बुधवार, 10 अगस्त 2022

डेढ़ इंच मुस्कान - क्षणिका संग्रह-समीक्षा

 



डेढ़ इंच मुस्कान- क्षणिका संग्रह
क्षणिकाकारः श्रीराम साहू

समीक्षक ; ऋता शेखर ‘मधु’

क्षणिकाओं की शान- डेढ़ इंच मुस्कान

मुझे मेरी सद्य प्रकाशित पुस्तक , मृणाल का बदला, के साथ श्वेतांशु प्रकाशन की ओर से उपहारस्वरूप डेढ़ इंच मुस्कान मिली है। अब आप सोच रहे होंगे यह मुस्कान कैसे मिली। मैं बात कर रही हूं श्री राम साहू जी की क्षणिका संग्रह 'डेढ़ इंच मुस्कान' की। आज जबकि मुस्कान भी मिलीमीटर में मिलती है तो डेढ़ इंच तो बहुत बड़ी बात है। पुस्तक का शीर्षक बहुत ही अच्छा है।आवरण पृष्ठ पर मुस्कुराती हुई स्माइली का प्रयोग आकर्षक है|

क्षणिका एक मारक विधा है जो चिंतन की ओर अग्रसर करती है। किसी विशेष क्षण में हुए अनुभव को चंद पंक्तियों में उतार देना क्षणिकाकार की खासियत होती है। क्षणिकाएं लघु कविता नहीं होती। क्षणिका के क्षेत्र में लिख रहे रचनाकारों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए तब वे लघु कविता एवं क्षणिका के अंतर को समझ सकेंगे।। लेखक श्री राम साहू जी अपनी बात क्षणिका के माध्यम से रखते हुए कहते हैं कि जिंदगी/ हादसों व विडंबनाओं का/ शिकार है…शेष कुशल मंगल है/ बाकी तो आप सभी पाठक /अधिक समझदार हैं… यहीं से लेखनी ने कमाल दिखाना आरम्भ कर दिया है ।।

भूमिका प्रसिद्ध व्यंग्यकार गिरीश पंकज जी ने लिखी है।पंकज जी का कहना है कि लेखन के क्षेत्र में नन्हीं विधाए, जैसे हाइकु, तांका, लघुकथा, क्षणिकाएँ आदि फास्ट फुड की तरह हैं| जिस तरह लोग अधिक देर तक भोजन करना पसंद नहीं करते, उसी तरह समयाभाव के कारण लम्बी रचनाएँ भी पढ़ना पसंद नहीं करते|

नन्हीं रचनाओं का सृजन चुनौतीपूर्ण होता है| बहुत कुछ कहने के लिए चंद शब्द मिलते है| यह लेखक की काबिलियत होती है कि गागर में कितना सागर भर पाए| विषय चयन भी सोच समझकर करना होता है| उस हिसाब से लेखक ने समयानुसार विधा का चयन करके अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया है| सामाजिक सरोकार से लेकर राजनीति, पर्यावरण को विषय बनाते हुए उन्होंने गंभीर सृजन किया है|

कथ्य एवम शिल्प आकर्षित करते हैं।राजनीति और सत्ता को विषय बनाया जाए तो सर्वप्रथम रामराज्य को ही सबसे आदर्श राज्य माना जाता है। किन्तु आदर्श होने के बावजूद आलोचना से कोई भी राज्य अछूता नहीं रह पाता। राज्य को स्वार्थी होने के दृष्टिकोण से मन्त्रणा देने वाले मंथरा सरीखे लोग हैं, तो राजा के हर कृत्य पर अँगुली उठाने वाले धोबी सरीखे भी हैं। जब- जब रामराज्य की चर्चा होगी, ये दोनों स्वयमेव शामिल माने जाएँगे।

* हम /रामराज्य/ स्थापित/ करने में/ सफल हुए हैं /धोबी-मंथरा/ गली-गली/ पल रहे हैं।

चंद शब्दों वाली इस विधा में तुकांत का भी निर्वहन किया जाए तो क्षणिकाओं का स्वरूप अलग ही दिखता है। आदी और अवसरवादी का प्रयोग नितांत खूबसूरत बन पड़ा है। राजनीति पर निशाना साधने वाली यह रचना विपक्ष की भूमिका पर व्यंग्य करता हुआ थोड़ा स्मित भी दे जाता है। जब से सत्ता है तब से महंगाई एक मुद्दा है। चीजों के दाम हर किसी के राज्य में बढ़ते रहे हैं और सत्तापक्ष को निशाना बनाने का हथियार भी बनते रहे हैं। यह विरोध जोरशोर से इसलिए होता है कि विपक्ष का पक्ष मजबूत हो। लोकतंत्र जब भ्रष्टाचार का पर्याय बन जाये तो इस तरह की क्षणिकाएँ जन्म लेती हैं। बेईमानी में ईमानदारी, विरोधाभास का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर रहा। विरोधाभास लिए कई क्षणिकाएँ ध्यानाकर्षण करती हैं|

