सोई
आत्मा
एम्बुलेंस तेज हॉर्न बजाती अस्पताल के दरवाजे पर लग
चुकी थी| स्ट्रेचर को भीतर ले जाने के लिए कर्मचारियों के दल के साथ डॉक्टर भी
आया| डॉक्टर ने मरीज को आई सी यू में भरती किया और जाँच में लग गया| मरणासन्न मरीज
ने तब तक अन्तिम साँस ली| डॉक्टर के कदम बाहर की ओर बढ़े|
“ डॉक्टर वाडेकर, आप कहाँ जा रहे हैं”, साथ वाले डॉक्टर
ओबेरॉय ने पूछा|
“पेशेंट की डेथ हो चुकी है| बाहर उनकी फैमिली को बताने
जा रहा हूँ|”
“नहीं, पेशेंट को ऑक्सीजन लगाइए, वेंटिलेटर पर रखिए,
उसके शरीर में कुछ मशीन फिट कीजिए ताकि
लगे कि इलाज शुरु हो चुका है| मरीज को इस स्थिति में दो दिनों तक रखिए फिर डेथ
डिक्लेयर कीजिए|”
“मगर क्यों?”
“जाने वाली की आत्मा सो चुकी है| उसके शरीर से हम जो
कमा सकते हैं उसे कमा लेने में हर्ज क्या है|”
“आत्मा तो आपकी सो चुकी है डॉक्टर ओबेरॉय और मर गया है
आपका जमीर|”
थोड़ी देर बाद डॉक्टर वाडेकर के हाथ में एक पन्ना
फड़फड़ा रहा था|
“आई सी यू में त्वरित इलाज में अक्षमता के कारण आपको
दूसरे विभाग में शिफ्ट किया जाता है|”
--ऋता शेखर ‘मधु’