मंगलवार, 30 अगस्त 2016

सोई आत्मा-लघुकथा

सोई आत्मा

एम्बुलेंस तेज हॉर्न बजाती अस्पताल के दरवाजे पर लग चुकी थी| स्ट्रेचर को भीतर ले जाने के लिए कर्मचारियों के दल के साथ डॉक्टर भी आया| डॉक्टर ने मरीज को आई सी यू में भरती किया और जाँच में लग गया| मरणासन्न मरीज ने तब तक अन्तिम साँस ली| डॉक्टर के कदम बाहर की ओर बढ़े|

“ डॉक्टर वाडेकर, आप कहाँ जा रहे हैं”, साथ वाले डॉक्टर ओबेरॉय ने पूछा|

“पेशेंट की डेथ हो चुकी है| बाहर उनकी फैमिली को बताने जा रहा हूँ|”

“नहीं, पेशेंट को ऑक्सीजन लगाइए, वेंटिलेटर पर रखिए, उसके शरीर में कुछ मशीन फिट कीजिए  ताकि लगे कि इलाज शुरु हो चुका है| मरीज को इस स्थिति में दो दिनों तक रखिए फिर डेथ डिक्लेयर कीजिए|”

“मगर क्यों?”

“जाने वाली की आत्मा सो चुकी है| उसके शरीर से हम जो कमा सकते हैं उसे कमा लेने में हर्ज क्या है|”

“आत्मा तो आपकी सो चुकी है डॉक्टर ओबेरॉय और मर गया है आपका जमीर|”

थोड़ी देर बाद डॉक्टर वाडेकर के हाथ में एक पन्ना फड़फड़ा रहा था|
“आई सी यू में त्वरित इलाज में अक्षमता के कारण आपको दूसरे विभाग में शिफ्ट किया जाता है|”
--ऋता शेखर ‘मधु’

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

अँकुर-लघुकथा

1.बीज का अँकुर
पन्द्रह दिन पहले सोनाली की शादी हुई थी| सोनाली के मम्मी-पापा बेटी से मिलने ससुराल आए थे| सोनाली के सास, ससुर, ननद, देवर सबने दिल खोलकर स्वागत किया|
थोड़ी देर बाद ससुर जी ने कहा,”बहु, अपने मम्मी-पापा को अपने कमरे में ले जाओ|”जी पापा जी,’कहकर सोनाली माता पिता को अपने कमरे में ले गई|
बेटा, यहाँ सब ठीक तो है न|तुम्हारा मान सम्मान कैसा है| दामाद जी का व्यवहार कैसा है,’पिता की चिन्ता वाजिब थी|
जी पापा, सब ठीक है| बस मुझे एक ही बात अच्छी नहीं लगती कि सवेरे सवेरे उठकर ननद, देवर के लिए नाश्ता बनाना पड़ता है| ससुर जी के लिए चाय, सासु माँ के लिए पूजा की तयारी, साथ ही आपकेदामाद जी की फरमाइशें| दो घंटे चकरघिन्नी की तरह नाचने के बाद ही मैं अपना काम कर पातीहूँ|’और दिन भर’, पापा ने सवाल किया|
फिर दिन भर आराम है| टीवी देखती हूँ| इनके साथ घूमने जाने पर कोई रोक टोक नहीं|’
कोई तुमसे सख्त आवाज में बात भी करता है क्या,’
नहीं तो,’ सोनाली ने सच बताया|
फिर बेटा, ये शिकायत कैसी! क्या वहाँ तुम मेरा और अपनी माँ का ख्याल नहीं रखती थी? छोटे भाई बहन को खाना भी देती थी| वहाँ तो तुम्हें कोई शिकायत न थी|’
जीसोनाली ने सर झुकाकर कहा|
तभी सोनाली को उसकी सासू माँ नेआवाज दी| सोनाली चली गई तो उसकी माँ ने कहा, ‘बेचारी बच्ची ने अपने दिल की बातबताई और आपने उसे ही समझा दिया|’
नहीं सोनाली की माँ, उसे यहाँ कोई तकलीफ नहीं| जिम्मेदारियाँ निभाना हर बहु को आना चाहिए| यदि आज हम उसकी शिकायत सुन लेंगे, मतलब इस घर में विष का बीज बो देंगे| उसके विषैले अँकुर में पनपी परिस्थितियाँ सबके लिए भयावह हो जाएँगी|’
दरवाजे पर खड़ी सोनाली ने मुस्कुराकर कहा,’ मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं|’
--ऋता शेखर मधु

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

आज मैं...सबका दुलारा कृष्ण हूँ

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आज मैं....

