गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

तुम सृष्टि...


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तुम सृष्टि...

नम्रता से झुकती हुई
प्यार का सहारा लिए

मौली सी पावन
धरा से धैर्य लेकर
सतत बढ़ने का संदेश
अक्षर में मौलिमणि
ऊँ का तत्व लिए
वक्त की बंजारन
सौन्दर्य का दुलार लेकर
गुलमोहर जैसी जिजीविषा में
धरती पर
'मै' और 'आप' से परे
दुआओं के मनुहार में
तन्हा सागर की
आह और गम के साथ
अपार संवेदना और
मनुष्यता का
संतोष लिए
मानवता से जिओ|
खुशी के अवगुंठन में
विरह भी चमकेगा
और एक दिन तुम
जरूर कंचन बन
निखर उठोगे

ठूँठ का भ्रम
मन का स्वच्छंद गुंजन
आशा का मंतव्य समझ
रुहानी धड़कन में
लावणय से भरी
शरारत का स्पर्श
सच की ख्वाहिश से
मंजिल की ओर बढ़ती
हिमालय सी प्रखर
सदा वात्सल्य से पूरित
हमेशा प्रेममयी रहो
तुम सृष्टि
ऋता शेखर 'मधु''


फेसबुक पर आ० रश्मिप्रभा दी द्वारा एकत्रित शब्दों से रचित कविता...आभार रश्मि दी|

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

चुनरी फैली भोर की

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28.
आए हैं ऋतुराज अब, हुलस रहे हैं बाग़
कलियाँ सब खिलने लगीं, भँवरे गाएँ राग
भँवरे गाएँ राग, फूलती सरसो पीली
अनुरागी हैं सूर्य , पंचमी बनी सुरीली
उड़ते हैं पुखराज, फाग राग सुनाए हैं
भर देने को रंग, बसंतराज आए हैं

27.
शहनाई की गूँज में, कैसा है आह्वान
जन गण मन का गान, या, है बिटिया का दान
है बिटिया का दान, जनक का दिल भर आता
एक विकल अहसास, नैन में यह धर जाता
दिल पर करती राज, रागिनी की गहराई
जीवन के हर रंग , व्यक्त करती शहनाई
26.
मेघ-रजाई में छुपा, सूरज भोरम भोर
चादर गहरे धुंध की, फैली चारो ओर
फैली चारो ओर, हवा ठण्डी बर्फीली
काँप रहे हैं हाथ, अग्नि है सीली सीली
ठिठुरन को अब छोड़, झाँकना सूरज भाई
चमक उठेगी रश्मि, हटा कर मेघ-रजाई
25.
चुनरी फैली भोर की, खग ने खाया गान
मंदिर की घंटी बजी, भिक्षुक माँगे दान
भिक्षुक माँगे दान, भक्त आगे बढ़ जाते
प्रभु चरणों में भोग, चढ़ा के छप्पन आते
दया भाव के बीज, हंस पाखी तू चुन री
उनको देना छींट, आज फैले जब चुनरी
24.
सूरज को आतिश कहें, या ऊर्जा की खान
अपनी अपनी बुद्धि से, देते हम पहचान
देते हम पहचान, सरल को विरल बनाते
शव हो या फिर देव, सुमन का हार चढ़ाते
सत् जन देते सीख, कभी ना खोना धीरज
जग में भरो प्रकाश,सीख देता है सूरज

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

हुई बंसरी मौन


अनुरागी भँवरा करे, कड़े काष्ठ पर छेद
शतदल में कैदी बने, कैसा है यह भेद
कैसा है यह भेद, समझ नहिं पाता कोई
हुई बंसरी मौन, राधिका नैन भिगोई
अरुण उषा के संग, भोर की लाली जागी
पूनम की है रात, चकोर हुआ अनुरागी.....23 


हिन्दी भाषा में उगी, कविताओं की पौध
सजे हुए हैं शाख पर, पन्त गुप्त हरिऔध
पन्त गुप्त हरिऔध, महादेवी जयशंकर
जायसी कालिदास, रहीम सुभद्रा दिनकर
तुलसी जी के राम, कृष्णलीला कालिन्दी
पा उन्नत साहित्य, फूलती फलती हिन्दी.......22


भादो शुक्ल चतुर्थ तिथि, आए गणपति आज| 
कर जोड़ कर भक्त खड़े, पूरण कीजे काज||
पूरण कीजे काज, सद्विवेक हमें दीजे| 
हम प्राणी नादान, विघ्न सारे हर लीजे||
एक दन्त शिवपुत्र, जहाँ से पाप मिटा दो|
कृष्ण अष्टमी तीज, संग लाया है भादो||...........21


कुसुमित सुष्मित पुष्प में, मधुरिम मधुरिम आस !
डाली डाली झूमती, ...........लेकर नव विश्वास !!
लेकर नव विश्वास, .............हँसे भारत के बच्चे !
होगा नव निर्माण, .............कहें ये मन के सच्चे !!
सच की होती जीत,.........कोंपलें होती पुलकित !
इन्द्रधनुष से पुष्प,.........ख़ुशी से होते कुसुमित !!....20


श्रावण ऋतु की धार में, है खुशियों का संसार,
महादेव को भा गए, विल्व पत्र के हार|
विल्व पत्र के हार, भाँग धतुरे की गोली,
सुनकर बम बम बोल, देव ने अँखियाँ खोलीं|
होता मधु कल्याण, भाव जब होता पावन,
हरियाली के साथ, झूमता गाता श्रावण|.......19
* ऋता शेखर मधु *

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

आया बसंत




बसंत...

फूली सरसो

सज गए खेत
मन मेरा
बासंती


ताल तलैया

पोखर पोखर

मस्त पवन में

खोकर खोकर

झूमे मोहक

कुसुम कुमुदनी


आम्रकुँज में

बौर सजे हैं

कूक बनी 

रसवंती


फागुन आए

भँवरें गाएँ

फाग राग में
दहके पलाश

बनती चंपा

शिव तपस्विनी


अमरबेल पर

लिपट वल्लरी

छुईमुई

लजवंती


नीम गुलाबी

कोमल कोंपल

शुद्ध हवाएँ

तन है सुन्दर

विद्या वर दो

हे सुहासिनी


पीत वसन में

प्रीत सुन्दरी

रंगीली

जयवंती

*ऋता शेखर 'मधु'*