दोहों का सामान्य शिल्प 13-11 का होता है।
आंतरिक शिल्प के आधार पर दोहे 23 प्रकार के होते है।
यह है तीसरा प्रकार...छंद विशेषज्ञ नवीन सी चतुर्वेदी जी के दोहे उदाहरणस्वरूप दिए गए हैं।
उसी आधार पर मैंने भी कोशिश की है।
शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
22 2 11 2 12, 22 2 2 21
2 2 2 221 2, 222 11 21
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
-- नवीन सी चतुर्वेदी
पानी भोजन श्वास में, है प्राणों का सार
पौधों पेड़ों ने रचे, ऊर्जा स्रोत अपार।।
माया कंचन कामना, हैं दुःखों के मूल।
माँगी थीं सारंग को, वैदेही छल भूल।।
पैसों को धन मानते, रिश्तों को व्यापार।
ऐसे लोगों में कहाँ, होता प्यार -दुलार।।
खेतों में सरसों खिली, जाड़े की है धूप।
भोली भाली कामना, माँगे रूप अनूप।।
पौधे और नदी मिले, बासंती है गान।
कान्हा ने जो भी दिया, मानो है वरदान।।
--ऋता शेखर 'मधु
आंतरिक शिल्प के आधार पर दोहे 23 प्रकार के होते है।
यह है तीसरा प्रकार...छंद विशेषज्ञ नवीन सी चतुर्वेदी जी के दोहे उदाहरणस्वरूप दिए गए हैं।
उसी आधार पर मैंने भी कोशिश की है।
शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
22 2 11 2 12, 22 2 2 21
2 2 2 221 2, 222 11 21
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
-- नवीन सी चतुर्वेदी
पानी भोजन श्वास में, है प्राणों का सार
पौधों पेड़ों ने रचे, ऊर्जा स्रोत अपार।।
माया कंचन कामना, हैं दुःखों के मूल।
माँगी थीं सारंग को, वैदेही छल भूल।।
पैसों को धन मानते, रिश्तों को व्यापार।
ऐसे लोगों में कहाँ, होता प्यार -दुलार।।
खेतों में सरसों खिली, जाड़े की है धूप।
भोली भाली कामना, माँगे रूप अनूप।।
पौधे और नदी मिले, बासंती है गान।
कान्हा ने जो भी दिया, मानो है वरदान।।
--ऋता शेखर 'मधु
सौजन्य: साहित्यम ब्लॉग से साभार