हरतालिका तीज
यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की तृतीया को किया जाता है|सुहागिन स्त्रियाँ ही इस व्रत को करती हैं| इस व्रत में शंकर पार्वती का पूजन करने का विधान है| सुहागिनें इस व्रत को बड़े उल्लास से मनाती हैं| इस व्रत की कथा इस प्रकार है|
एक बार पार्वती जी ने शिव जी का वरण करने के लिए
हिमालय पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या आरम्भ की| उनकी तपस्या को देख नारद मुनि ने जाकर उनके पिता हिमालय से कहा कि भगवीन विष्णु उनकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं| हिमालय ने इस बात को सच माना और विवाह के लिए हामी भर दी| जब पार्वती जी को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ| वह विलाप करने लगीं| उनकी सहेली ने विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताई और शिव से विवाह करने का अपना संकल्प दोहराया| अपनी सखी की सहायता से वह घोरवन में चली गईं और कठिन तपस्या करने लगीं|
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को बालू से शिवजी बनाकर पूजा अर्चना कीं| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने दर्शन दिया और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करने का वचन दिया| तभी हिमालयराज भी आ गए| उन्होंने भी पुत्री के जिद को मान लिया और शिव से उनका विवाह करने के लिए तैयार हो गए|
चूंकि पार्वती जी को उनकी सखी हरण कर वन में ले गई थी इसलिए इस व्रत का नाम हरित-आलिंक पड़ा जो अब हरतालिका व्रत के नाम से जाना जाता है|
उस दिन शिव जी ने यह भी वचन दिया कि भाद्र शुक्ल तृतीया को जो भी सुहागिन स्त्रियाँ इस व्रत को करेंगी उन्हें वे अखंड सौभाग्य का वरदान देंगे|
अतएव सुहागिन स्त्रियाँ इस व्रत का पालन अवश्य करती हैं|
मूलरूप से यह व्रत उत्तर भारत में प्रचलित है|
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गणेश चतुर्थी
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है| इस दिन व्रत रखा जाता है| इस व्रत के करने से सभी प्रकार की बाधाएँ मिट जाती हैं|
इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक बार भगवान शंकर हिमालय से भीमबली नामक स्थान पर गए|वहाँ पार्वती जी पहले से रह रही थीं| पार्वती जी ने वहाँ एक पुतला बनाकर उसे सजीव कर दिया था और उसका नाम गणेश रखा था| गणेश को उन्होंने गुफा के द्वार पर पहरे पर यह कहकर बिठा दिया था कि कोई अन्दर न आने पाए|
जब भगवान शंकर वहाँ पहुँचे तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया क्योंकि वे उन्हें पहचानते नहीं थे| इसपर शंकर कुपित हो गए| उन्होंने गणेश का सिर काट दिया और अन्दर चले गए| उन्हें अन्दर देख पार्वती जी को आश्चर्य हुआ| उन्होंने शंकर जी से गणेश के बारे में पूछा| शंकर जी ने कहा कि वह बालक धृष्ट था इसलिए उन्होंने उसका सिर काट दिया| यह सुन पार्वती जी विलाप करने लगीं| उन्होंने शंकर जी को बताया कि गणेश उनके पुत्र थे|
शंकर जी चिन्ता में पड़ गए| संयोग से उसी वक्त एक हथिनी ने एक बच्चे को जन्म दिया था| शंकर भगवान ने उसी बच्चे का सिर काट लिया और गणेश के सिर पर जोड़ दिया| गणेश जी का पुनर्जन्म हो गया| यह घटना भाद्र शुक्ल चतुर्थी की है| तभी से इस दिन को गणेश जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है|
ऋता शेखर ‘मधु’