तुम सृष्टि...
नम्रता से झुकती हुई
प्यार का सहारा लिए
मौली सी पावन
धरा से धैर्य लेकर
सतत बढ़ने का संदेश
अक्षर में मौलिमणि
ऊँ का तत्व लिए
वक्त की बंजारन
सौन्दर्य का दुलार लेकर
गुलमोहर जैसी जिजीविषा में
धरती पर
'मै' और 'आप' से परे
दुआओं के मनुहार में
तन्हा सागर की
आह और गम के साथ
अपार संवेदना और
मनुष्यता का
संतोष लिए
मानवता से जिओ|
खुशी के अवगुंठन में
विरह भी चमकेगा
और एक दिन तुम
जरूर कंचन बन
निखर उठोगे
ठूँठ का भ्रम
मन का स्वच्छंद गुंजन
आशा का मंतव्य समझ
रुहानी धड़कन में
लावणय से भरी
शरारत का स्पर्श
सच की ख्वाहिश से
मंजिल की ओर बढ़ती
हिमालय सी प्रखर
सदा वात्सल्य से पूरित
हमेशा प्रेममयी रहो
तुम सृष्टि
ऋता शेखर 'मधु''
फेसबुक पर आ० रश्मिप्रभा दी द्वारा एकत्रित शब्दों से रचित कविता...आभार रश्मि दी|
प्यार का सहारा लिए
मौली सी पावन
धरा से धैर्य लेकर
सतत बढ़ने का संदेश
अक्षर में मौलिमणि
ऊँ का तत्व लिए
वक्त की बंजारन
सौन्दर्य का दुलार लेकर
गुलमोहर जैसी जिजीविषा में
धरती पर
'मै' और 'आप' से परे
दुआओं के मनुहार में
तन्हा सागर की
आह और गम के साथ
अपार संवेदना और
मनुष्यता का
संतोष लिए
मानवता से जिओ|
खुशी के अवगुंठन में
विरह भी चमकेगा
और एक दिन तुम
जरूर कंचन बन
निखर उठोगे
ठूँठ का भ्रम
मन का स्वच्छंद गुंजन
आशा का मंतव्य समझ
रुहानी धड़कन में
लावणय से भरी
शरारत का स्पर्श
सच की ख्वाहिश से
मंजिल की ओर बढ़ती
हिमालय सी प्रखर
सदा वात्सल्य से पूरित
हमेशा प्रेममयी रहो
तुम सृष्टि
ऋता शेखर 'मधु''
फेसबुक पर आ० रश्मिप्रभा दी द्वारा एकत्रित शब्दों से रचित कविता...आभार रश्मि दी|