५ जून विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है...
मत संहार करो वृक्षों का
श्मशानी निस्तब्धता छाई है
उभरी दर्द भरी चहचहाहट
नन्हें-नन्हें परिंदों की,
शायद उजड़ गया था उनका बसेरा
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|
गुजर रही थी लम्बे रास्ते से
गूँजी एक सिसकी
नज़रें दौड़ाईं इधर उधर
थके हारे पथिक की कराहट थी,
शायद छिन गया था
विशाल वृक्ष की छाया
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|
जा रही थी पगडंडी से
किनारे की फ़ैली ज़मीं पे
पाँव रखा ज्योंहि
दरकने की आवाज़ आई
ये धरती की फटी दरारें थीं
चरमरा कर फटी धरती
दरारें भरे कैसे
आकाश ने बरसना छोड़ दिया था
आकाश बरसे भी कैसे
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|
अचानक गूँज उठी
ढेर सारी सिसकियाँ
गर्मी से व्याकुल सजीव
छटपटा रहे थे,
इधर उधर भाग कर
शीतलता तलाश रहे थे
शीतलता मिलती भी कैसे
पृथ्वी का उष्मीकरण हो रहा था
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|
कुलबुलाहट फैली थी
सांस न ले पाने की अकबकाहट
कहीं से प्राणवायु तो मिले
जीवन का संचार हो
प्राणवायु मिले तो कैसे
विषैले गैसों को आत्मसात् कर
आक्सीजन देने वाली हरी पत्तियाँ न थीं
मनुष्य ने पेड़ जो काट दिए थे|
देख विशाल वृक्षों की
कटी निर्जीव कतार
ब्रह्मा कर उठे अट्टहास
रे मनुष्य! मैंने तुझे बनाया
तेरी सुरक्षा के लिए पेड़ बनाये
पेड़ों का करके विनाश
क्यों कर रहा है
सृष्टि का महाविनाश!
पापी है तू, अभी भी संभल जा|
अगली पीढ़ी मांगेगी जवाब
पितामहों!
आपने मकान छोड़ा
संपत्ति छोड़ी
बैंक बैलेंस छोड़ा
क्यों नहीं छोड़ा आपने
शुद्ध हवाएँ, निर्मल नदी
वृक्ष की छाया, हरी धरती
पंछियों का बसेरा, शीतल बयार
क्यों छीन लिया जीवन का मूल आधार?
क्यों किया आपने
वृक्षों का संहार??
.....................ऋता शेखर ‘मधु’