना, सूना है संसार।
वाणी योगी साधना, ले जाएँगे पार।।

झूमे गाये जिंदगी, हो फूलों का साथ।
माथे माथे हों सजे, कान्हा जी के हाथ।।

आती जाती जिंदगी, खोते पाते लोग।
हीरे को हीरा मिले, हो ऐसा संजोग।।

चंदा से है चाँदनी, पेड़ों से हैं पात।
फूलों से खुश्बू मिली, खानों में सौगात।।
--ऋता शेखर 'मधु'
सौजन्य- साहित्यम ब्लॉग से साभार