बूँद-बूँद तरसी धरा, ताक रही आकाश|
मेघ, अब आओ जरा, मिलने की है आस|१|
मतवाले बादल चले, घोड़े-सी है चाल|
हौले मस्त हवा चली, झूमे तरु के डाल|२|
घटा घनघोर छा रही, नाच रहा है मोर|
चपल दामिनी हँस पड़ी, बादल करता शोर|३|
घन-घन करके गरजता, इन्द्रदेव का दूत|
माँ के आँचल जा छुपा, उसका डरा सपूत|४|
प्रचण्ड-वेग हवा बहे, झुकते ताड़-खजूर|
धूल-भरी हैं आँधियाँ, उड़े फूस-छत दूर|५|
बादलों से गगन ढका, है बारिश की थाप|
भोर निशा-सी लग रही, सूरज है चुपचाप|६|
टिप-टिप बरसा नीर जब, खुशबू सोंधी उड़ी|
तन-मन ज्यूँ पुलकित हुए, लगी नाचने कुड़ी|७|
[खुशबू सोंधी उड़ रही, टप टप बरसा नीर
[खुशबू सोंधी उड़ रही, टप टप बरसा नीर
तन मन
पुलकित हो गए, चलो ताल के तीर|]
बारिश की धारा बही, छप-छप करते पाँव|
कतारों में हैं सजते, कागज के सब नाव|८|
मुसलाधार बारिश में, सजा राग मल्हार|
पकौड़ियाँ छनने लगीं, छाई हँसी-बहार|९|
नदी- ताल- पोखर भरे, बारिशों का कमाल|
टर-टर से गूँजा शहर, मेढकों का धमाल|१०|
बूदें नभ में टँग गईं, करतीं परावर्तन|
सातों रंग छिटक पड़े, इन्द्रधनु दे दर्शन|११|
मेंहदी लगी हाथ में , मुखड़ा होता लाल|
मंद- मधुर मुस्कान से, सखियाँ करें सवाल|१२|
ऋता शेखर ‘मधु’