रविवार, 29 दिसंबर 2013

तुम रहोगे दिल में हमारे...

अलविदा २०१३
स्वागतम् २०१४

नींद भरी आँखें
सहला रहा कोई
टपकी है गालों पर
इक बूँद नन्ही सी

मैं जा रहा हूँ
करोगे न याद मुझे
साथ रहा है
तीन सौ पैंसठ दिनों का

मुझे याद रहेगी
तुम्हारी छुअन
पलट देते थे पन्ने 
हर पहली तारीख़ को

देखते थे
महीने की छुट्टियाँ
सारे व्रत त्योहार
और दूध का हिसाब

लगाते थे निशान
कब गैस बदली
कब आएगी बेटी
कब किसका है दिन खास

कैसे भूलूँगा मैं
जन्मदिन तुम्हारा
वर्षगाँठ शादी की
सी एल की तारीखें

कैसे भूल पाऊँगा
तुम्हारी आतुर आँखें
सैलरी के लिए
महीने का बदलना

फिर से सहलाया कैलेंडर ने
करोगे न याद मुझे
माना कि दी हैं हमने
कुछ कड़वाहटें भी

पर दिया है साथ में
पगडंडियाँ भी
गुलमोहर भी खिले
शब्दों से संबाद हुआ

आँखें हमारी नम हो गईं
तुम रहोगे दिल में हमारे
कहीं कोई शिकवा नहीं
न ही है कोई मलाल

खुशी खुशी जाओ मेरे भाई
सहेज कर रखेंगे
हर चहकता लम्हा
तुम्हारी सूर्य रश्मियाँ

धरती २०१३ की 
विस्तार नभ का २०१४
करना मुट्ठी में संसार
मिलेंगी खुशियाँ अपार...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
..............ऋता




शनिवार, 14 दिसंबर 2013

न देखा है राम को न ही कृष्ण को देखा


1.
न देखा है राम को न ही कृष्ण को देखा|
सिर्फ़ नाम जपने से बदले विधि का लेखा|
मौत शरीर की होती नाम कभी न मरता,
नाम न बदनाम हो, बने ऐसी ही रेखा|
2.
आँख का अंधा नाम नयन सुख|
कड़वी है बोली नाम मृदुमुख|
नाम जैसा व्यवहार चाल हो,
तभी कोई बन जाता मनसुख|
3.
अंतरजाल की दुनिया में हम सभी एक नाम हैं|
जैसे भक्ति के संसार में एक राम एक श्याम हैं|
कोई किसी से न मिले न कोई सुने किसी के बोल,
नाम से ही चल रहे फ़ेसबुक के ग्रुप अविराम है|
4.
करके हमको माफ, राम अब तो सुधि लीजे|
मन में भरा अज्ञान, थोड़ी भक्ति तो दीजे|
तुम बिन मिले न थाह, भव का सिंधु है गहरा,
ऐसा कर दो आप, हो सुविचार का पहरा|
5.
ममता भरा आँचल सुहाना, गोद में संसार है|
संतान की हरती बलाएँ, त्याग अपरम्पार है||
माता, सदा हो हाथ सिर पर, सोख लो मेरी नमी|
प्रभु की जगह तुम हो धरा पर, कौन सी है फिर कमी||
6.
टूटे दिलवालों ने जब भी 'आह ' कहा|
मुस्कुराकर जमाने ने हमेशा 'वाह' कहा|
सर्द हो जम सी गई जब  वेदनाएँ सारी ,
दुनिया ने उसे कविता का 'प्रवाह'कहा|
7.
लक्ष्मण रेखा पार कर हरी गई परिणीता
वेदना  में भर राम पुकारें हा सीता! हा सीता!
करुणा से व्यथित हुआ जंगल का हर कोना
शोकाकुल वनवासी को जग लगे रीता रीता|
.......................ऋता

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

मानस पटल...















मानस पटल...

मानस पटल की दो बहनें
एक है आशा एक निराशा
साथ साथ वे चलती थीं
बंधन भी था बड़ा अटूट

जीवन का था प्रश्न जटिल
सुलझाने में हुई मुश्किल
दोनों में हो रहा संवाद
हर्ष मिले या मिले अवसाद

आशा आशापरक रही
निराशा मन की बनी कुटिल
एक राह को सीधी रखती
एक उसे कर देती वक्र

उथल पुथल मचता जब मन में
त्वरित गति होती धड़कन में
सही गलत बस मन ही जाने
सीमा भी मन ही पहचाने

आस-निराश दो तट हैं जानो
अश्रु को भाव की धारा मानो
विलय कहाँ होना है इसको
शांत चित से ही तुम ठानो|
............ऋता

रविवार, 1 दिसंबर 2013

सन्नाटा...

सन्नाटा...

सनसना रहा  बाहर का सन्नाटा
मन के भीतर  बवंडर शोर का
कितना शांत कितना क्लांत तू
अपेक्षाओं के बोझ तले दबा
उस शोर से क्या कभी 
पीछा छुड़ा पाएगा
जो तुम्हे धिक्कारता है 
जब भी समय की कमी से 
बूढ़े पिता की आँखें नहीं जँचवाता
उनकी दुखती हड्डियों को
प्यार से नहीं सहलाता
कभी उस बहन को नहीं देख पाता
जो अपने प्यारे भाई के लिए
राखी की लड़िया सजाए
इंतेजार करती है 
कसूर तेरा  नहीं
पर उनका भी तो नहीं|
...........ऋता