करती समर्पित काव्य उनको, देश हित में जो डटे|
वे वेदना सहते विरह की, संगिनी से हैं कटे ||
दिल में बसा के प्रेम तेरा, हर घड़ी वह राह तके|
लाली अरुण या अस्त की हो, नैन उसके नहिं थके||
जब देश की सीमा पुकारे, दूर हो सरहद कहीं|
इतना समझ लो प्यार उसका, राह का बाधक नहीं||
तुम हो बहादुर, ओ सिपाही, याद उसकी ले चलो|
संबल वही है जिंदगी का, साथ में फूलो फलो||
आशा, कवच बन कर रहेगी, बात यह बांधो गिरह|
तुम लौट आना एक दिन तब, भूल जाएगी विरह|
फिर मांग में भर के सितारे, वह सजी तेरे लिए|
अर्पण करेगी प्रीत अपना, आँख में भर के दिए||
ले लो दुआएँ इस जहाँ की, भूल जाओ पीर को|
आबाद हो संसार तेरा, अंक भर लो हीर को||
जब जब तिरंगा आसमाँ में, शान की गाथा लिखे|
हम सब नमन करते रहेंगे, वीर, तुम मन में दिखे ||
....................ऋता शेखर 'मधु'