आज मैं
देवकी का दर्द
यशोदा का वात्सल्य
राधिके का प्रेम
रुक्मिणी का खास हूँ

आज मै
वासुदेव की चिंता
नंद का उल्लास
गोपियों का माखनचोर
पनघट का रास हूँ

आज मैं
कंस का संहारक
कालिया का काल
सुदामा का सखा
योगमाया का विश्वास हूँ

आज मैं
द्रौपदी का भ्राता
पार्थ का सारथी
गीता का प्रणेता
युग युग की आस हूँ

आज मैं
सम्पूर्ण ब्रह्मांड लिए
जग का पालनहार
सोलह कलाओं से युक्त
नीला आकाश हूँ

हाँ, मैं सबका प्यारा, दुलारा कृष्ण हूँ|

--ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 20 अगस्त 2016

कोरे विचार-लघुकथा

कोरे विचार
अनन्या और तुषार दोनो मल्टीनेशनल कम्पनी में इंजीनियर थे| एक प्रेजेंटेशन के दौरान दोनो एक दूसरे से मिले| तुषार को अनन्या अच्छी लगी तो उसने अपने माता पिता को बताया|
आज तुषार के घरवालों ने अनन्या के माता-पिता को बुलाया था|
“हमने अनन्या को अच्छी शिक्षा दी है| अच्छे पैकेज वाली नौकरी भी लगी है उसकी| हमें लगता है लेन देन जैसी कोई बात न होगी| लड़का लड़की ने एक दूसरे को पसंद कर लिया है| हमें पंडित जी से शुभ मुहुर्त निकलवा कर ही जाना चाहिए,” रास्ते में अनन्या की मम्मी बोले जा रही थीं|
तुषार के घर उनके स्वागत में कोई कमी नहीं की गई| बातों का क्रम आगे बढ़ा|
“देखिए, हम लेन देन की बात नहीं कर रहे| दोनों खुश रहें इससे बढ़कर हमें क्या चाहिए| बाकी लड़की को कपड़े, गहने, गाड़ी जो कुछ भी दें उससे हमें कोई मतलब नहीं| बस इंगेजमेंट, शादी और रिसेप्शन टॉप होटल में करें और वह खर्च उठा लें| शादी बार बार नहीं होती तो यह सब यादगार होना चाहिए| वो क्या है न कि तुषार की अच्छी शिक्षा में हमारा बैंक बैलेंस... ”
“बैंक बैलेंस तो हमारा भी...” सोचती हुई बिना दहेज की शादी के कोरे विचार पर हँस दी अनन्या की मम्मी|
--ऋता शेखर ‘मधु’

मंगलवार, 16 अगस्त 2016

धनवान-लघुकथा

धनवान 
मुसलाधार बारिश में माया छतरी लेकर जल्दी जल्दी घर जा रही थी|
''अरे माया, गाड़ी में आ जा" अचानक माया के बगल में एक बड़ी सी कार रुकी और ऐश्वर्या ने दरवाजा खोला|
''मैं चली जाऊँगी''
''अब आ भी जा न|''
माया फिर ना नहीं कह सकी| छतरी बन्द करके अन्दर आ गई|
अन्दर बैठकर अपनी अमीर सहेली की साड़ी की कीमत आँकती हुई अपने कपड़े से उसकी तुलना करने लगी|
''माया, मेरे घर चल| आज बड़े दिनों बाद मिले हैं| गप्पें शप्पें लड़ाएँगे|''
गाड़ी एक आलीशान बँगले के सामने रुकी| गार्ड ने दरवाजा खोला| दोनो उतरीं और अन्दर गई| माया उसकी शान शौकत देखकर हीनता से ग्रसित हो रही थी| ऐश्वर्या के दोस्ताना व्यवहार में कमी नहीं थी| दोनो खूब बातें करती हुई ठहाके लगाने लगीं|
तभी गार्ड ने सूचना दी,''मेम साब, साहब आ गए|''
माया जाने के लिए उठ खड़ी हुई| तब तक ऐश्वर्या के पति अन्दर आ गए| चाल की लड़खड़ाहट और मुँह से आती तेज दुर्गंध से माया थोड़ा घबरा गई| उसने जल्दी से हाथ जोड़कर नमस्ते किया और बाहर आ गई| अन्दर से ऐश्वर्या के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी| शायद वह इस स्थिति का विरोध कर रही थी| फिर तेज थप्पड़ की आवाज सुनाई दी जिसकी गूँज माया को घर पहुँचने तक सुनाई देती रही|
घर पहुँच कर माया ने देखा, उसके पति गर्मागरम चाय के साथ उसका इन्तेजार कर रहे थे| माया ने धीमे से कहा,'' मैं बहुत धनवान हूँ|"
-ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 14 अगस्त 2016

एक शपथ-स्वतंत्रता दिवस के लिए

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जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है
जन हित हो जीवन का मकसद
दुनिया में अलख जगाना है

साफ सुलभ रस्तों पर चलकर
बन्धु बान्धव घर को जाएँ
कहीं मिले न कूड़ा कचरा
प्रयत्न सदा यहीं कर आएँ
गली मुहल्ले मह मह महकें
फूलों के बीज लगाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है

