पाठकः ऋता शेखर 'मधु'
पुस्तकः ये कैसा वनवास
लेखिकाः लता प्रासर
सरस् रसधार का काव्य संग्रह ' कैसा ये वनवास'
लेखिका: कुमारी लता प्रासर
“कैसा ये वनवास” यह पुस्तक है लता पराशर जी की है जो बिहार राज्य अनुदान से प्रकाशित हुई है| यह पुस्तक 2019 में प्रकाशित हुई थी| बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में इस पुस्तक के लोकार्पण के समय मैं उपस्थित थी| पुस्तक मुझे वहीं मिली थी|
मन की बात में कवयित्री ने लिखा है ‘मेरे भीतर बसा है मेरा गाँव| जब हम मुक्ति के लिए छटपटाते हैं वह क्षण किसी वनवास से कम नहीं होता| नैसर्गिक और कृत्रिम कई बेड़ियों से बंधे होने के कारण हम उससे निकलना चाहते हैं| किसी एक व्यक्ति को भी लगे कि मेरा वनवास सफल रहा तो मैं मुक्ति मार्ग पर हूं|’’लता जी, मैं यह कहना चाहूँगी कि आपके अंतर्मन से कविताएं प्रस्फुटित होकर अपनी सुगंध चारों ओर फैला रही हैं। पुस्तक का कवर खूबसूरत है और सफेद पुष्प अपनी पूरी आभा के साथ शोभायमान है|
अब आते हैं उनकी कविताओं की ओर। १८४ पृष्ठों की इस पुस्तक में कुल 101 कविताएं हैं। उनकी प्रथम कविता ‘मैं मगध हू्ँ” बहुत ही सार्थक कविता है। कुछ पंक्तियाँ देखें…
जिस दिन बच्चा-बच्चा बोलेगा
मैं मगध हूँ मैं मगध हूँ
फिर कोई घनानंद आनंद के मग में
शिक्षा और शिक्षक को
तिरस्कृत करने की हिम्मत नहीं करेगा
मगध की धरती पर प्रेम पसरा है… बहुत सुंदर बात कही लता जी ने| उन्होंने इस प्रेम के लिए कुछ बिंब लिए हैं| यह प्रेम किस तरह पसरेगा… वह सेमल, पलाश, गुलमोहर और हरसिंगार की तरह प्रेम का संचार करेगा।
दूसरी कविता ‘ उड़ जाऊँ’ में लेखिका के मन की व्यथा उभर कर सामने आई है।
जी करता है
उड़ जाऊं मैं
नील गगन में
किंतु कैसे किंतु कैसे
बड़ी बेड़ियां गांव में
हथकड़ियां हैं हाथों में
और बना है जीवन मेरा अदृश्य धागों से।
लता जी ने माँ पर सुंदर सृजन किया है| माँ पर ही एक रचना है ‘माँ क्यों बिसूरती है’ इसमें कवयित्री ने कुछ घटनाओं का जिक्र करके प्रश्न किया है कि अगर किसी के बस में है तो वह जवाब दें कि माँ क्यों क्यों बिसूरती है| आरम्भ की चार पंक्तियाँ दे रही हूं।
गाँव से आए काका के संवाद सुन
सूनी बगिया की फरियाद सुन
उड़ते परिंदे का नाम सुन
माँ क्यों बिसूरती है।
“छूना मना है”, इसमें कवयित्री ने बड़ी हो रही लड़कियों की मानसिक अवस्था का वर्णन किया है। यह वह अवस्था है जब लड़कियों को बताया जाता है के किस तरह का स्पर्श अच्छा या बुरा होता है। वह यह नहीं तय कर पाती के किस स्पर्श को और किसके स्पर्श को अच्छा माना जाए या बुरा माना जाए। गुड्डो नामक लड़की के बगीचे में चारों ओर तख्त लगे हैं और अंदर रंग बिरंगे फूल है। लड़की चाह कर भी उन फूलों तक नहीं पहुंच पाती। तभी एक लड़का फूल को तोड़ लेता है और उसकी पंखुड़ियाँ हवा में बिखेर देता है। यह देख गुड्डो अपने पापा से यह सवाल करती है कि जब तक तख्त लगी थी तब भी उसने फूल क्यों तोड़े। उसके पापा इस सवाल का जवाब नहीं दे पाते। वह यह नहीं कह पाते के लड़कियों के चारों और भी वह तख्त लगानी है जिससे कोई उन तक न पहुंच सके। साथ ही यह सवाल भी पैदा हो रहा है की समाचार पत्र और टीवी पर आने वाले लड़कियों के जुल्म की दास्तान सुनकर उन्हें बंधन में डाला जाए या स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, लेखिका की सूक्ष्म सोच को भली-भांति दर्शा रहा है।