*महंगाई के खिलाफ/उनका/ विरोध अभियान/ युद्धस्तर पर/ जारी है। 'उल्लू' सीधा करने की /पूरी तैयारी है।।

आंदोलन करवाकर तहलका मचाना और स्वयं बच निकलने वाले नेताओं पर मारक सृजन है। बेचारी जनता उन नेताओं के प्रभाव में आकर अपना समय, जोश और समर्पण दाँव पर लगाने के लिए तैयार रहती है| जेल तक चली जाती है और आंदोलन का सृजनकर्ता चैन की वंशी बचाता सुख की नींद सोता है|

* उनके/ आंदोलन से/ तहलके मच गए। सब ने जेल की/ राह ली, वे अकेले बच गए।।

सत्ताधारी नेताओं के बदलते व्यवहार को चंद शब्दों में दर्शाना बड़ी कला है| उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ अपने पद और गरिमा को ईमानदारी से निभाने के लिए लेना होता है|किन्तु शपथ ग्रहण के बाद वे कुर्सी बचाने के चक्कर में ईमानदारी कहीं खो जाती है|

विरोधाभास से रची गयी क्षणिका अच्छी बनी है| मनुष्य का नैतिक पतन उसके उत्थान में सहायक है, इससे और कितना अधिक गिरेगा आदमी|

* सचमुच/ आज आदमी/ काफी तरक्की/ कर चुका है। नीचे गिरने की/ हद तक, ऊपर/ उठ चुका है।।

श्रीराम साहू जी ने क्षणिकाओं में बहुत बारीकी से हर उस कथ्य को उभारा है जो आम मनुष्य सोचता है|एक तरफ प्रगति के नाम पर पारिवारिक विखंडन पर रचना है तो दूसरी तरफ कार्य प्रणाली में कागजी घोड़े दौड़ा कर कार्य की संपूर्णता दिखाने की बात कही गई है| जिनके बड़े बड़े बोल होते हैं उनके काम कम होते हैं| हर समस्या पर सिर्फ वार्ता होती है|

*उन्होंने/ प्रगति के/ नए आयाम/ गढ़ लिए हैं/ पहले चारदीवारी में/ रहते थे/ अब केवल दीवार/ खड़ी कर लिए हैं||

* उन्हें/ काम से कम/ बात से अधिक/ वास्ता है| उनकी मान्यता है/ हर समस्या का हल/ केवल वार्ता है ||

क्षणिकाओं में कभी तुकांत का प्रयोग मनभावन है तो कभी अतुकांत में सधी लेखनी चली है| रचनाओं को पढ़ते समय मुस्कान भी सहज रूप से आती है| आपने सत्ता और सत्ताधारियों पर चुटीले तंज किए हैं जो हर आदमी मुस्कुराते हुए स्वीकार कर ले| कथ्य और शिल्प का निर्वहन है और भाव भी भरपूर है|

कहीं- कहीं रचना सपाट बयानी भी लगी , किंतु कथ्य प्रभावशाली होने के कारण प्रभाव छोड़ने में सफल रही|

प्रायः पुस्तक का समर्पण लिखते समय उसी विधा का चयन किया जाता है जिस विधा में पुस्तक बननी है| क्षणिका की पुस्तक का समर्पण पृष्ठ हाइकु में होने के कारण आरम्भ में थोड़े भ्रम की स्थिती बन रही| ऐसा प्रतीत होता है जैसे हाइकु संग्रह हो|

लेखक श्रीराम साहू जी 1984 से लेखन में सक्रिय हैं। उनकी रचनाओं का पत्रिकाओं में प्रकाशन 1987 से जारी है। आप फेसबुक में विभिन्न संस्थाओं द्वारा शताधिक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।

श्रीराम साहू जी की लेखनी सतत क्रियाशील रहे, इसके लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

पुस्तक की साजसज्जा, पन्नों की स्तरीयता एवं छपाई…सभी सुन्दर हैं।

पुस्तक परिचय

पुस्तकः डेढ़ इंच मुस्कान

लेखकः श्रीराम साहू

पृष्ठः ११२

मूल्यः २५०/-

प्रकाशकः श्वेतांशु प्रकाशन, नई दिल्ली

प्रकाशन का मोबाइल नम्बरः 8178326758, 9971193488

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर समीक्षा। शुभकामनाएं श्री राम जी के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.8.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4518 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक समीक्षा, लेखक को बधाई, आपको भी अपनी नयी पुस्तक के लिए बधाई ऋता जी।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!