अंधियारों में पथ रौशन हो
पोल पोल पर बल्ब जले
ठोकर खाकर गिरे न कोई
गढ्ढे सड़कों के भरे मिलें
समवेत प्रयासों से सबको
ऐसा ही नगर बसाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है

सड़कों पर नारी निडर रहे
बच्चों को मिल जाये पोषण
अमीर गरीब का भेद मिटे
मजदूरों का हो न शोषण
छोटे छोटे डग भर भर कर
हमे हिमालय पाना है

जन कल्याण की लिए मशाल
हम सबको बढ़ते जाना है
-ऋता शेखर मधु

बुधवार, 10 अगस्त 2016

तुम जिन्दा हो - लघुकथा

 तुम जिन्दा हो 

आइने के सामने खड़ा होकर वह सोच रहा था, 

“वो कौन सी शक्ति थी जो बार बार उससे कह रही थी - कूद जाओ, तुम्हारी किसी को जरूरत नहीं|”

सेन फांसिसको के गोल्डन ब्रिज से वह प्रायः गुजरता था फिर उस दिन उसके मन में यह बात क्यों आई| क्या वाकई सागर की लहरों ने उसे बुलाया या वह मात्र वहम् था| प्यार में धोखा खाने के बाद खुद को खत्म कर लेने का विचार ही तो उन लहरों से नहीं गूँज रहा था|

“जिन्दगी से भागने वाले कायर होते हैं,” दृढ़तापूर्वक दोस्तों के बीच यह कहने वाला खुद जिन्दगी से भाग खड़ा होने को तैयार था|"

यह कुदरत का करिश्मा ही था कि उस दिन ब्रिज से बीच महासागर में छलांग लगाने के बाद वह सी- लायन की पीठ पर अटक गया था| बचाव दस्ता की नजर पड़ी और उसे बचा लिया गया|

आज आइने का अक्स कह रहा था, “जिन्दगी को तुम्हारी जरूरत थी इसलिए तुम जिन्दा हो| पर कायर भी हो, इसे स्वीकार कर लो|”

“ हाँ, हाँ मैं कायर हूँ और वह निर्णय मेरी सबसे बड़ी भूल थी,” उसका दिल चीख चीख कर कह रहा था|

--ऋता शेखर ‘मधु’

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

व्यवस्था का नकाब-लघुकथा

. व्यवस्था का नकाब

व्यवस्था सभी काम सुव्यवस्थित तरीके से करना चाहती थी पर हो नहीं पाता था| इसी परेशानी में वह दफ़्तर की कुर्सी पर बैठी थी कि उसे सुखद आश्चर्य हुआ जब उसने सामने अपनी पुरानी सहेली नकाब को देखा|

‘’क्या बात है भई, बड़ी परेशान दिख रही हो,’’ नकाब ने हँसते हुए पूछा|

‘’ देखो न सखी, मैं चाहती हूँ कि सब कर्मचारी सही समय पर आएँ और पूरी लगन, इमानदारी और निष्ठा से काम करें| लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाता| कोई देर से आता है और कोई समय से आकर भी गप्पें हाँकता रहता है|  मैं अपने से ऊपर वाले पदाधिकारी को क्या जवाब दूँगी,’’ माथे पर हाथ रखकर व्यवस्था कह रही थी|

‘’ क्या यहाँ कोई मेहनती और सत्यवादी नहीं|’’

‘’ हाँ, एक बेचारा भला आदमी है जो कर्तव्यनिष्ठ है|’’

‘’ फिर तो बात बन गई| जब कोई पदाधिकारी आए तो उसे सामने कर दे और वह सत्यनिष्ठ नकाब का काम करेगा और तेरी सारी अव्यवस्था को अपने भीतर छुपा लेगा,’’ मुस्कुराते हुए नकाब ने कहा|

व्यवस्था न चाहते हुए भी मान गई क्योंकि व्यवस्था ही कुछ ऐसी थी|


-ऋता शेखर ‘मधु’ 

सोमवार, 1 अगस्त 2016

गुलामों की भीड़ - लघुकथा

गुलामों की भीड़

जिलाधिकारी महोदय के करीबी मित्र कवि थे और शहर में कविता पाठ करना चाहते थे। इसके तहत एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया और भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी महोदय ने ली, आखिर मित्र जो थे।

एक मेसेज टाइप कर सबको S M S किया गया-
" सभी बी एल ओ को सूचित किया जाता है कि हिंदी भवन में आज शाम 4 बजे मीटिंग है। सबको आना अनिवार्य है। न आने वालों को " कारण बताओ" नोटिस जारी किया जाएगा।"

खचाखच भरे हॉल में कविता पाठ सुन रही गुलामों की भीड़ "कारण बताओ (show cause)" से बच जाने के कारण खुश थी।

-ऋता शेखर 'मधु'