कविता “मानवी” में लता जी ने किन्नर को लेकर मार्मिक रचना लिखी है। किन्नर होना कोई अभिशाप नहीं। उन्हें भी एक साधारण मनुष्य की तरह सारे अधिकार मिलने चाहिए। उनकी सामाजिक स्थिति की व्यवस्था लता जी ने इन शब्दों से जाहिर की है|
देख मैंने तेरे लिए मंदिर नहीं बनाए
मैंने तेरे लिए स्कूल नहीं बनाई
क्योंकि मैं कमजोर थी।
तू ने ठीक कहा लक्ष्मी
पुरुष से सम्मान नहीं चाहिए
क्योंकि पुरुष प्रधान समाज का डर
मातृत्व को भयभीत कर रखा है
मानवी मैं तुम्हारी हिम्मत की सराहना करती हूं।
लता जी ने एक बिल्कुल है अलग विषय पर बहुत ही सुंदर रचना की है| वह विषय है ‘समधी।
जनाब समधी हो गए हैं
प्यार के नए बीज बो गए हैं
पहले देखा देखी फिर छेका छेकी
जमाना आधुनिक है इसलिए
व्हाट्सएप का नंबर दे दिया
अब तो शब्दों में प्यार बढ़ने लगा
जनाब समधी हो गए हैं
प्यार के नए बीज बो गए हैं।
बहुत खूब लता जी! यह पूरी कविता पढ़ने लायक है किंतु पाठकों को तो पुस्तक में ही पढ़ना पड़ेगा।
जिंदगी के प्रति लता जी का नजरिया इन दो पंक्तियों में देखिए।
बिंदास है यह जिंदगी उदास है यह जिंदगी
दूर होकर भी कितने पास है यह जिंदगी
आज है जिसकी उसी से निराश है यह जिंदगी
खास है बहुत चाहतों की प्यास है यह जिंदगी।
असल जिंदगी में हम लेखकों से रूबरू नहीं होते , उनके शब्द उनका लेखन उनके व्यक्तित्व का परिचय देता है। ऐसे ही शब्द मित्रों को कवयित्री ने एक पाती लिखी। पंक्तियाँ देखिए।
जिन शब्दों का कर आलिंगन
जीत लिया तूने मेरा मन
ए शब्द गले लगा ले मुझको
फिर लिख भेजू पाती मैं उनको।
यह तो हुई रचनाओं पर बात। अब मैं लता जी का ध्यान वर्तनी की ओर आकृष्ट करना चाहूँगी। लता जी एक सक्रिय लेखिका हैं, आगे भी उनकी पुस्तकें आयेंगी। उस समय उन्हें ध्यान रखना थोड़ा आवश्यक होगा। अनुक्रम से लेकर रचनाओं तक में अनुस्वार और चंद्रबिंदु पर कार्य करने की आवश्यकता होगी । लगभग सारे चंद्रबिंदु वाले स्थानों पर अनुस्वार लगे हुए हैं। इन्हें मैं छंदों की दृष्टि से देख रही हूँ। चंद्रबिंदु वाले एकल वर्ण को हम लोग एक मात्रा में गिनते हैं जबकि अनुस्वार वाले वर्ण 2 मात्राओं के होते हैं। छंद की तकनीक के अनुसार यह स्थिति दिग्भ्रमित करने वाली है। अनुक्रम में कुछ शब्द हैं जिन पर मैं ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगी। माँ ,लड़कियाँ, देखूँ, जानूँ, यूँ, हूँ, चाँदनी, अनुक्रम में इन सभी शब्दों में अनुस्वार हैं जबकि सही शब्द चंद्रबिंदु वाले होंगे। यह सारी चीजें हमें मार्गदर्शन देते हैं। आशा है लता जी इसे अन्यथा ना लेंगी। यह पुस्तक रुचिकर है और पाठकों को अवश्य पढ़ना चाहिए।
लता जी की लेखनी सतत चलती रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ…
ऋता शेखर मधु
पुस्तक में पन्नो की क्वालिटी अच्छी है।
मुद्रक हैं: पाकीजा ऑफसेट,
शाहगंज ,पटना 8 00006