शुक्रवार, 21 जून 2013

बारिश का मौसम सुहाना है


बारिश का मौसम सुहाना है
पावस ने छेड़ा तराना है

काँधे सजते झूलते काँवर
भजनों में शिव-गुण को गाना है

सुंदर पत्ते बेल के लाओ
शिवशंकर जी पर चढ़ाना है

सावन में चुनरी हरी लहरी
हाथों में लाली रचाना है

बच्चे पन्ने फाड़ते झटपट
धारा में किश्ती चलाना है

चूड़ी धानी सी खरीदे वे
परिणीता को जो लुभाना है

पानी है तालों तडागों में
मेढक को हलचल मचाना है

मंथर मंथर चल रही गंगा
तट पे शायद कारखाना है

पनपीं बेलें जात मज़हब की
सद्भावों के बीज पाना है


..........ऋता

सोमवार, 17 जून 2013

18 जून सायं 8 बजे फ़ेसबुक पर हिन्दी हाइगा पुस्तक का लोकार्पण आ० रामेश्वर काम्बोज 'हिमा़शु' जी द्वारा-

माँ शारदे की अनुकम्पा से मेरी हाइगा की पुस्तक छप कर आ चुकी है जिसमें हिन्दी-हाइगा ब्लौग पर शामिल ३६ रचनाकारों के हाइगा सम्मिलित हैं| पुस्तक का लोकार्पण उत्कृष्ट हाइकुकार आ० रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी के कर कमलों द्वारा फ़ेसबुक पर किया जाएगा| दिन- १८ जून, समय-सायं ८ बजे.| अत: इस विशेष मौके पर नेट पर आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है...सादर आभार !!
याद रखें-18 June--8.00Pm 
लोकार्पण स्थल-




गुरुवार, 13 जून 2013

ऐ समंदर...


पूनो की रात आती जब
समंदर क्युँ मचल जाता है
राज़े-दिल बयाँ करने को
वह भी तो उछल जाता है
खामोश चाँद ने कुछ कहा
फिर से वह बहल जाता है
कभी बहाने से सैर के
लहरों पे निकल जाता है
सुनने प्रेमी दिल की व्यथा
कूलों पर टहल आता है
करुण कहानी मुहब्बत की
सुनकर वह पिघल जाता है
समेट अश्कों की धार को
खारापन निगल जाता है

ऐ समंदर, तेरी गहराइयाँ
बेचैन बहुत करती हमें
मन मनुज का भी तो
तुझसे कम गहरा नहीं
लहरें बहुत उठतीं वहाँ भी
शांत धीर तुझसा ही वह
तेरी तरह ही तो वहाँ भी
बाँध का पहरा नहीं

पर सुनामियाँ भी कब भला
किसके रोके से रुकी हैं ???
..........ऋता..

मंगलवार, 11 जून 2013

कोमल हाथ चुभ गए थे काँच


ताँका........विश्व बाल श्रम दिवस पर-१२ जून

बालक रोया
बस्ता चाहिए उसे
है मजबूर
दिल किया पत्थर
बनाया मजदूर|१|

कोमल हाथ
चुभ गए थे काँच
बहना रोई
भइया आँसू पोंछे
दोनो कचरे बिनें|२|

दिल के धनी
राजा औ' रंक बच्चे
देख लो फ़र्क
एक खरीदे जूता
पोलिश करे दूजा|३|

गार्गी की बार्बी
कमली ललचाई
माँ ने पुकारा
बिटिया, इधर आ
बर्तन मांज जरा|४|

कठोर दिल
कैसी माता है वह
काम की भूखी
बेटी को देती मैगी
कम्मो को रोटी सूखी|५|

........ऋता शेखर 'मधु'

गुरुवार, 6 जून 2013

तुम हो बहादुर ओ सिपाही, याद उसकी ले चलो



यह हरिगीतिका समर्पित है उन वीर जवानों और उनकी परिणीताओं को जो देश की रक्षा के लिए विरह वेदना में तपते हैं...

दिल में बसा के प्रेम तेरा, हर घड़ी वह रह तके|
लाली अरुण या अस्त की हो, नैन उसके नहिं थके||

जब देश की सीमा पुकारे, दूर हो सरहद कहीं|
इतना समझ लो प्यार उसका, राह का बाधक नहीं||

तुम हो बहादुर, ओ सिपाही, याद उसकी ले चलो|
संबल वही है जिंदगी का, साथ में फूलो फलो||

आशा, कवच बन कर रहेगी, बात यह बांधो गिरह|
तुम लौट आना एक दिन तब, भूल जाएगी विरह|

फिर मांग में भर के सितारे, वह सजी तेरे लिए|
अर्पण करेगी प्रीत अपना, आँख में भर के दिए||

ले लो दुआएँ इस जहाँ की, भूल जाओ पीर को|
आबाद हो संसार तेरा, अंक भर लो हीर को||
....................ऋता शेखर 'मधु'


रविवार, 2 जून 2013

मत संहार करो वृक्षों का


५ जून विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है...

मत संहार करो वृक्षों का

श्मशानी निस्तब्धता छाई है
उभरी दर्द भरी चहचहाहट
नन्हें-नन्हें परिंदों की,
शायद उजड़ गया था उनका बसेरा
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|

गुजर रही थी लम्बे रास्ते से
गूँजी एक सिसकी
नज़रें दौड़ाईं इधर उधर
थके हारे पथिक की कराहट थी,
शायद छिन गया था
विशाल वृक्ष की छाया
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|

जा रही थी पगडंडी से
किनारे की फ़ैली ज़मीं पे
पाँव रखा ज्योंहि
दरकने की आवाज़ आई
ये धरती की फटी दरारें थीं
चरमरा कर फटी धरती
दरारें भरे कैसे
आकाश ने बरसना छोड़ दिया था
आकाश बरसे भी कैसे
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|

अचानक गूँज उठी
ढेर सारी सिसकियाँ
गर्मी से व्याकुल सजीव
छटपटा रहे थे,
इधर उधर भाग कर
शीतलता तलाश रहे थे
शीतलता मिलती भी कैसे
पृथ्वी का उष्मीकरण हो रहा था
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|

कुलबुलाहट फैली थी
सांस न ले पाने की अकबकाहट
कहीं से प्राणवायु तो मिले
जीवन का संचार हो
प्राणवायु मिले तो कैसे
विषैले गैसों को आत्मसात् कर
आक्सीजन देने वाली हरी पत्तियाँ न थीं
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|

देख विशाल वृक्षों की
कटी निर्जीव कतार
ब्रह्मा कर उठे अट्टहास
रे मनुष्य! मैंने तुझे बनाया
तेरी सुरक्षा के लिए पेड़ बनाये
पेड़ों का करके विनाश
क्यों कर रहा है
सृष्टि का महाविनाश!
पापी है तू, अभी भी संभल जा|

अगली पीढ़ी मांगेगी जवाब
पितामहों!
आपने मकान छोड़ा
संपत्ति छोड़ी
बैंक बैलेंस छोड़ा
क्यों नहीं छोड़ा आपने
शुद्ध हवाएँ, निर्मल नदी
वृक्ष की छाया, हरी धरती
पंछियों का बसेरा, शीतल बयार
क्यों छीन लिया जीवन का मूल आधार?
क्यों  किया  आपने  वृक्षों  का  संहार??
 .....................ऋता शेखर मधु